हिंदी फिल्मों में कॉमेडियन शब्द की अहमियत उतनी ही है जितनी कि एक हीरो की
होती है। लगभग सभी फिल्में, खासकर अगर वह पारिवारिक पृष्ठभूमि पर आधारित
हैं या रोमांटिक हैं, कॉमेडी की सही मात्रा के बिना अधूरी लगती हैं। अक्सर
फिल्मों में कॉमेडी का मूल कहानी से ज्यादा कुछ लेना-देना नहीं होता है और
अगर ऐसा होता भी है तो इसे कहानी के साथ प्रासंगिक बनाए रखने के लिए एक
बेहद पतली सी कड़ी होती है।
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हर उस मुख्य अभिनेता ने, जिसने सफलता का भरपूर स्वाद चखा है,
कॉमेडी में अपना हाथ आजमाया है। इंडस्ट्री में कुछ मौलिक कॉमेडियन हैं और
कुछ ऐसे हैं, जो रिक्त स्थानों की पूर्ति करते हैं। कुछ ऐसे कॉमेडियन भी रह
चुके हैं, जो अपने आप में सुपरस्टार थे। इनके साथ ही कुछ ऐसे कॉमेडियन भी
हैं, जो बी या सी ग्रेड मूवी में सटीक बैठते हैं। इंडस्ट्री में ऐसे भी
कॉमेडियन रहे हैं, जो बिना अधिक मेहनत किए दर्शकों को खुलकर हंसाने की
क्षमता रखते थे।
न केवल हिंदी फिल्मों में, बल्कि क्षेत्रीय भाषाओं
की फिल्मों में भी उनका अपना स्टार कॉमेडियन होता है। न केवल पुरुष, बल्कि
महिलाओं ने भी कॉमेडियन के रूप में दर्शकों को खूब हंसाया है, लेकिन उन्हें
इस काम के लिए केवल कुछ ही मिनट दिए जाते थे और वे अपनी भाव-भंगिमा से
लोगों को हंसाते थे। उदाहरण के तौर पर आप मनोरमा या टुनटुन को ले सकते हैं।
अक्सर
पारिवारिक दर्शकों को ध्यान में रखते हुए इस तरह की फिल्में बनाई जाती
थीं, जिनमें किसी गंभीर मुद्दे से दर्शकों के ध्यान को कुछ समय तक के लिए
भटकाने की जरूरत थी। ऐसे में इन फिल्मों में कॉमेडी को जोड़ा गया। इन्हें
कॉमिक रिलीफ बताया जाने लगा। आजकल की फिल्मों की तुलना में उस वक्त फिल्में
थोड़ी ज्यादा लंबी होती थीं, ऐसे में ये कॉमिक रिलीफ मददगार होते थे।
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