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ग़ाज़ा के पत्रकार: हालात के चश्मदीद गवाह और त्रासदी के शिकार

 - World News in Hindi

"मैं युद्ध में अपनी एक टांग खोने के बाद फ़ोटो पत्रकारिता में केवल काम के लिए नहीं लौटा, बल्कि इसलिए भी क्योंकि मुझे बचपन से फ़ोटोग्राफ़ी से प्यार है", ये शब्द हैं एक फ़लस्तीनी पत्रकार समी शहादा के, जिन्हें अपनी एक टांग, ग़ाज़ा में अप्रैल 2024 में नुसीरात में हुए एक हमले में घायल होने के बाद गँवानी पड़ी थी. उनकी स्थिति युद्धग्रस्त क्षेत्रों में पत्रकारों के लिए उत्पन्न ख़तरों की एक बानगी पेश करती है. समी शहादा ने अपने साथ हुए इस हादसे के बावजूद, फिर अपना कैमरा उठाया और ग़ाज़ा में हो रही त्रासदी को तस्वीरों में दर्ज़ करने के लिए, मैदान में उतर गए.समी अपनी अपंगता को अपने काम के आड़े नहीं आने देना चाहते. उनका कहना है, "फ़ोटो पत्रकारिता छोड़ना मेरे लिए नामुमकिन है, चाहे मुझे कितनी भी मुश्किलों का सामना क्यों नहीं करना पड़े." 3 मई को हर साल मनाए जाने वाले विश्व प्रैस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, ग़ाज़ा में यूएन न्यूज़ संवाददाता ने फ़लस्तीनी पत्रकारों से बातचीत की, जो युद्धग्रस्त इलाक़े से रिपोर्टिंग करते हुए, न केवल जोखिम बल्कि गहरे व्यक्तिगत सदमे भी झेल रहे हैं.विश्व प्रैस स्वतंत्रता दिवस का उद्देश्य, मीडिया की जवाबदेही, न्याय, समानता और मानवाधिकारों को उजागर करने की भूमिका को रेखांकित करना है. © UNICEF/Mohammed Nateel 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इसराइल पर किए गए हमले के बाद शुरू हुए युद्ध के कारण, ग़ाज़ा में पत्रकारों की मौत और घायल होने की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हुई है और यह इलाक़ा एक भीषण मानवीय संकट की चपेट में आ चुका है.तबाही के गवाह समी शहादा अपने एक पैर और बैसाखी के सहारे खड़े होकर, अपने कैमरे के पीछे खड़े होते हैं. समी नीली प्रैस जैकेट पहने हुए, अपने साथियों के साथ मलबे के बीच काम कर रहे होते हैं.उन्होंने यूएन न्यूज़ को बताया, "मैंने वे सारे अपराध देखे, जो यहाँ हुए, और फिर एक ऐसा पल आया जब मैं ख़ुद पर हुए एक अपराध का भी गवाह बना."“मैं एक फ़ील्ड पत्रकार था, खुले इलाके़ में कैमरा लेकर रिपोर्टिंग कर रहा था, पत्रकार पहचान वाली नीली प्रैस जैकेट और हैलमैट पहने हुए था, फिर भी मुझे सीधे निशाना बनाया गया.” UN News यह घटना उनके जीवन का एक निर्णायक मोड़ बन गई. उन्होंने कहा, “इससे पहले मुझे किसी की मदद की ज़रूरत नहीं पड़ती थी, लेकिन अब मुझे मदद चाहिए. इसके बावजूद मेरे अन्दर इस नई हकीक़त से लड़ने का हौसला और जज़्बा है. ग़ाज़ा में पत्रकारों को इसी तरह काम करना पड़ता है.”तबाही के बीच काममोहम्मद अबू नामूस भी ऐसे ही साहसी पत्रकारों में से एक हैं. ग़ाज़ा की एक ध्वस्त इमारत के मलबे में अपने एक सहयोगी के साथ दृश्य रिकॉर्ड करते हुए अबू नामूस कहा, "जब पूरी दुनिया ‘विश्व प्रैस स्वतंत्रता दिवस’ मना रही होती है, तब फ़लस्तीनी पत्रकार उन कार्यस्थलों को याद कर रहे होते हैं जो इस युद्ध में तबाह हो गए.”उन्होंने आगे कहा, "हमें पत्रकारिता का कार्य जारी रखने के लिए बिजली और संचार सुविधा की सख़्त ज़रूरत होती है, लेकिन बहुत से पत्रकारों के पास यह भी उपलब्ध नहीं है. ऐसे में हमें उन दुकानों का सहारा लेना पड़ता है जो संचार सेवा देती हैं. अब सड़कों पर ही हमारे कार्यालयों बन गए हैं.”वे मानते हैं कि ग़ाज़ा पर इसराइली क़ब्ज़े के दौरान फ़लस्तीनी पत्रकारों को जानबूझकर निशाना बनाया गया है, और उनका कहना है कि मीडिया कर्मियों की सुरक्षा की जानी चाहिए, चाहे वे फ़लस्तीन में काम कर रहे हों या दुनिया के किसी भी अन्य हिस्से में.नहीं टूटे हौसलेपत्रकार मोआमेन शरफ़ी ने बताया कि उन्होंने उत्तरी ग़ाज़ा में एक इसराइली हमले में अपने परिवार के कुछ सदस्य खो दिए, लेकिन "निजी, सामाजिक और मानवीय स्तर पर अनेक नकारात्मक प्रभावों के बावजूद, पेशेवर रूप से मेरे काम में कोई बदलाव नहीं आया है.”उन्होंने कहा कि वे पूरी प्रतिबद्धता के साथ अपना काम जारी रखेंगे, और वे उसी दिन ग़ाज़ा नगर की सड़कों से एक सीधा प्रसारण भी करने वाले थे. UN News उन्होंने आगे कहा, "हम अपने कार्य को जारी रखने, अपने पेशेवर मूल्यों को बनाए रखने और दुनिया के सामने मानवता के साथ अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए पहले से कहीं अधिक दृढ़संकल्पित हो गए हैं…""ताकि, ग़ाज़ा के भीतर जो कुछ हो रहा है, विशेष रूप से मानवीय स्थिति और बच्चों, महिलाओं तथा बुज़ुर्गों पर पड़ने वाले गम्भीर प्रभाव, उसे दुनिया तक पहुँचाया जा सके.”

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