अभिषेक
मिश्रा, लखनऊ। वैसै तो भारतीय जनता पार्टी विश्व की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टियों
में शुमार है। लेकिन दिलचस्प है ये है कि इतनी बड़ी पार्टी होने के बावजूद देश के
सबसे बड़े राज्य में वह सत्ता से बाहर है। वह भी करीब डेढ़ दशक से। लेकिन सबसे बड़ा
सवाल यह है कि क्या जिस तरह से लोकसभा चुनाव में यूपी फतह कर देश की सत्ता में
काबिज हुई भाजपा इस बार यूपी में काबिज होगी? यह तो 11 मार्च को ही मालूम चलेगा
लेकिन राज्य में पिछले तीन चुनावों में भाजपा का ग्राफ गिरा ही है। लेकिन क्या
अमित शाह, ओम माथुर और सुनील बंसल की टीम भाजपा का सत्ता से वनवास खत्म करा पाएगी।
यह तो बाद में ही मालूम चलेगा। लेकिन अभी तक जो रिकॉर्ड रहा है उसमें इस टीम ने
पार्टी को सत्ता तक पहुंचाया है।
[# यूपी चुनाव: ये कैसा गठबंधन? कई सीटों पर सपा व कांग्रेस प्रत्याशी आमने-सामने]
यूपी
में एक बार फिर पार्टी पीएम के चेहरे को ही आगे रखकर आगे बढ़ रही है। 2002 के
चुनाव में भाजपा को जहां 88 सीटों पर कामयाबी मिली, तो 2007 के
चुनाव में वह 51 सीटें ही जीत पायी और फिर 2012 में तो और भी
फीका प्रदर्शन रहा। इस फीके प्रदर्शन के बाद जब पार्टी ने अपनी रणनीति बदली और
अमित शाह को यूपी का प्रभारी बनाया। शाह ने बूथ मैनेजमेंट को प्राथमिकता दी। तब
पार्टी ने चुनाव प्रबंधन में प्रशांत किशोर की मदद ली और शाह ने छोटी-छोटी बैठकें
कर कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। शीर्ष नेतृत्व से कनेक्ट हुए कार्यकर्ता उत्साह
में आये तो 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी अनुमानों को धता बताते हुए
पार्टी ने कामयाबी का इतिहास रच दिया। न सिर्फ 71 सीटों पर भाजपा व दो
पर सहयोगी अपना दल को कामयाबी मिली, बल्कि विधानसभावार 337 सीटों
पर बढ़त भी पार्टी ने हासिल की थी। अब अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और प्रभारी की भूमिका में ओम माथुर
हैं। माथुर ने कई राज्यों में प्रभारी की भूमिका निभायी और कमल खिलाने में कामयाब
रहे हैं।
इनमें दो बार गुजरात में भी पार्टी के सत्ता में रहते वापसी कर चुके हैं। इसके साथ
ही हरियाणा में भी उनके प्रबंधन कौशल से पार्टी कामयाब हो चुकी है। हालांकि इस बार भाजपा ने भी सोशल
इंजीनियरिंग की राह पकड़ी है। अन्य पिछड़ा वर्ग में अतिपिछड़ों को नेतृत्व व टिकट
दोनों में प्राथमिकता दी। प्रत्याशियों के चयन में जिताऊ व टिकाऊ को तरजीह दी।
हाईटेक चुनाव प्रचार में विपक्षियों को पीछे करने की रणनीति अपनायी।
युवाओं और अनुभव का समन्वय रखने के साथ ही टिकटों में जिला स्तर पर जातियों के
गुलदस्ते को बनाने की कोशिश की है, ताकि सभी को प्रतिनिधित्व देकर उनके बीच
पैठ बनायी जा सके। पार्टी ने प्रखर हिन्दुत्व की छवि वाले नेताओं को भी आगे
किया, इनमें योगी आदित्यनाथ, विनय कटियार और वरुण को जगह दी है। युवाओ
में वरुण गांधी भी खासे पसंद किये जाते हैं।
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