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ऋषि चिंतन: ईश्वर पक्षपाती नहीं है, पात्रतानुसार अनुदान वरदान मिलते हैं

ईश्वर का प्यार और अनुदान उसकी हर सन्तान के लिए प्रचुर परिमाण में विद्यमान हैं। पर उसकी उपलब्धि पात्रता के अनुरूप ही होती है । किसी के लिए चपरासी बनना भी सौभाग्य है और किसी को जिस श्रेणी का अफसर बनाया गया है उसे उससे भी बड़ी पदोन्नति जल्दी ही मिल जाती है। इसमें भेदभाव या पक्षपात जैसा कोई अन्याय नहीं । ऊँची श्रेणी में उत्तीर्ण होने वाले ही पुरस्कृत होते और छात्रवृत्ति पाते हैं ।

दैवी अनुग्रह और अनुदान प्राप्त करने के लिए यह प्रमाणित करना पड़ता है कि प्रार्थी ने उसके लिए उपयुक्त प्रामाणिकता अर्जित कर ली है । इतना कर चुकने के उपरान्त योग्यता का मूल्य प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं आती । किन्तु यदि इससे बचकर नियुक्ति कर्ता की मनुहार कर छुटपुट उपहारों के सहारे फुसलाने का प्रयास करे और अपना उल्लू सीधा करने के लिए स्वामि-भक्ति की दुहाई दे तो उसका सफल होना कहाँ तक संभव है ? बैंक में ढेरों रुपया होने पर भी किसी का उतना बड़ा ही चेक स्वीकारा जाता है जितनी उसकी अमानत जमा है । कर्ज भी वापस किए जाने की गारन्टी पर ही मिलता है । इन मर्यादाओं की उपेक्षा करके कोई मैनेजर का स्तवन, अभिवादन या पुष्प अक्षत भेंट करके मनचाही राशि प्राप्त नहीं कर सकता। इस विश्व व्यवस्था का कण-कण नियम मर्यादाओं में बँधा है, ईश्वर भी । उससे कोई नाक रगड़कर, गिड़गिड़ा कर, कुछ ऐसा प्राप्त नहीं कर सकता जो शानदार हो और आकांक्षाओं के अनुरूप हो। ईश्वर से बहुत कुछ पाया जा सकता है किन्तु नियत मर्यादाओं के अनुरूप ही ।



जिन आध्यात्मिक अनुदानों की पात्रता के अनुरूप हमें उच्च स्तरीय ऋद्धि-सिद्धियाँ मिलती हैं, उन्हें व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता और प्रखरता कहा जाना चाहिए । दूसरे शब्दों में उन्हें चिन्तन और चरित्र की प्रामाणिकता भी कहा जा सकता है । सर्व प्रथम साधक को इसी के लिए प्रयत्न करना होता है । अगली उपलब्धियाँ प्राप्त करने वाला पक्ष अति सरल है । रँगाई से पहले धुलाई आवश्यक है । बोने से पहले खेत जोतना पड़ता है । ईश्वर की अनुकम्पा पाने के लिए भी यही करना पड़ता है । अखंड ज्योति जनवरी १९९३- पृष्ठ-05 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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Web Title-Rishi Chintan: God is not partial, grants and blessings are given as per eligibility
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