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जयपुर। राजस्थान रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) ने बिल्डर मॉडस्ट इंफ्रा लिमिटेड के खिलाफ एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। रेरा सदस्य सुधीर कुमार शर्मा ने कंपनी को उसके ग्रीन मीडोज नामक अटके हुए हाउसिंग प्रोजेक्ट में एक परेशान घर खरीदार, पदम नारायण और अन्य को उनकी जमा की गई पूरी रकम ब्याज सहित वापस करने का आदेश दिया है। यह प्रोजेक्ट जयपुर के टोंक रोड स्थित हेमा की नांगल गाँव में है।
दरअसल, पदम नारायण ने फरवरी 2012 में इस प्रोजेक्ट में एक फ्लैट बुक किया था और उन्हें 4 मई 2012 को अस्थायी आवंटन पत्र भी मिल गया था। बिल्डर ने 2014 में दावा किया कि उन्हें जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) से सभी जरूरी मंजूरी मिल गई हैं और फ्लैट नंबर बी-301 उन्हें आवंटित कर दिया गया। इसके लिए उन्होंने एसबीआई बैंक से होम लोन भी लिया था।
इसके बाद 26 अप्रैल 2016 को बिल्डर के साथ बिक्री का समझौता किया गया, जिसके अनुसार उन्हें 26 अप्रैल 2021 तक फ्लैट का कब्जा मिलना था। उन्होंने फ्लैट की कुल कीमत 25,13,730 रुपये में से 20,58,756 रुपये बिल्डर को दे दिए थे। हालांकि, 10 साल से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी उन्हें फ्लैट का कब्जा नहीं मिला। इससे परेशान होकर उन्होंने रेरा में शिकायत दर्ज कराई और फ्लैट का आवंटन रद्द कर अपनी पूरी जमा राशि ब्याज सहित वापस मांगी।
बचाव में बिल्डर ने कहा कि प्रोजेक्ट की शुरुआती समय सीमा 31 मार्च 2020 थी, जिसे बाद में रेरा ने 28 फरवरी 2025 तक बढ़ा दिया था। बिल्डर ने यह भी बताया कि टावर ए और टावर सी के लिए कंप्लीशन सर्टिफिकेट मिल गया है, लेकिन जिस टावर बी में शिकायतकर्ता का फ्लैट है, उसके लिए अभी तक यह सर्टिफिकेट नहीं मिला है। बिल्डर ने वित्तीय संकट का भी हवाला दिया और बताया कि उन्हें स्वामी इन्वेस्टमेंट फंड से मदद लेनी पड़ी। उन्होंने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता पर अभी भी कुछ रकम बकाया है और वे कब्जे के लिए तैयार हैं।
सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि 15% से ज्यादा रकम जमा करने के बावजूद अप्रैल 2016 तक बिक्री का समझौता नहीं किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि कब्जे की तय तारीख बीत चुकी है और फ्लैट अभी भी अधूरा है। शिकायतकर्ता, जो कि एक सरकारी कर्मचारी हैं, का दिल्ली तबादला हो गया है और अब वे फ्लैट नहीं लेना चाहते, इसलिए उन्हें ब्याज सहित रिफंड मिलना चाहिए।
रेरा ने मामले की सुनवाई के बाद पाया कि प्रोजेक्ट में काफी देरी हुई है और अप्रैल 2016 के समझौते के अनुसार फ्लैट का कब्जा नहीं दिया गया। रेरा ने यह भी नोट किया कि किसी भी टावर के लिए ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट नहीं मिला है और प्रोजेक्ट वेबसाइट पर 'लैप्स्ड' कैटेगरी में दिखाया जा रहा है। बिल्डर ने पांच बार एक्सटेंशन मांगा था, जिसकी आखिरी तारीख 28 फरवरी 2025 को खत्म हो गई। अभी तक सिर्फ 94% काम पूरा दिखाया गया है और बिल्डर यह भी नहीं बता सका कि प्रोजेक्ट कब पूरा होगा।
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, रेरा के सदस्य सुधीर कुमार शर्मा ने शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया। प्राधिकरण ने बिल्डर को आदेश दिया है कि वह शिकायतकर्ता द्वारा जमा की गई पूरी राशि, चाहे वह खुद के पैसे हों या लोन, को 11.10% प्रति वर्ष की दर से ब्याज सहित वापस करे। यह ब्याज हर जमा की तारीख से लेकर रिफंड की तारीख तक जोड़ा जाएगा। बिल्डर को इस आदेश का पालन 45 दिनों के भीतर करना होगा।
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