राजसमंद। शहर से 22 किमी दूर बामनटुकड़ा गांव के 27 वर्षीय अविवाहित युवक मनीष दवे अपनी पंचायत के 100 फीसदी घरों में शौचालय बनाने का सपना पूरा करने का जुनून पाले हुए है। खुले में गंदगी से फैलती बीमारियों की सामान्य समझ ने एक चिंगारी जला दी और वह मशाल लेकर चल पड़ा है। उसका सफर स्वच्छ भारत अभियान से बिल्कुल अलहदा है। मोदी सरकार के मिशन से प्रेरित तो है, लेकिन यह उसकी अपनी मुहिम है। रोजाना घर-घर संपर्क करना, सुबह शौच को जाते लोगों को रोकना-टोकना व समझाना, शौचालय निर्माण के लिए समझाना, शाम को चौपाल-मंदिरों में सामूहिक बैठकें लेना और रात को दस्तावेज में हरेक शौचालय की प्रगति का हिसाब-किताब दर्ज करना उसकी रोजमर्रा की जिंदगी के ज्यादातर हिस्से में शुमार है। बस यही धुन सवार है कि हर कोशिश कर अपनी पंचायत के सातों गांवों को संपूर्ण खुले में शौच से मुक्त बनाना है। वह गरीब किसान परिवार से है, लेकिन किसी अपने जैसे ही परिवार को कमजोर पड़ते देख खुद गेंती-फावड़ा लेकर खुदाई-भराई और निर्माण कार्य में जुट जाता है। [@ Exclusive- राजनीति के सैलाब में बह गई देश के दो कद्दावर परिवारों की दोस्ती]
ठुकरा दिया साढ़े तीन सौ रुपए प्रतिदिन का प्रस्ताव
जुनूनी मनीष के बारे में जब स्वच्छ भारत मिशन व प्रशासन के अधिकारियों को पता चला तो वे उसके पास पहुंचे। साढ़े तीन सौ रुपए प्रतिदिन के मानदेय पर डीआरजी (प्रेरक) बनने का प्रस्ताव दिया, जिसे मनीष ने ठुकराते हुए कहा कि उसकी पहली और आखिरी प्राथमिकता गांव को खुले में शौच से मुक्त कराना है। जब तक 100 फीसदी लोग शौचालय बनाकर इस्तेमाल शुरू नहीं करेंगे, वह कोई रोजगार भी हाथ में नहीं लेगा।
यह रियल सेनिटेशन चैंपियन है
स्वच्छ भारत मिशन के जिला संयोजक नानालाल सालवी का कहना है कि उन्होंने पिछले चार साल में अभी तक स्वच्छता को लेकर ऐसी सोच का युवा नहीं देखा। वह दूसरे युवाओं के लिए मिसाल है। वह वाकई रियल सेनिटेशन चैंपियन है। प्रशासन अब उसकी मदद से पंचायत में काम करेगा।
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