पेशे
की दीवारें – एक महिला वकील आत्मविश्वास से खड़ी है, जबकि
उसके पीछे के गलियारे में पुरुष सहयोगी अनौपचारिक चर्चाओं में मग्न हैं। यह चित्र कानूनी
पेशे में महिलाओं के लिए सीमित नेटवर्किंग अवसरों का प्रतीक है।
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महिला अधिवक्ताओं के लिए नेटवर्किंग की चुनौतियाँ: बॉयज़ क्लब मानसिकता से पार पाने की राह
एक महिला अधिवक्ता के रूप में, मैं अक्सर खुद
को ऐसे पेशे में पाती हूं जहाँ नेटवर्किंग करियर की तरक्की में बेहद अहम भूमिका निभाती
है। अदालतों के गलियारों में, कानूनी सम्मेलनों में या अनौपचारिक मेल-जोल के मौकों
पर, संपर्क ही अवसर तय करते हैं। लेकिन अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में मैं यह भी महसूस
करती हूं कि यह नेटवर्किंग पुरुषों और महिलाओं के लिए बराबरी से काम नहीं करती। मेरे
पुरुष साथी अक्सर देर रात की चर्चाओं, गोल्फ आउटिंग्स या विशिष्ट फर्म इवेंट्स में
घुल-मिल जाते हैं — ये वो जगहें हैं जहाँ महिलाएं या तो न के बराबर होती हैं या फिर
पूरी तरह से नजरअंदाज की जाती हैं। जबकि पुरुष सहजता से इन मंडलियों का हिस्सा बन जाते
हैं, हमें — यानी मुझे और मेरी कई महिला सहयोगियों को — पेशेवर रिश्ते बनाने के लिए
वैकल्पिक रास्ते तलाशने पड़ते हैं। यह चुनौती सिर्फ पहुँच की नहीं, बल्कि इस बात की
भी है कि हम अपने व्यवहार में प्रोफेशनलिज़्म और सहजता का संतुलन कैसे बनाए रखें, ताकि
हमारी महत्वाकांक्षाओं को गंभीरता से लिया जाए।
कानूनी नेटवर्किंग हमेशा औपचारिक परिचयों या
लिंक्डइन प्रोफाइल्स तक सीमित नहीं होती — यह अक्सर उन
अनौपचारिक जगहों पर होती है जहाँ पहुँच बिना कहे ही दी जाती है और पहचानों के आधार
पर तय होती है। पुरुषों के लिए ये जगहें सहज और उपलब्ध होती हैं, लेकिन महिलाओं के
लिए — खासकर जो शुरुआत कर रही होती हैं — यह वातावरण कई बार बंद दरवाज़े जैसा लगता
है। कल्पना कीजिए, एक देर रात का क्लाइंट डिनर जहाँ आप अकेली महिला हैं — क्या आप जाएंगी,
यह सोचकर कि यह रणनीतिक रूप से फायदेमंद हो सकता है? या फिर आप पीछे हटेंगी, यह सोचकर
कि बातों का गलत मतलब न निकले? या जब कोई वरिष्ठ अधिवक्ता “घर छोड़ने” की पेशकश करे,
तो आप क्या करेंगी — उसका आभार मानें या फिर सामाजिक उलझनों से बचने के लिए मना कर
दें? यह निर्णय हमारी रोज़ की ज़िंदगी का हिस्सा हैं — यह कोई डर नहीं, बल्कि हमारे
वास्तविक अनुभव हैं।
महत्वपूर्ण चर्चाएँ अक्सर चाय की टपरी, वरिष्ठों
के जन्मदिन समारोह, क्रिकेट मैचों या चैंबर की बैठकों में होती हैं — जहाँ महिलाओं
को या तो बुलाया नहीं जाता, या वे खुद सहज महसूस नहीं करतीं। आमंत्रण मिलने पर भी माहौल
ऐसा होता है कि महिलाओं को मेहमान की तरह महसूस होता है, हिस्सेदार की तरह नहीं। “अक्सर
ऐसा लगता है कि जैसे उन बातों में हिस्सा लेने का पूरा हक़ नहीं मिला।” वरिष्ठ अक्सर
उन्हीं अधिवक्ताओं को काम सौंपते हैं जिनसे वे “आरामदायक” महसूस करते हैं — और यह सुविधा
अक्सर पुरुषों के साथ होती है। जब एक महिला अधिवक्ता पहल करती है, तो उसे कई बार “बहुत
ज़्यादा उत्साही” कहा जाता है, जबकि वही पुरुषों में “डायनामिक” कहलाता है।
एक महिला अगर वरिष्ठ के चैंबर में ज़्यादा समय
बिताए, तो उसे गलत नजरों से देखा जा सकता है, जबकि पुरुष को मेहनती समझा जाता है।
“जब एक पुरुष वकील खुद को हाईलाइट करता है तो वह कॉन्फिडेंट लगता है, लेकिन जब महिला
करती है तो उसे ‘attention-seeking’ कह दिया जाता है।” देर रात मीटिंग्स, आखिरी वक्त
