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जैसलमेर । रामदेवरा में नौ दिवसीय मानस रामदेव पीर रामकथा का रविवार को समापन हो गया। आयोजन की भव्यता, शालीनता, उमडे जनज्वार और कथा में रस वर्षा के अनंत, अपूर्व प्रवाह से उत्साहित मुरारी बापू ने ‘‘मुसाफिर तुम भी हो, मुसाफिर हम भी है, फिर किसी मोड पर मुलाकात होगी’’ इन्ही शब्दों के साथ रामकथा को विराम दिया।
बापू ने मानस की इस कथा को पहले रामदेव पीर की समाधि को समर्पित किया तथा बाद में वहां से प्रसाद के रूप में सीमा सुरक्षा बल के जवानों को समर्पित किया। जाट धर्मशाला के निकट स्थित पांडाल में रामकथा के नवें दिन श्रोताओं की तादाद इतनी थी कि कथा की शुरूआत के नियत समय से पूर्व ही पूरा पाण्डाल खचाखच भर चुका था।
मुरारी बापू ने व्यास पीठ से जनमानस, समाज, देश और पूरे पृथ्वी के जीवों के कल्याण की कामना की तथा सबको सन्मति दे, सभी प्रसन्न रहे भगवान... कहकर प्रभु से प्रार्थना की। बापू ने उपनिशद् की दृष्टि में इन्द्रियों को घोड़ा बताया और कहा कि जब इन्द्रियां विदाई लेती है तभी आदमी की मृत्यु घोषित हो जाती है। श्रद्धा जगत में समाधि के बाद अमन हो जाता है और उसका मन रूपी घोड़ा चला जाता है।
बाबा रामदेव पीर ने भैरवा को मारने के लिए अवतार लिया। उन्होंने नही जागने वालों को जगाने के लिए, समाज में समरसता लाने के लिए, छूआछूत तथा अस्पृष्यता मिटाने के लिए अवतार लिया। बाबा ने सेवा की, समर्पण किया तथा जीवंत समाधि ले ली। घोड़े पर बैठने का मतलब सक्रिय होना है। समाधि में जो जाएगा उसका मन रूपी घोडा रहेगा ही नहीं। रामकथा की पूर्णाहुति के मौके पर रविवार को बापू ने अरण्य काण्ड, किश्किन्धा काण्ड, सुन्दर काण्ड, लंका काण्ड और उत्तर काण्ड के प्रसंगों को दर्शाया। उन्होंने बताया कि रामचरित मानस में एक एक शब्द परम विषेशता रखता है।
प्रेम सेवा करवाता हैं
प्रेम देहगत, मनोगत तथा आत्मगत तीन प्रकार का होता है। बाबा रामदेव पीर ने सेवा की, स्मरण किया तथा समाधि ली। बाबा पीर जब शरीर रूप में थे तो बहुत सेवा की। मनोगत प्रेम में अलख का सुमिरन करते है और जब आत्मगत प्रेम में जाते है तब आत्म साक्षात्कार करते हुए परम समाधि में जाते है। शरीरगत प्रेम सेवा कराता है। मनोगत प्रेम परम तत्व का सुमिरन कराता है। गोपियों का प्रेम जब तक षरीरगत था तब तक वो गायों की सेवा करती रही। लेकिन जब प्रेम मनोगत की अवस्था आती है तो सुमिरन करती है। राम मनोगत प्रेम में भरत का सुमिरन करते थे। अकारण शिष्यों को याद करना गुरूजनों का मनोगत प्रेम है। मनोगत प्रेम के बाद आत्मगत प्रेम की अवस्था आती है वह हमें साक्षात्कार कराती है। प्रेम और काम दोनों आकर्शित करते है लेकिन काम निम्न अवस्था है।
प्रेम की तरह काम भी तीन प्रकार का होता है। शरीरगत काम भोग में ले जाता है। मनोगत काम भाव में ले जाता है। आत्मगत काम परम गत में ले जाता है। षरीरगत काम गुलाब का पौधे के रूप में होता है जो गमले में कैद होता हैं मनोगत काम फल की तरह होता है जो दूसरों को वष में कर लेता है। आत्मगत काम खुषबु की तरह होती है जिसको बंधन में नही रखा जा सकता है।
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