जयपुर। 'शुद्ध आहार मिलावट पर वार' अभियान के तहत फिर एक बार खाद्य विभाग ने बस्सी रीको इंडस्ट्रियल एरिया की सॉस निर्माण फैक्ट्री पर छापा मारा। आयुक्त इकबाल खान के निर्देशन और अतिरिक्त आयुक्त पंकज ओझा की निगरानी में हुई इस कार्रवाई में फैक्ट्री की हालत बेहद चिंताजनक पाई गई। दीवारों पर बदरंग रंग, गंदगी से भरे कच्चे खाद्य सामग्री के भंडार और उचित पोशाक से वंचित फूड हैंडलर्स—ये सब मानो खाद्य सुरक्षा मानकों की धज्जियां उड़ा रहे थे। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या केवल ऐसे छापेमारी अभियानों से मिलावटखोरी पर असल में कोई अंकुश लगाया जा सकता है?
हर बार की तरह इस बार भी जांच के नाम पर कुछ नमूने ले लिए गए, जिन्हें प्रयोगशाला भेजा गया है। रिपोर्ट आने पर फिर वही रटी-रटाई प्रक्रिया अपनाई जाएगी। सवाल यह है कि क्या केवल यही सरकार की रणनीति है? हर कुछ महीनों में छापे मारना, इंप्रूवमेंट नोटिस थमाना और फिर हालात वहीं के वहीं छोड़ देना। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
मिलावटखोरी पर हर बार सख्त कार्यवाही के दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत बताती है कि इस तरह की कार्रवाइयों से सिर्फ फाइलों में हलचल होती है। मिलावट का धंधा न सिर्फ जारी है, बल्कि हर बार नए-नए तरीके से फल-फूल रहा है। आखिर इन अभियानों से कितनी बार हमने देखा है कि कोई बड़ी फैक्ट्री बंद हुई हो या सख्त सज़ा मिली हो?
सवाल यह भी है कि जब विभाग को पहले से पता होता है कि फैक्ट्रियों में गड़बड़ियां हो रही हैं, तो इन्हें पहले क्यों नहीं रोका जाता? हर बार जांच के बाद सुधार के निर्देश तो दिए जाते हैं, लेकिन उनके अमल का ट्रैक रिकॉर्ड क्या है? क्या ये सिर्फ दिखावे की कार्रवाई नहीं है? मिलावट के खिलाफ जंग में क्या सरकार के पास कोई स्थायी समाधान नहीं है?
छापेमारी की यह रस्म कब तक चलती रहेगी, और आम जनता को आखिर कब तक इन मिलावटखोरों से सुरक्षित खाद्य सामग्री का इंतजार करना पड़ेगा?
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