की रणनीति कॉल्स, या 8 बजे के बाद होने वाले नेटवर्किंग इवेंट्स अक्सर महिलाओं के लिए
बाधा बन जाते हैं, खासकर तब जब वे पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी संभाल रही होती हैं।
नेटवर्किंग में आने वाली बाधाओं से निपटने की रणनीतियाँ
महिला-केन्द्रित नेटवर्क बनाना
जैसे कि महिला अधिवक्ताओं का व्हाट्सएप ग्रुप, लंच सर्कल या किताब चर्चा — यह सुरक्षित जगहें होती हैं जहाँ बिना झिझक अनुभव साझा किए जा सकते हैं।ऐसे प्लेटफॉर्म मानसिक समर्थन के साथ-साथ पेशेवर सुझाव, रेफरल और सह-परामर्श के अवसर भी प्रदान करते हैं।
डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग
सोशल मीडिया, वेबिनार्स, और ऑनलाइन मंचों के ज़रिए महिलाएं अपनी आवाज़ और सोच से पहचान बना सकती हैं।जब आपका काम ऑनलाइन दिखता है, तो लोग आपको सिर्फ नाम से नहीं बल्कि आपकी सोच और क्षमता से भी पहचानने लगते हैं।
मेंटॉरशिप और स्पॉन्सरशिप
एक अच्छा मार्गदर्शक आपके करियर की दिशा बदल सकता है — और यही ज़िम्मेदारी आगे चलकर महिलाओं को दूसरों के लिए निभानी चाहिए।सही समय पर मिली सलाह, समर्थन और प्रतिनिधित्व कई बार वर्षों की मेहनत को एक नई दिशा दे सकता है।
पैनल और समितियों में भागीदारी
जब लोग आपको मंच पर देखते हैं या किसी सर्कुलर में आपका नाम पढ़ते हैं, तो वे आपको एक गंभीर पेशेवर के रूप में स्वीकार करते हैं।ऐसे मंच आपके आत्मविश्वास को भी निखारते हैं और आपको कानूनी समुदाय में दृढ़ उपस्थिति प्रदान करते हैं।
सीमाएं स्पष्ट करना
प्रोफेशनल व्यवहार और व्यक्तिगत गरिमा दोनों एक साथ निभाए जा सकते हैं, बशर्ते हम अपनी सीमाएं खुद तय करें।स्पष्ट संवाद और व्यवहारिक मर्यादा आपको सम्मान दिलाने के साथ-साथ अपवांछित स्थितियों से भी बचाती है।
पुरुष सहयोगियों की भागीदारी
परिवर्तन में पुरुषों की भी अहम भूमिका है — जब कोई पुरुष वरिष्ठ महिला अधिवक्ता को सशक्त तरीके से प्रस्तुत करता है, तो पूरे माहौल में बदलाव आता है।ऐसे सहयोगी न केवल एक उदाहरण स्थापित करते हैं, बल्कि पेशे में समानता की संस्कृति को भी मजबूत करते हैं।
आगे
का
रास्ता
— मेरी
नज़र
से
मुझे लगता है कि
कानूनी पेशा बहुत आगे
आ चुका है, और
अभी भी प्रगति कर
रहा है। मुझे अपने
वरिष्ठों से समर्थन और
विश्वास मिला, जिसने मुझे
अपनी योग्यता दिखाने के मौके
दिए। लेकिन मैं जानती
हूं कि हर महिला
को यह अनुभव नहीं
मिलता। कई योग्य महिलाएं
इसलिए पीछे रहती हैं
क्योंकि उन्हें माहौल अनुकूल
नहीं लगता। मैं मानती
हूं कि नेटवर्किंग किसी
एक लिंग का क्लब
नहीं होना चाहिए। जब
हम सब एक-दूसरे
के लिए जगह बनाते
हैं, तभी असली बदलाव
आता है। कोर्ट के
बाद अगर एक साधारण,
समावेशी चाय सभा हो,
या जूनियर्स के लिए मेंटरशिप
प्रोग्राम — तो फर्क साफ
दिखेगा। हमें क्लब को
तोड़ने की नहीं, उसे
फिर से डिज़ाइन करने
की ज़रूरत है।
हम
शॉर्टकट
नहीं
ढूंढ
रहे
— हम
वो
रास्ते
गढ़
रहे
हैं
जो
आने
वाली
पीढ़ियों
को
भी
राह
दिखाएंगे।
हम
पेशे
की
परिभाषा
बदल
रहे
हैं
— जहां
स्थान
योग्यता
से
तय
हो,
पहचान
से
नहीं।”
लेखिका - प्रियंका बोरणा, अधिवक्ता,
राजस्थान
उच्च
न्यायालय,
जोधपुर
में
प्रैक्टिस
कर
रही
हैं।
वह जिला सलाहकार बोर्ड, जोधपुर की
सदस्य
हैं
(लीगल
अवेयरनेस
सोसाइटी),तथा राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर खंडपीठ की हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी समिति की
भी
सदस्य
हैं।
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