भगवान की पूजा-आराधना करते समय अक्सर हम लोग पूजा की थाली में कपूर और दीपक
जलाते हैं। इस दौरान दीपक अथवा थाली को किस प्रकार पकड़ना चाहिए या कितने
दीपक जलाने से कौनसे देव प्रसन्न होते हैं, इन सभी का वर्णन पुराणों में
मिलता है। दीपकों के रहस्यों से परदा हटाता यह विशेष आलेख- ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
मान्यता है कि तुलसी के पौधे पर संध्या को दीपक प्रज्ज्वलित करने से उस
स्थान विशेष पर बुरी शक्तियों का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता और प्रज्ज्वलित
करने वालों के पापों का नाश होता है।
पीपल के वृक्ष के नीचे प्रज्ज्वलित किए जाने वाले दीपक अनेक मान्यताओं
से जुड़े हैं। कहा जाता है कि पीपल पर ब्रह्मा जी का निवास है इसलिए पीपल
को काटने वाला ब्रह्म हत्या का दोषी कहलाता है। शनिदेव को इसका देवता माना
गया है और पितरों का निवास भी इसी में है ऐसी मान्यता है।
केले
के पेड़ के नीचे बृहस्पतिवार को घी का दीपक प्रज्ज्वलित करने से कन्या का
विवाह शीघ्र हो जाता है ऐसी भी मान्यता है। इस प्रकार बड़, गूलर, इमली,
कीकर आंवला और अनेकानेक पौधों व वृक्षों के नीचे भिन्न-भिन्न प्रयोजनों से
भिन्न-भिन्न प्रकार से दीपक प्रज्ज्वलित किए जाने का विधान है।
मान्यता है कि असाध्य व दीर्घ बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति के
पहने हुए कपड़ों में से कुछ धागे निकालकर उसकी जोत शुद्ध घी में अपने इष्ट
के समक्ष प्रज्ज्वलित की जाए तो रोग दूर हो जाता है।
ऐसी भी मान्यता है कि चौराहे पर आटे का चौमुखा घी का दीपक प्रज्ज्वलित करने
से चहुंमुखी लाभों की प्राप्ति होती है।
नजर व टोटकों इत्यादि
के निवारण के लिए भी तिराहे, चौराहे, सुनसान अथवा स्थान विशेष पर दीपक
प्रज्ज्वलित किए जाते हैं।
पूर्व और पश्चिम मुखी भवनों में मुख्य द्वार पर संध्या के समय सरसों तेल के
दीपक प्रज्ज्वलित किए जाने का विधान अत्यंत प्राचीन है। इसके पीछे मान्यता
यह है कि किसी भी प्रकार की दुरात्मा अथवा बुरी शक्तियां घर में प्रवेश
नहीं कर सकतीं।
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