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सैयद हबीब
जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 19 से 23 जनवरी तक होने वाला है। दुनियाभर के लेखक और साहित्यकारों का जमघट लगने वाला हैं। उधर, सियासी अखाड़ों में सियासी पहलवानों ने अपने दांव पेंच लगाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस में फील्ड में भी सियासी गूंज सुनाई देने लगी है। खाद्यमंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास का एक ऑडियो वायरल हो रहा है जिसमें वे अपने इलाके के लोगों से सीएम बनने की संभावना जताते हुए जीताने की अपील कर रहे हैं। इसमें उन्होंने अपने कांग्रेस और भाजपा के विरोधियों पर भी निशाना साधा है। इसके बाद उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा है कि उन्होंने लोगों के बीच जो कहा सोच समझकर ही कहा है। उसका संदर्भ अलग हो सकता है। अब 23 जनवरी से राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने वाला है, वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट फील्ड में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। मारवाड़ और शेखावटी में वे किसान सम्मेलन और सभाएं कर शक्ति प्रदर्शन कर सकते हैं। इसके बाद 30 जनवरी को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत कई कांग्रेस के नेता 30 जनवरी को भारत जोड़ो यात्रा के शामिल होने जाएंगे। कुल मिलाकर साहित्यकारों के जमघट के बीच सियासत का भी रंग जमने लगा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था कि साहित्य राजनीति का अनुचर नहीं, स्वतंत्र है। उसे पूरा अधिकार है कि जीवन के विशाल क्षेत्र में से वह अपने कार्य के योग्य वे सभी द्रव्य उठा ले, जिन्हें राजनीति अपने काम में लाती है। अगर राजनीति अपनी शक्ति से सत्य की प्रतिमा गढ़कर तैयार कर सकती है तो साहित्य में भी इतनी सामर्थ्य है कि वह उसके मुख में जीभ भर दे। आज का साहित्य बाजारवाद और राजनीति की गिरफ्त में है, लेकिन युवा रचनाकार आधुनिक उत्तर आधुनिक के इस दौर में भी समय और समाज का साक्षात्कार कर मानवीय अस्मिता और स्वतंत्रता को वाणी दे रहे हैं।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में जिन मुद्दों पर चर्चा होनी हैं वो सब्जेक्ट भी सियासत से सीधे जुड़े हुए हैं। इनमें सबसे बड़ा मुद्दा राजस्थानी भाषा का है और जेएलएफ में बड़ी संख्या में राजस्थानी भाषा के लेखक शामिल हो रहे हैं। उम्मीद है कि राजस्थानी भाषा को मान्यता का प्रस्ताव इन लेखकों द्वारा पारित कर सरकारों को भेजा जाएगा। इस साहित्य सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, फीमेल वाइसेस और पहचान, कृषि में वैश्विक संकट, रूस-यूक्रेन विवाद, इंडिया@75, विभाजन की यादें, जिओपॉलिटिक्स आदि मुद्दे होंगे।
अब बात करते हैं राजस्थान में सियासत की। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का यह चुनावी बजट होगा। आमजन को खुश करने की कोशिश की जाएगी। वहीं भाजपा भी राजस्थान में महिला अपराध, पेपर आउट प्रकरण, बेरोजगारी आदि मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश करेगी। उधर, कांग्रेस में दूसरे गुट के नेता पूर्व डिप्टी चीफ मिनिस्टर सचिन पायलट अब फील्ड में उतरने वाले हैं। वे मारवाड़ और शेखावटी में अलग अलग जगहों पर किसान सम्मेलन और सभाएं करने वाले हैं। बताया जा रहा है कि इन किसान सम्मेलनों के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन करने वाले हैं। पहला सम्मेलन 16 जनवरी को नागौर में होने वाला है। इसकी तैयारी की जा रही है। किसान सम्मेलनों में किसानों के कर्जमाफी का मुद्दा उठ सकता है।
उधर, भाजपा में भी सियासत अंदर ही अंदर गरमा रही है। जनआक्रोश यात्रा में वसुंधरा राजे और उनके समर्थक नदारद ही रहे। प्रदेश प्रभारी अरूण सिंह से इस बारे में पूछा भी गया था, लेकिन उनका कहना था कि परिवार में बीमारी के कारण वो कम आ रहे हैं, लेकिन जहां जरूरत होती है वहां वो आती हैं। भाजपा में संगठन में भी बड़े बदलाव की खबरें आ रही है। यह कब तक होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है। बहरहाल राजस्थान की सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा यह कुछ दिनों बाद ही पता चल पाएगा।
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