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किसी भी शहर मे मेयर के चुनाव से शहर की सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक सोच परिलक्षित होती है। मेयर शहर के कामकाज और वहां के स्थानीय शासन के लिए महत्वपूर्ण होता है।पर्याप्त विजन के साथ वह अपने शहर को एक नई दिशा दे सकते हैं।संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों द्वारा स्थानीय प्रशासन को ताकत प्रदान की गई जिससे नागरिक समस्याओं का निदान सुचारु रूप से हो सके।
कलकत्ता के मेयर चितरंजन दास, सुभाष चंद्र बोस, बिधान चंद्र राय, डी एन मुखर्जी जैसे लोग रहे हैं तो बम्बई मे युसुफ मेहर अली, मीनू मसानी, दयाभाई पटेल (सरदार पटेल के बेटे), फिरोजशाह मेहता, खुर्शीद नरीमन, हुसैन अली रहमतउल्ला, होमी मोदी,बी एन करंजिया,एस के पाटिल जैसी विभूतियों ने मेयर के पद को सुशोभित किया है। अरुणा आसफ अली, हंस राज गुप्ता दिल्ली के मेयर रहे तो सरदार पटेल और चिमन भाई पटेल जैसे लोग अहमदाबाद के। लखनऊ मे भी पुरुषोत्तम दास कपूर,दाऊजी गुप्ता, डॉ एससी राय जैसे लोग मेयर के पद पर शोभायमान रहे। आज हर तंत्र और संस्था को सत्ता और शक्ति प्राप्त करने का साधन मात्र मान लिया गया है। चुनावी राजनीति की दलगत मजबूरियों मे एक विधायक या सांसद को अधिक महत्व मिलता है।पर किसी भी नगर प्रमुख की अपनी अहमियत होती है। उसे प्रथम नागरिक होने का गौरव प्राप्त होता है।पर आज की व्यवस्था मे दलीय समीकरणों के समक्ष वह अपने अपने दलों के पिछलग्गू बन जाते हैं।ऐसे मे यदि नगर प्रमुख खुद प्रतिभाशाली, विद्वान,सामाजिक योद्धा, समान्य जीवन व्यतीत करने वाला बौद्धिक व्यक्तित्व होगा तो वह किसी के पीछे न चलकर अपने नगर के हितों की रक्षा के लिए चलेगा।ऊपर जिन लोगों का जिक्र किया गया है वह सभी दिग्गज लोग थे और वह अपने शहर के भले के लिए लिए सदैव अग्रणी रहे।
नगर निगम का प्रमुख होने के कारण महापौर शहर की विरासत और पहचान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।कुछ महत्वपूर्ण महिला मेयरों ने अपने नगरों के उत्थान मे अविस्मरणीय भूमिका निभाई।तारा चेरियन मद्रास की 1957 मे मेयर थीं। वह मद्रास की मलिन बस्तियों व झुग्गियों मे रहने वालों के स्वास्थ्य और स्वच्छता तथा उनको पानी और बिजली की आपूर्ति के लिए चिंतित थीं।उन्होंने निगम के स्कूलों में एक विशेष मध्याह्न भोजन की शुरुआत की जिससे उस समय लगभग 25000 बच्चों को लाभ हुआ। यूनिस ब्रिटो ने 1994 मे मंगलोर के महापौर के रूप मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए वहां की सड़कों को बेहतर किया, जल निकासी और अन्य सार्वजनिक सुविधाओं के लिए कार्य किए। शिकायतों के प्रभावी समाधान के लिए एमएमसी की टोल फ्री हेल्पलाइन (106) की शुरुआत की। अनीसा बेगम मिर्ज़ा के समय मे 2003 मे अहमदाबाद ने मेगा-सिटी का दर्जा प्राप्त किया और साबरमती रिवरफ्रंट परियोजना शुरू की गई। 2004 मे कोचीन की मेयर बनी मर्सी विलियम्स ने अपने शहर की कूड़े की समस्या का बेहतर ढंग से निदान किया और इसके लिए नियम बनाए तथा 900 करोड़ के फंड की व्यवस्था कराईं। कोई आश्चर्य नहीं कि उनके समय मे कोचीन भारत का सबसे स्वच्छ नगर बना।
इसी प्रकार अजिता विजयन थ्रिसूर की मेयर हैं। वह आंगनबाड़ी शिक्षिका हैं और अभी भी अपने क्षेत्र मे दूध बांटने का पुराना कार्य भी करती है। उन्होंने अपने क्षेत्र की सूखे व पीने के पानी की कमी की गम्भीर समस्या का समाधान किया। मधु बाई किन्नर रायगढ की महापौर 2015 मे चुनी गई। वहां स्वच्छता की समस्या को देखते हुए सुबह के समय खुद कर्मचारियों को प्रेरित करते हुये निरीक्षण करती हैं जिससे सकारात्मक परिणाम मिले। इंदौर 2015 मे देश मे स्वच्छता रैंकिंग मे 180वें स्थान पर था पर 2017 मे मालिनी गौर की मेयरशिप मे प्रथम स्थान पर आया।महिला मेयर यदि प्रभावी हैं तो अपने तरीके से नगर निगम चलाकर शहर को नई ऊर्जा और दिशा दे सकती हैं।
इसके लिए आवश्यक है कि हमें दलीय सोच से उपर उठकर बुद्धिजीवी प्रत्याशी का ही चुनाव करना चाहिए। जिस प्रत्याशी को जनसरोकारों की चिंता है, जिसने बिना किसी पार्टी के झंडे के लिए सामान्य नागरिकों के लिए सदैव आवाज उठाई है, जिसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, संस्कृति, इतिहास, विरासत, पर्यावरण और सबसे महत्वपूर्ण मानवीय संवेदनाओं की चिंता है उसे चुन कर सभी दलों को संदेश देना चाहिए कि यदि आप अच्छे प्रत्याशी को टिकट देते हैं तो जागरूक मतदाता के रूप मे हम भी अपना दायित्व निभाने से पीछे नहीं हटेंगे। लखनऊ से समाजवादी पार्टी ने पत्रकार,चिंतक और सामाजिक आंदोलनों मे सदैव अग्रणी रहने वाली श्रीमती वंदना मिश्रा जी को टिकट देकर एक अच्छी शुरूआत की है।आपका संघर्ष और जमीन से जुड़ाव किसी से छिपा नहीं है।आप और प्रो रमेश दीक्षित जी बिना किसी आडम्बर के सामाजिक कार्यों को समर्पित सदैव उपलब्ध होने वाले युगल हैं। स्वच्छ राजनीति कोआगे बढ़ाने का दायित्व हम सबका है।
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