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HC: तीन तलाक के बाद भी दर्ज होगा दहेज उत्पीड़न का मुकदमा

अमरीष मनीष शुक्ला ,इलाहाबाद । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज तीन तलाक और फतवे पर बड़ी टिप्पणी को सार्वजनिक किया है. जिसमे अपने पुराने आदेश (संविधान से उपर नही पर्सनल लाॅ) को दोहराते हुये कुछ नये दिशा निर्देश भी जारी कर दिये हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पति द्वारा पत्नी को तीन तलाक दिए जाने के बाद दर्ज दहेज उत्पीड़न के मुकदमे को निस्तारित करते हुये तलाक के बाद भी मुकदमा दर्ज कराना सही माना है। जबकि इसी मामले फतवे के अस्तित्व को नहीं माना है । जिससे अब भविष्य में तीन तलाक के बाद भी शौहर पर कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी। यहां तक फतवे का भी कानूनी मापदंड़ो पर असर शून्य सरीखा होगा।

कानूनी शब्दो में कहा जाये तो ऐसे में तीन तलाक का कोई कानूनी वजूद नहीं होगा। क्योंकि अपनी व्यक्तिगत व सामाजिक संरचना के हिसाब से शौहर तीन बार तलाक बोलकर पत्नी को छोड़ सकता है। लेकिन जब कानूनी प्रक्रिया की बात आयेगी तो इण्डियन पैनल कोर्ट की धाराओ में वह जकड़ा जा सकेगा।


कोर्ट से क्या कहा गया

दरअसल यह मामला वाराणसी के अकील जमील का है। जिन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। उनके वकील की दलील थी कि अकील ने अपनी पत्नी सुमालिया को तलाक दे दिया है। तलाक के बाद अब सुमालिया ने अकील के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केश दर्ज करा दिया। ऐसे में जब सुमालिया तलाक के बाद अकील की पत्नी नहीं तो दहेज उत्पीड़न का कोई औचित्य नहीं बनता। अकील की ओर से दलील दी गई कि उसने दारुल इफ्ता जामा मस्जिद आगरा से फतवा भी ले लिया है. इस आधार पर उस पर दहेज उत्पीड़न का केश वैध नहीं है। अकील की ओर से मांग की गई कि उस पर दर्ज मुकदमा व एसीजेएम वाराणसी के समन आदेश को रद्द किया जाये।


कोर्ट ने क्या कहा


इलाहाबाद हाईकोर्ट में 19 अप्रैल को ही यह केश निस्तारित हुआ और आज इसका फैसला सार्वजनिक किया गया। इस मामले की सुनवाई जस्टिस एसपी केसरवानी की एकल पीठ ने की है। जिसमे उन्होंने एसीजेएम वाराणसी के समन आदेश को सही करार देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया आपराधिक केस बनता है. इसलिये मुकदमा चलेगा। कोई भी मुस्लिम पति ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता है, जिससे समानता और जीवन के मूल अधिकारों का हनन होता हो. यानी की एकतरफा तौर पर तलाक सही नहीं है। क्योंकि मुस्लिम महिलाओ को भी संविधान ने मूल अधिकार दिये हैं। ऐसे में कोई भी पर्सनल लाॅ मुस्लिम महिलाओ के मूल अधिकारो का हनन नहीं कर सकता। रही बात फतवे की तो ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है जो न्याय व्यवस्था के विपरीत हो. क्योंकि फतवे का कोई वैधानिक आधार नहीं है । फतवे को कानूनी बल प्राप्त नहीं है, इसलिए इसे जबरन थोपा नहीं जा सकता है. यदि इसे कोई लागू करता है तो वह अवैध है।

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Web Title-dowry harassment cases will be registered after three talaq said hc
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