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श्रीलंका: विस्थापन से लेकर, उम्मीद नहीं टूटने तक का सफ़र

 - World News in Hindi

श्रीलंका में, अरुंधवामाला की कहानी, दशकों के विस्थापन और अनिश्चितता के बाद, उम्मीद, सहनसक्षमता और सामुदायिक समर्थन की ताक़त की कहानी है. उन्हें यह ताक़त, देश में, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)) और अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) द्वारा सरकार के साथ साझेदारी में चलाई जा रही, टिकाऊ पुनर्वास एवं पुनर्गठन (EDRR) योजना से मिली है. अरुंधवामाला ने दशकों तक विस्थापतों का जीवन जिया है.1980 में श्रीलंका में पलाली के एक छोटे से गाँव में पैदा हुईं अरुंधवामाला ने, लगभग 30 परिवारों के समुदाय में परवरिश पाई. उनके पिता एक मछुआरे थे, और उनकी माँ एक गृहिणी. अपने आठ भाई-बहनों व स्कूल के दोस्तों के साथ जीवन सरल और ख़ुशियों से भरा था.लेकिन श्रीलंका में छिड़े गृह युद्ध ने उस शान्तिपूर्ण जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया. 13 अगस्त 1990 को, जब हिंसा बढ़ी, तो अन्य कई लोगों की तरह उनके परिवार ने भी अपने घर से भागकर Point Pedro इलाक़ें के पलावी कल्याण केन्द्र में शरण ली.यह दौर केवल अनिश्चितता और कठिनाइयों के वर्षों की शुरुआत भर था.अरुंधवामाला बताती हैं, हमने 2004 की सुनामी के बाद घर लौटने की कोशिश की. हमें उम्मीद थी कि हम अपना घर फिर से बना सकेंगे. लेकिन टकराव फिर शुरू हो गया, और 2005 में हम फिर से विस्थापित हो गए.""इसके बाद, वो और उनका परिवार, एक अस्थाई शरण से दूसरे स्थानों में भटकते रहे- वानी, वलाजरमदम, मथालन - अन्ततः 2009 में वो नाव से जाफ़ना पहुँचे. वहाँ, उन्होंने चावचेरी में अल्लारई आन्तरिक रूप से विस्थापित आश्रयमें शरण ली. आख़िर में वो पोलीकैंडी वापस पहुँचे, जहाँ उन्होंने अपना जीवन, बिल्कुल नए सिरे से बनाने के लिए संघर्ष किया. © UN Sri Lanka/Hanifiyas Thaiyoob एक नई शुरुआतइन वर्षों के दौरान विस्थापन में, अरुंधवामाला का जीवन उनके रिश्तेदारों की दया और थोड़े बहुत कामकाज के अवसरों पर निर्भर रहा. उनके बड़े भाई का व्यवसाय कुछ स्थिरता प्रदान करता था, लेकिन अरुंधवामाला को अपने बच्चों की शिक्षा और कल्याण की चिन्ता थी.टिकाऊ पुनर्वास और पुनर्गठन (EDRR) परियोजना के व्यापक समर्थन से, उन्हें अपना जीवन पुनर्बहाल करने में सहायता मिली.श्रीलंका में संयुक्त राष्ट्र के एसडीजी कोष द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त - कैनेडा, योरोपीय संघ, ब्रिटेन व संयुक्त राज्य अमेरिका से योगदान के ज़रिए, इस परियोजना के तहत आन्तरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों और वापस लौटने वाले लोगों को पुनर्वास में मदद की जाती है.अरुंधवामाला कहती हैं, "अपने घर में रहना मुझे बहुत ख़ुशी देता है. विस्थापन के समय जब हमारे घर का मालिक हमें जाने के लिए कहता था, तो हमारे पास घर छोड़ने के सिवा कोई विकल्प नहीं होता था. आज, कोई हमें जाने के लिए नहीं कह सकता. मेरा परिवार और मैं अब संतुष्ट और सुरक्षित महसूस करते हैं." © UN Sri Lanka/Sofia Lindell आजीविकाओं का पुनर्निर्माणसंयुक्त राष्ट्र समर्थित इस परियोजना के तहत, आश्रय प्रदान करने के अलावा, आजीविकाएँ बहाल करने में भी मदद की जाती है.संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित एक नागरिक समाज संगठन के ज़रिए, अरुंधवामाला को मछली पकड़ने के जाल दिए गए, जिससे वो सूखी मछली का व्यवसाय शुरू कर सकीं. अब इससे जो आमदनी होती है उससे वो अपनी माँ व बेटे की देखभाल करती हैं. उन्होंने अपने छोटे भाई के साथ भी मछली पकड़ने के जाल बाँटे हैं, जिससे वो भी इससे आय अर्जित करके, अपने परिवार का गुज़ारा चला सके.वह गर्व से कहती हैं, "आज, मैं अपने बच्चों व अपनी माँ की देखभाल कर सकती हूँ, वो भी शान्ति से, अपने ख़ुद के घर में. जब हम एक जगह से दूसरी जगह भागने के लिए मजबूर थे, तब मैंने सोचा भी नहीं था कि कभी ऐसा दिन भी देख पाऊँगी.” © UN Sri Lanka/Hanifiyas Thaiyoob भविष्य की उम्मीदअरुंधवामाला की कहानी संघर्ष, ताक़त और समुदाय के समर्थन की शक्ति की कहानी है. हालाँकि उनके जीवन में स्थिरता आई है, लेकिन वो जानती है कि उनके जैसे कई अन्य लोग अभी भी घर वापस आने और अपने जीवन को फिर से बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं."मैं उम्मीद करती हूँ कि मेरे जैसे अन्य लोग युद्ध से प्रभावित होकर विस्थापित हो गए थे, उन्हें भी इसी तरह ज़मीन व मदद हासिल होंगे, ताकि वे अपने घरों,अपनी जीविकाओँ और अपने जीवन को पुनर्बहाल कर सकें."

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