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दौसा : बिजलीकर्मियों का आक्रोश, निजीकरण के खिलाफ संघर्ष जारी
khaskhabar.com: शुक्रवार, 29 नवम्बर 2024 3:14 PM
दौसा। दौसा में शुक्रवार को बिजलीकर्मियों की संयुक्त संघर्ष समिति ने निगम कार्यालय पर जोरदार धरना प्रदर्शन किया। कर्मचारियों ने एसई को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपते हुए विद्युत क्षेत्र में निजीकरण के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की।
कर्मचारियों ने इस दौरान कार्य बहिष्कार किया और जमकर नारेबाजी की। उनका मुख्य मुद्दा था—विद्युत के उत्पादन, प्रसारण और वितरण में अंधाधुंध निजीकरण की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए। समिति के पदाधिकारियों का कहना था कि राज्य सरकार के तहत विद्युत निगमों का संचालन लोक कल्याणकारी उद्देश्य के तहत किया जाता है, लेकिन वर्तमान सरकार इसे लाभ-हानि के आधार पर चला रही है, जिससे जनता के हितों की अनदेखी हो रही है।
कर्मचारियों ने यह भी आरोप लगाया कि विद्युत प्रशासन ने निजीकरण को बढ़ावा देते हुए आउटसोर्सिंग, ठेके और निजी भागीदारी की प्रक्रिया को तेज कर दिया है। इसके चलते, अब 33/11 केवी ग्रिड के फीडर सेग्रिगेशन और सोलराइजेशन जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी निजी हाथों में सौंपे जा रहे हैं, जो सुरक्षा के लिहाज से खतरे का कारण बन सकते हैं।
साथ ही, कर्मचारियों ने प्रसारण निगम के कार्यों में भी निजीकरण का विरोध किया। उनके मुताबिक, वर्षों से लाभ देने वाले प्रसारण निगमों को अब निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी की जा रही है, जिससे सार्वजनिक संसाधनों पर खतरा मंडरा रहा है।
आंदोलन में शामिल कर्मचारियों का कहना था कि राज्य सरकार अपने सामाजिक दायित्वों से मुंह मोड़ते हुए इस पूरे निजीकरण प्रक्रिया के माध्यम से कर्मचारियों और प्रदेश की जनता के हितों की अनदेखी कर रही है।
स्मार्ट मीटर पर भी सवालधरने में कर्मचारियों ने राजस्थान में स्मार्ट मीटर लगाने की योजना का भी विरोध किया। उनका मानना था कि स्मार्ट मीटरों के दुष्प्रभाव को देखते हुए महाराष्ट्र में इसे रोक दिया गया है, ऐसे में राजस्थान में इसे लगाने से पहले पुनः विचार किया जाए। इससे लाखों रुपये के मीटर कबाड़ हो जाएंगे और डिस्कॉम्स को भारी नुकसान होगा।
ओपीएस योजना में देरी कर्मचारियों ने ओपीएस (पुरानी पेंशन योजना) के तहत अभी तक जीपीएफ कटौती न होने और सीपीएफ कटौती जारी रहने पर भी नाराजगी जताई। उनका आरोप था कि एक साल पहले फार्म भरवाकर सदस्य बनाया गया था, लेकिन अभी तक इस योजना के नियमों का पालन नहीं किया गया है।
कर्मचारी संगठनों का यह आंदोलन सरकारी नीतियों के खिलाफ तीव्र विरोध का संकेत देता है, जो उनके मुताबिक, कर्मचारियों और आम जनता के हितों के खिलाफ हैं।
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