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मानव विकास की रफ़्तार में ‘चिन्ताजनक’ सुस्ती – क्या AI से मिल सकती है मदद?

 - World News in Hindi

वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद से ही मानव विकास की धीमी गति बरक़रार है और यह वैश्विक प्रगति के लिए ख़तरा है. इसके मद्देनज़र, संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक नई रिपोर्ट में सचेत किया है कि लाखों-करोड़ों लोगों की भलाई के लिए, कृत्रिम बुद्धिमता (AI) का उपयोग एक शक्तिशाली उपाय साबित हो सकता है. मानव विकास से तात्पर्य, आम लोगों की आज़ादी, उनकी क्षमताओं, अधिकारों व उनके कल्याण जैसे मानकों को मज़बूत करने से है. पिछले कई दशकों से, संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों का मानना था कि मानव विकास संकेतक, सधे हुए ढंग से बेहतरी की ओर अग्रसर हैं.यूएन शोधकर्ताओं ने अनुमान व्यक्त किया था कि वर्ष 2030 तक, वैश्विक आबादी द्वारा मानव विकास के ऊँचे स्तर को हासिल कर लिया जाएगा.मगर, हाल के कुछ वर्षों में कोविड-19 महामारी समेत अन्य विशाल संकटों की वजह से इन उम्मीदों पर पानी फिर गया है, और दुनिया के सभी क्षेत्रों में प्रगति अवरुद्ध होती नज़र आ रही है.मंगलवार को प्रकाशित ‘मानव विकास रिपोर्ट’, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम का एक वार्षिक अध्ययन है, जोकि दर्शाता है कि लगातार चौथे वर्ष, धनी व निर्धन देशों के बीच असमानताएँ गहरी हुई हैं. © Unsplash/Lukas जापान के क्योटो शहर में एक शॉपिंग मॉल में तैनात एक रोबोट. बढ़ते व्यापार तनाव, बद से बदतर रूप धारण कर रहा क़र्ज़ संकट और ऐसे अन्य दबावों की वजह से देशों की सरकारों की क्षमता पर असर हो रहा है. उनके लिए अपनी आबादी की भलाई के इरादे से स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा व अन्य क्षेत्रों में निवेश कर पाना कठिन है.इस वजह से, उनके लिए विकास की दिशा में ले जाने वाले पारम्परिक मार्ग संकुचित होते जा रहे हैं.यूएन विकास कार्यक्रम के प्रशासक एखिम स्टाइनर ने कहा कि रफ़्तार में आई यह गिरावट, वैश्विक प्रगति के लिए एक वास्तविक ख़तरा है.“यदि 2024 की सुस्त प्रगति, नई सामान्य स्थिति बन जाती है, तो 2030 का पड़ाव, दशकों के लिए हाथ से निकल सकता है. इससे हमारी दुनिया कम सुरक्षित, अधिक विभाजित, और अर्थव्यवस्था व पारिस्थितिकी झटकों के प्रति और संवेदनशील हो जाएगी.”रोबोट्स का रोज़गारों पर असर, शायद नहींइन निराशाजनक संकेतकों के बावजूद, रिपोर्ट में कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) में निहित सम्भावनाओं के प्रति आशा व्यक्त की गई है. अध्ययन दर्शाता है कि व्यवसाय व आम लोग, निशुल्क और कम-क़ीमत वाले AI उपायों को तेज़ी से अपना रहे हैं.यूएन विकास कार्यक्रम के शोधकर्ताओं ने एआई के प्रति लोगों की राय जानने के लिए एक सर्वेक्षण कराया, जिसके अनुसार, 60 प्रतिशत प्रतिभागियों का मानना है कि इस टैक्नॉलॉजी से उनके कामकाज पर सकारात्मक असर होगा. साथ ही, उनके लिए नए अवसर सृजित होंगे.विकास के निम्न- और मध्यम-स्तर से गुज़र रहे लोगों में इसके प्रति आशा अधिक नज़र आई.सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 70 प्रतिशत लोगों ने कहा कि एआई से उनकी उत्पादकता बढ़ने की उम्मीद है, जबकि दो-तिहाई प्रतिभागी, अगले एक वर्ष के भीतर शिक्षा, स्वास्थ्य और अपने कामकाज में एआई के इस्तेमाल की मंशा रखते हैं. © UNICEF/Johnny Shahan सीरिया की राजधानी दमिश्क में एक अस्पताल में नर्स एक नवजात शिशु की जाँच-पड़ताल करते हुए. WHO का कहना है कि धन की कमी के कारण, स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक बोझ है. यूएन विशेषज्ञों ने मानव विकास में एआई टैक्नॉलॉजी के लाभ उठाने के इरादे से अनेक अनुशंसाएँ भी जारी की हैं, जिनमें निम्न अहम हैं:मौजूदा आवश्यकताओं से निपटने के लिए शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का आधुनिकीकरण करनाएआई और मानव में प्रतिस्पर्धा के बजाय, आपसी सहयोग पर केन्द्रित अर्थव्यवस्था को आकार देनाबनावट से तैनाती तक, एआई टैक्नॉलॉजी के विकास के हर पहलू में मानव ज़रूरतों को परखनायूएन विकास कार्यक्रम में मानव विकास रिपोर्ट कार्यालय के निदेशक पेड्रो कॉन्सेइकॉओ ने बताया कि सही नीतियों और आम लोगों पर ध्यान में रखकर, नए ज्ञान, कौशल व विचारों की दिशा में जाने के लिए एआई एक अहम पुल साबित हो सकता है. इससे किसानों से लेकर लघु उद्यमियों तक, हर किसी को सशक्त बनाने में मदद मिलेगी. वैश्विक सहयोग पर बलरिपोर्ट का सन्देश है कि ऐसा नहीं है कि एआई के असर को रोका या बदला नहीं जा सकेगा. यह अपने आप में कोई स्वायत्त शक्ति होने के बजाय उन समाजों, मूल्यों व असमानताओं पर निर्भर है, जो उसे आकार देते हैं.यूएन विकास कार्यक्रम के अनुसार, विकास से जुड़ी निराशाओं को टालने के लिए, एआई की संचालन व्यवस्था के विषय में वैश्विक सहयोग को मज़बूती देनी होगी.साथ ही, निजी नवाचार और सार्वजनिक लक्ष्यों में एकरूपता लानी होगी और नए सिरे से मानव गरिमा, समता व सततता के प्रति संकल्प लेना होगा.एखिम स्टाइनर ने इस अध्ययन की प्रस्तावना में लिखा है कि 2025 की रिपोर्ट केवल टैक्नॉलॉजी के बारे में नहीं है. यह लोगों के बारे में है, और गहरे बदलाव के दौर में स्वयं को फिर से परिभाषित करने की हमारी क्षमता के बारे में.क्षेत्रीय भिन्नताएँदुनिया के अलग-अलग हिस्सों में, एआई के इस्तेमाल, मौजूदा चुनौतियों के सिलसिले में असमानताएँ व्याप्त हैं.दक्षिण एशिया में मानव विकास में प्रगति, असमान ढंग से हो रही है और शिक्षा, इंटरनैट कनेक्टिविटी और एआई टैक्नॉलॉजी के लिए तैयारी में चुनौतियाँ व्याप्त हैं. भारत में मज़बूत डिजिटल ढाँचा मौजूद है और प्रतिभाओं को सहेजने के भी प्रयास किए जाते हैं, वहीं बांग्लादेश में सामाजिक कार्यक्रमों के लिए एआई का लक्षित ढंग से इस्तेमाल शुरू किया जा रहा है.पूर्वी एशिया, विश्व भर में एआई जगत में एक बड़ी शक्ति है. एआई शोध, रोबोटिक्स व डेटा पारिस्थितिकी तंत्र में चीन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. हालाँकि, एआई सुरक्षा में निवेश की कमी चिन्ता का विषय है और इस पूरे क्षेत्र में नियामन उपायों में कमी है और प्रतिभाओं को सहेज कर रखने के लिए उपयुक्त व्यवस्था नहीं है.अफ़्रीका, विशेष रूप से सब-सहारा अफ़्रीका में विशाल ढाँचागत विकास चुनौतियाँ हैं. एआई के ज़रिए शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि में बेहतरी लाई जा सकती है, लेकिन बुनियादी ढाँचे –बिजली, इंटरनैट और कम्प्यूटर-- की गम्भीर कमी है, और इससे बड़े अवरोध उपजे हैं.योरोप व मध्य एशिया को बढ़ते राजनैतिक ध्रुवीकरण और बुज़ुर्ग होती आबादी से जूझना पड़ रहा है. इस क्षेत्र में एआई को एक पूरक (complementary) शक्ति के बजाय, श्रम बाज़ार में व्यवधान पैदा करने वाले रुझान के तौर पर देखा जाता है. © IMF/Andrew Caballero-Reynolds घाना में रेडीमेड कपड़े बनाने वाले एक कारखाने में श्रमिक.

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