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जयपुर। क्या पाठकों की राय अब मीडिया के लिए महत्वपूर्ण नहीं है? क्या अखबार या मीडिया एक तरफा हो गया है? क्या पाठकों की चिट्ठी अब अखबारों में नहीं छपती है? जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में राजस्थान- बदलते माहौल में मीडिया विषय पर चर्चा के दौरान यह बातें उठाई गईं। चर्चा के दौरान वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र बोड़ा ने कहा कि क्या माहौल मीडिया को बदलता है, या मीडिया माहौल को बदलने की कोशिश करता है।
बोड़ा ने कहा कि पिछले तीस सालों में देश की अर्थव्यवस्था में बदलाव हुआ है। बाजार की मंदी तब खत्म होती है, जब खर्च करने की शक्ति बढ़ती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में सोशल मीडिया हावी है, डिजिटल मीडिया आगे निकल रहा है। हर किसी के हाथ में स्मार्ट फोन है।
सत्र में वरिष्ठ पत्रकार एलपी पंत ने कहा कि ‘बदलते माहौल में मीडिया’ इस विषय को लेकर तीन बातें मेरे सामने आती हैं। पहला क्या यह राजनीति का भक्तिकाल है, दूसरा सांस्कृतिक थकान का वक्त चल रहा है और तीसरा क्या पत्रकारों से ज्यादा सूचनाएं पाठकों के पास हैं। पत्रकार के तौर पर पत्रकारिता एक प्रश्न भी है और एक उत्तर भी है। पत्रकारिता जलेबी की तरह टेढ़ी-मेड़ी और आचार की तरह खट्टी-मीठी है। उन्होंने कहा कि राजस्थान को लेकर बदलते माहौल में मीडिया को लेकर उन्हें बैचेनी तब होती है, जब एक फिल्म के कारण पूरी व्यवस्था से जातीय सेना सरकारों से बड़ी हो जाती है। पंत ने कहा कि वर्तमान में मौलिकता का संकट है और मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता हूं कि जो तूफानों में पलते हैं, वही दुनिया बदलते हैं। पंत ने कहा कि मौलिकता भी एक चुनौती है।
वरिष्ठ पत्रकार विनोद भारद्वाज ने कहा कि वर्तमान समय में खबरों को अपने ढंग से लिखा जाना शुरू हो गया है। पहले एक छोटा सा संपादकीय पूरी अखबार की पॉलिसी को बताता था कि अखबार की क्या पॉलिसी है, लेकिन अब बदलाव तकनीकी ज्यादा हो गया है और विचार गौण हो रहे हैं। भारद्वाज ने कहा कि पहले संपादक को पाठक चिट्ठी लिखकर अपनी बात बताते थे और बहुत से पाठक संपादक को चिट्ठी लिखकर पत्रकार भी बन गए हैं, लेकिन अब बदलते माहौल में अखबारों से खत गायब हो गए हैं और अखबार एकतरफा हो गए हैं।
वरिष्ठ पत्रकार यश गोयल ने कहा कि पिछले 35 सालों से तकनीक बढ़ गई है। पत्रकारिता में तकनीक का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है और पत्रकारिता ने ही लिटरेचर फेस्टिवल को आगे बढ़ाया है। एंकर और सामाजिक कार्यकर्ता फाल्गुनी बंसल ने कहा कि राजनीति से इतर भी खबरें होती हैं। अगर आपकी-मेरी बात छपती नहीं है, तो वह सोशल मीडिया पर आती है। सोशल मीडिया पर भी एजेंडा तय हो जाता है। सबका अलग-अलग नजरिया हो सकता है, लेकिन हमें भी अपने लिए स्पेस चाहिए। अभी वर्तमान में प्रिंट मीडिया के पत्रकार पर ज्यादा जिम्मेदारी होती है, क्योंकि शब्द कभी नहीं मरते हैं। फाल्गुनी बंसल ने कहा अब जंगल की खबरों को भी स्थान मिलने लगा है।
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