संयुक्त राष्ट्र की प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी – UNFPA ने आगाह किया है कि लिंग आधारित हिंसा से निपटने के लिए प्रजनन देखभाल या उपचार के लिए धन की कटौती के कारण बहुत से लोगों को अनगिनत पीड़ाएँ हो रही हैं. उनमें से लाखों लोग पहले से ही युद्ध, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं की भयावहता का सामना कर रहे हैं. ये पीड़ाएँ काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य से लेकर हेती, सूडान और उससे भी परे अनेक देशों में हो रही हैं. एजेंसी, हाल ही में की गई भारी धन कटौतियों के प्रभाव का आकलन करने के लिए काम कर रही है, जिसमें पाया गया है कि मानवीय संकटों में कठिन जीवन जी रही महिलाओं और लड़कियों को अनदेखा किए जाने का जोखिम है. Tweet URL
अन्धकारमय भविष्यसहायता की जैसे-जैसे कमी बढ़ती जा रही है, महिलाओं और लड़कियों को उनकी सबसे बड़ी ज़रूरत के समय में अनदेखा किया जा रहा है. एजेंसी ने उनकी दुर्दशा की तरफ़ ध्यान आकर्षित करने के लिए, एक नए अभियान में यह दलील दी है – ‘रौशनी की लौ को बुझने नहीं दें’.इस साल की गम्भीर धन कटौती के प्रभावी होने से पहले ही, यूएनएफ़पीए की मानवीय सहायता योजनाओं के लिए, वर्ष 2024 में 30 प्रतिशत से कम धन उपलब्ध था.ज़मीनी स्तर पर धन उपलब्धता की स्थिति और भी अधिक ख़राब होने का अनुमान है, जिसका अर्थ है - दाइयों की कमी; प्रसव सम्बन्धी जटिलताओं से निपटने के लिए दवाओं और उपकरणों की कमी; सुरक्षित स्थानों में तालाबन्दी; कुल मिलाकर कम स्वास्थ्य सेवा और लिंग आधारित हिंसा से बचे लोगों के लिए परामर्श या क़ानूनी सेवाओं में कटौती.संयुक्त राज्य अमेरिका ने दुनिया भर में UNFPA को लगभग 33 करोड़ डॉलर की कटौती की घोषणा की है, जो एजेंसी के अनुसार, मातृ मृत्यु को रोकने के प्रयासों को बड़ी हद तक कमज़ोर कर देगी.एजेंसी ने हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान में होने वाले विनाशकारी प्रभावों के बारे में चेतावनी दी, जो दुनिया के सबसे ख़राब मानवीय संकटों में से एक है.ख़तरें की घंटीसंकटग्रस्त क्षेत्रों में स्वास्थ्य और सुरक्षा सेवाओं की आवश्यकता सबसे अधिक है: वहाँ 70 प्रतिशत महिलाएँ लिंग आधारित हिंसा की शिकार हैं जोकि संकट बिना वाले क्षेत्रों की दर से दोगुनी है.इसके अलावा, लगभग 60 प्रतिशत रोकी जा सकने वाली मातृ मौतें, संकटग्रस्त देशों में होती हैं.Don’t Let the Lights Go Out अभियान के माध्यम से, संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य, संकट में फँसी महिलाओं और लड़कियों की ज़रूरतों की तरफ़ ध्यान आकर्षित करना, उनकी सहायता के लिए धन जुटाना और इस बात की पुष्टि करना है कि महिलाओं के स्वास्थ्य, सुरक्षा और अधिकारों को, किसी भी मानवीय सहायता कार्रवाई में सदैव प्राथमिकता पर रखा जाए.ग़ाज़ा के बेबस लोगफ़लस्तीनी क्षेत्र ग़ाज़ा में, भोजन और आवश्यक दवाओं की गम्भीर कमी के कारण, गर्भवती महिलाएँ, स्तनपान कराने वाली माताएँ और बच्चे, आमतौर पर गम्भीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं.ख़बरों में बताया गया है कि हर पाँच में से एक व्यक्ति, अब भुखमरी का सामना कर रहा है. अनुमानित 55 हज़ार गर्भवती महिलाओं के लिए, भोजन की पर्याप्त ख़ुराकें नहीं मिलने से गर्भपात, मृत जन्म और कुपोषित नवजात शिशुओं का जोखिम बढ़ जाता है.यूएन एजेंसी के साथ बात करने वाले, अल-अवदा अस्पताल के एक डॉक्टर के अनुसार, "गर्भावस्था के दौरान मातृ कुपोषण और एनीमिया से सीधे जुड़े कम वज़न वाले शिशुओं के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है."स्वास्थ्य प्रणाली जर्जरअस्पतालों, स्वास्थ्य सुविधाओं और चिकित्सा कर्मचारियों पर लगातार हमलों ने, स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बर्बाद कर दिया है. इन भयावह स्थितियों के बीच, लगभग 11 हज़ार गर्भवती महिलाओं के पहले से ही अकाल के मुँह में चले जाने का ख़तरा बताया जा रहा है.और लगभग 17 हज़ार गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को, आने वाले महीनों में तीव्र कुपोषण के लिए तत्काल उपचार की आवश्यकता होगी. बहुत से लोगों के लिए, इसका नतीजा विनाशकारी है.वर्ष 2025 में, UNFPA ने, फ़लस्तीन में जारी और उभरती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए, $9 करोड़ 9 लाख धनराशि जुटाने की अपील जारी की हुई है,मगर अप्रैल तक, केवल $1.25 करोड़ ही प्राप्त हुए हैं.
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