लखनऊ। भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC), नई दिल्ली द्वारा देश का पहला फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम (FDP) का शुभारंभ किया गया। यह कार्यक्रम विकलांगजन सशक्तिकरण विभाग (DEPwD), सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार के तत्वावधान में कॉम्पोजिट रीजनल सेंटर (CRC), लखनऊ के सहयोग से DISLI (डिप्लोमा इन इंडियन साइन लैंग्वेज इंटरप्रिटेशन) और DTISL (डिप्लोमा इन टीचिंग इंडियन साइन लैंग्वेज) के संकाय सदस्यों के लिए आयोजित किया गया है।
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यह 5 दिवसीय कार्यक्रम भारत में ISL विशेषज्ञों के लिए अपनी तरह का पहला है और पूर्णतः भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) में संचालित किया जा रहा है। इससे यह न केवल पूर्ण समावेशी बना है, बल्कि प्रतिभागियों के लिए अधिक प्रभावी शिक्षण का भी माध्यम बना है।
कार्यक्रम का उद्घाटन डॉ. शकुंतला मिश्र राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय (DSMNRU), लखनऊ के कुलपति प्रो. संजय सिंह ने मुख्य अतिथि के रूप में किया। इस अवसर पर ISLRTC के निदेशक डॉ. कुमार राजू, पं. दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय शारीरिक दिव्यांगजन संस्थान (PDUNIPPD) के निदेशक डॉ. जितेन्द्र शर्मा, CRC लखनऊ के निदेशक हिमांशु सिंह, DISLI/DTISL कार्यक्रम संयोजक राकेश गंगवाल तथा ISLRTC के ISL शिक्षक शुभम पोचट उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के उद्देश्य:
DISLI एवं DTISL संकाय सदस्यों को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण उपलब्ध कराना।
ISL शिक्षा के क्षेत्र में पेशेवर क्षमताओं को मजबूत करना।
देशभर के राष्ट्रीय संस्थानों (NIs) और CRCs में ISL शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार लाना।
इस ऐतिहासिक पहल में देशभर के 38 DISLI/DTISL संकाय सदस्य भाग ले रहे हैं। यह कार्यक्रम न केवल एक शैक्षणिक प्रशिक्षण है बल्कि संकेत भाषा को देशभर में मान्यता, सम्मान और नए अवसर प्रदान करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम भी है।
ISLRTC की अब तक की उपलब्धियाँ:
भारतीय सांकेतिक भाषा शब्दकोश (ISL Dictionary) — जिसने संकेत भाषा के मानकीकरण को दिशा दी।
DTISL पाठ्यक्रम — ISL शिक्षकों के व्यावसायिक प्रशिक्षण हेतु।
प्रधानमंत्री ई-विद्या चैनल 31 पर ISL हेतु समर्पित टीवी चैनल — जिससे बधिर समुदाय को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ हुई।
और अब, भारत का पहला ISL विशेषज्ञों हेतु FDP — क्षेत्र की गुणवत्ता में नई ऊँचाई जोड़ने वाला कदम।
कार्यक्रम संयोजक राकेश गंगवाल ने इसे संकेत भाषा शिक्षा के क्षेत्र में "एक आंदोलन की शुरुआत" बताया, जो गुणवत्तापरक, समावेशी और भाषा-संवेदनशील शिक्षा के नए मानक स्थापित करेगा।
यह पहल न केवल DISLI और DTISL शिक्षकों को प्रशिक्षित करेगी, बल्कि भविष्य में प्रशिक्षित विद्यार्थियों के माध्यम से देश में बधिर समुदाय की आत्मनिर्भरता और सामाजिक भागीदारी को भी प्रोत्साहित करेगी।
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