बेंगलुरु। पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने गुरुवार को कहा कि जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) के आदेशों पर नहीं बल्कि जमीनी हकीकत पर आधारित होना चाहिए।
पूर्व सीएम ने पत्रकारों से कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों की दलीलें सुनने के बाद सीडब्ल्यूएमए के आदेश को बरकरार रखा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कर्नाटक को अगले 15 दिनों के लिए प्राधिकरण के आदेशों का पालन करने का निर्देश दिया गया है।
राज्य सरकार को एक बार फिर कावेरी बेसिन की मौजूदा स्थिति की समीक्षा करनी चाहिए। सीडब्ल्यूएमए के आदेश अंतिम नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह कहना सही नहीं है कि उसका इस मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है।
कावेरी बेसिन में बांधों में जल स्टोरेज स्तर के साथ-साथ तमिलनाडु में जल स्तर की गणना करना महत्वपूर्ण था। पूर्व सीएम ने कहा कि जब सीडब्ल्यूएमए ने अपना पहला आदेश सुनाया, तब राज्य को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर करनी चाहिए थी।
तमिलनाडु को दो बार पानी छोड़ने के बाद ही कर्नाटक ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट पूरी तरह से सीडब्ल्यूएमए पर निर्भर है। सीडब्ल्यूआरसी और सीडब्ल्यूएमए का रवैया ठीक नहीं है।
सीडब्ल्यूएमए को जमीनी हकीकत देखनी चाहिए लेकिन वह आंकड़ों के आधार पर आदेश जारी कर रहा है। पूर्व सीएम बोम्मई ने कहा कि राज्य सरकार का कहना है कि वह सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर करेगी, लेकिन तमिलनाडु पहले ही अवैध रूप से पानी का उपयोग कर चुका है। इसे सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाया जाना चाहिए।
बोम्मई ने कहा कि तमिलनाडु राज्य में वापसी मानसून में बारिश होगी, जबकि कर्नाटक में बारिश का मौसम लगभग समाप्त हो चुका है। इसे शीर्ष अदालत को स्पष्ट किया जाना चाहिए।
राज्य सरकार को अब कम से कम पेयजल प्रयोजनों के लिए पानी संरक्षित करने के लिए संघर्ष करना चाहिए। बीजेपी इस मुद्दे पर राजनीति नहीं करना चाहती थी लेकिन हकीकत ये थी कि फसलें सूख रही थी।
किसानों को प्रत्येक एकड़ के लिए 25,000 रुपये का मुआवजा दिया जाना चाहिए।
(आईएएनएस)
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