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ग़ाज़ा सीमा पर इसराइली नाकाबन्दी के कारण बच्चे भूखे पेट सोने को मजबूर

 - World News in Hindi

ग़ाज़ा में काम कर रही संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी सहायता एजेंसी - UNRWA ने, इसराइल द्वारा ग़ाज़ा पट्टी की दो महीने से जारी नाकाबन्दी की कड़ी निन्दा की है. इस नाकाबन्दी की वजह से रोज़ाना बमबारी झेल रहे परिवारों के पास बमुश्किल इतना भोजन बचा है जिससे वो केवल जीवित रह सकें, और बीमार व घायल लोगों को जीवनरक्षक चिकित्सा सहायता तक नहीं मिल पा रही है. फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी - UNRWA की प्रवक्ता जूलियेट टौमा ने मंगलवार को कहा, "ग़ाज़ा की घेराबन्दी, बच्चों और बुज़ुर्गों की जान ले रही है." Tweet URL

उन्होंने जिनीवा में पत्रकारों से कहा, "सात या आठ लोगों का पूरा परिवार सिर्फ़ एक ही डिब्बा बीन्स या मटर में गुज़ारा कर रहे हैं. ऐसी स्थिति के बारे में सोचिए, जब आपके पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं हो. ग़ाज़ा में बच्चे भूखे पेट सो रहे हैं.”प्रवक्ता जूलियेट टौमा ने कहा कि आज भी राहत सामग्री से भरे हज़ारों ट्रकों को ग़ाज़ा में घुसने नहीं दिया जा रहा है. "हमारे पास 5 हज़ार से ज़्यादा ट्रक हैं, जो इस क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों में खड़े हैं और जीवन बचाने वाली सामग्री के साथ तैयार हैं.”उन्होंने कहा, "यह फै़सला मानवीय सहायता के सभी प्रयासों को गम्भीर रूप से प्रभावित कर रहा है और ग़ाज़ा के आम नागरिकों की ज़िन्दगी और उनके अस्तित्व पर ख़तरा पैदा कर रहा है, जो पहले से ही हर दिन भारी बमबारी का सामना कर रहे हैं.”रफ़ाह में भारी तबाहीसंयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी, UNRWA ने कहा है कि ग़ाज़ा के दक्षिणी शहर रफ़ाह को इस क़दर नष्ट कर दिया गया है कि वह अब पूरी तरह "मिटा दिया गया" लगता है. पहले यह शहर मिस्र के ज़रिए ग़ाज़ा में राहत सामग्री पहुँचाने का सबसे बड़ा रास्ता हुआ करता था, लेकिन अब सामने आए हवाई वीडियो में, दूर-दूर तक केवल मलबा और ढहे हुए मकान नज़र आते हैं.UNRWA ने मुताबिक़, "रफ़ाह अब उस शहर जैसा बिल्कुल नहीं है जैसा वह कभी हुआ करता था... चारों ओर सिर्फ़ तबाही ही तबाही है."शहर के 97 प्रतिशत हिस्से के लिए जबरन विस्थापन के आदेश जारी किए जा चुके हैं, जिससे लगभग 1 लाख 50 हज़ार लोग उजड़ चुके हैं.लगभग 12 महीने पहले, इसराइली सेना ने इस इलाक़े में प्रवेश किया था, जिससे 14 लाख लोग विस्थापित हो गए थे और उनके घर, स्वास्थ्य केन्द्र और आश्रय स्थल या तो क्षतिग्रस्त हो गए या पूरी तरह नष्ट हो गए.ग़ाज़ा में मानवीय सहायता कार्रवाई के लिए दान देंसब कुछ फिर से शुरू करना पड़ाग़ाज़ा में 90 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी को अपना घर छोड़ना पड़ा है, "ना सिर्फ़ एक बार, दो बार, बल्कि कुछ लोगों को 12 या 13 बार तक विस्थापित होना पड़ा... अब उन्हें हर बार ज़िन्दगी को फिर से शुरू करना पड़ रहा है."अक्टूबर 2023 में युद्ध शुरू होने से पहले, ग़ाज़ा के लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हर दिन लगभग 500 ट्रक, खाद्य सामग्रियाँ और ज़रूरी सामान लेकर आया करते थे. लेकिन गत 2 मार्च के बाद से अब तक कोई मानवीय या वाणिज्यिक सामान वहाँ नहीं पहुँचे हैं.नाकाबन्दी ने खाने-पीने की चीज़ों, दवाइयों, आश्रय सामग्री और साफ़ पानी के भंडार ख़ाली कर दिए हैं, जिससे काला - बाज़ारी को बढ़ावा मिला है और वहाँ क़ीमतें 10 से 20 गुना, कभी-कभी 40 गुना तक बढ़ गई हैं. प्रवक्ता जूलियेट टौमा ने कहा, "आप अपने बच्चों को कुछ भी नहीं दे पा रहे हैं, और अपनी आँखों के सामने उन्हें भूखा मरते देख रहे हैं."संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के अनुसार, 19 जनवरी से 18 मार्च 2025 तक लागू रहे युद्धविराम अवधि की तुलना में, हाल के सप्ताहों में खाद्य पदार्थों की क़ीमतों में, 1400 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है, जो कि है.गत शुक्रवार (25 अप्रैल 2025) को, UN एजेंसी ने अपने बचे-खुचे खाद्य भंडार सामुदायिक रसोईघरों को सौंप दिए, जो ज़रूरतमन्द लोगों को दाल का सूप और चावल जैसे गर्म खाने परोस रहे हैं. इन रसोईघरों के भोजन भंडार, आने वाले कुछ ही दिनों में ख़त्म हो सकते हैं, जबकि बीते सप्ताहान्त के दौरान, 16 रसोईघर पहले ही बन्द हो चुके हैं. इसके अलावा, WFP द्वारा समर्थित सभी 25 बेकरी अब बन्द हो चुकी हैं.प्रवक्ता टौमा ने कहा, "हमें आने वाले दिनों में और सामुदायिक रसोईघरों के बन्द होने की आशंका है, क्योंकि उनके पास ज़रूरी सामग्री नहीं है."ग़ाज़ा के लोगों के लिए रोज़ की चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती है - भोजन का प्रबन्ध करना और उसे पकाने के लिए ईंधन ढूँढना, क्योंकि खाना पकाने के लिए गैस उपलब्ध नहीं है. प्रवक्ता टौमा ने बताया, "परिवार अब प्लास्टिक जला कर खाना पकाने को मजबूर हैं." © UNRWA

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