अमृतसर। जलियावाला बाग में ब्रिटिश काल में हुए नरसंहार की याद दिलाने वाले कुंए से भावनाएं निकलती हैं। और इसके पुनरोद्धार के जरिए हम इसकी पहचान नहीं खोने देंगे। यह कहना है 1919 में बैसाखी के दिन हुए इस नरसंहार के शहीदों के परिजनों का, जो इसके पुनरोद्धार के सरकार के निर्णय का विरोध कर रहे हैं।
यहां 6.5 एकड़ भूमि में फैले उद्यान स्थल पर आने वाले 80 वर्ष से ऊपर के बुजुर्गो की भावनाओं के अनुसार, "जलियांवाला बाग से जुड़ी कहानियां अभी भी हमारे दिमाग में ताजा हैं।"
यहां 13 अप्रैल, 1919 को कर्नल रेजीनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर ने ब्रिटिश सैनिकों के साथ वहां पहुंचकर पंजाबी नववर्ष के मौके पर शांतिपूर्ण इकट्ठे हुए लोगों पर गोलीबारी कर दी थी।
स्वर्ण मंदिर के पास स्थित परिसर में नरसंहार से भारतीय आजादी के आंदोलन की चिंगारी को हवा लगी थी।
कमजोर हो चुकीं अपनी आखों से परिसर के पुनर्निर्माण को देखते हुए एक वृद्ध मदन लाल तनेजा ने कहा, "हमने इस कुएं में अपने कई अपनों को खोया है। वे अपनी जान बचाने के लिए नहीं, बल्कि देश की गरिमा बचाने के लिए इस कुएं में कूद गए थे।"
जनरल डायर ने अपने सैनिकों के साथ अंदर आने के बाद एक मात्र निकास को बंद कर दिया था और बिना किसी चेतावनी के शांतिपूर्वक इकट्ठे हुए पुरुषों, महिलाओं और बच्चों पर गोलीबारी की गई थी। भगदड़ मचते ही तनेजा के चाचा कुंए में कूद गए थे।
अपना पूरा जीवन पंजाब के पवित्र शहर अमृतसर में बिता चुके तनेजा ने कहा कि यह कुंआ उस हकीकत की स्मृति है।
उनके दोस्त और नियमित तौर पर जलियांवाला बाग आने वाले लाला अमरनाथ ने कहा कि ईंटों से निर्मित कुएं को उसके वास्तविक रूप में रहना चाहिए और इसकी संरचना को कभी बदला नहीं जाना चाहिए।
लगभग एक सदी पुराना कुआ निर्दोषों की नृशंस हत्या की गवाही दे रहा है और युवा पीढ़ी को स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान दिए गए बलिदान की याद दिलाता है।
वहां लगी एक पट्टिका पर लिखा है, "यह स्थान भारत को ब्रिटिश सरकार से आजाद कराने के लिए अहिंसक संघर्ष के लिए शहीद हुए हजारों भारतीय देशभक्तों के खून से नम है।"
गोलीबारी, भगदड़ और घुटन से मरने वालों की संख्या पर अभी भी विवाद है।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने 20 फरवरी, 2013 को जलियांवाला बाग में श्रद्धांजलि अर्पित की थी।
अधिकारियों का कहना है कि जलियांवाला बाग के नवीकरण और मरम्मत कार्य इसी महीने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की निगरानी में शुरू हुआ है।
इसके लिए केंद्र ने संस्कृत मंत्रालय के माध्यम से पहले चरण के लिए 20 करोड़ रुपये जारी कर दिए हैं।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली जलियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट के ट्रस्टी श्वैत मलिक ने आईएएनएस से कहा, "यहां हम शहीद कुंआ के ऊपर गुंबद के आकार का पारदर्शी कैनोपी लगाएंगे, जिससे कुंआ बेहतर तरीके से दिख सके।"
--आईएएनएस
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