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श्यामपुरा कलां में उमड़ा आस्था का सैलाब, बालाजी महाराज के मेले में जुटे हजारों श्रद्धालु
khaskhabar.com: मंगलवार, 27 मई 2025 12:22 PM
कुश्ती, घुड़दौड़ और ज्ञान गीत दंगल बने आकर्षण का केंद्र, बालाजी की झांकी ने खींचा ध्यान
दौसा। श्यामपुरा कलां गांव में रविवार को आस्था और उत्साह का अद्भुत संगम देखने को मिला, जब बाग वाले बालाजी महाराज के मेले का आयोजन धूमधाम से हुआ। मेले की शुरुआत बालाजी महाराज की मनोहारी झांकी से हुई, जिसे देखने के लिए श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। भक्तों ने बालाजी के दरबार में प्रसाद अर्पित कर सुख-समृद्धि की कामना की। मंदिर परिसर में दर्शन के लिए भारी भीड़ रही, और हर कोना श्रद्धा से सराबोर नजर आया।
मेले में धार्मिक आयोजनों के साथ-साथ पारंपरिक ग्रामीण खेलों और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने भी लोगों का मन मोह लिया। कुश्ती दंगल, ज्ञान गीत दंगल, घुड़दौड़ और नाल उठाई प्रतियोगिता विशेष आकर्षण का केंद्र रहे। आयोजन समिति के कोषाध्यक्ष शम्भूलाल गोकुलपुरा और जिलाध्यक्ष सुखराम बारवाल प्रेमपुरा ने जानकारी दी कि कुश्ती दंगल में राजस्थान के अलावा हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश से नामी पहलवानों ने भाग लिया। आखिरी कुश्ती विजेता को ₹21,000 की इनामी राशि दी जाएगी।
गीत-संगीत की सजी महफिलज्ञान गीत दंगल में देशभर से आए लोक गायक कलाकारों ने अपनी सुरमयी वाणी से श्रोताओं को बांधे रखा। कलाकारों ने भक्ति, परंपरा और लोकसंस्कृति को समर्पित गीतों से वातावरण को भक्तिमय बना दिया।
रेशमा मीना बनी आकर्षण का केंद्रमेले में केशवपुर की रेशमा मीना पुत्री ने अद्भुत प्रदर्शन कर सबको चकित कर दिया। आंखों पर पट्टी बांधकर उसने न केवल किताब पढ़ी, बल्कि रंगों की पहचान और नोट की कीमत को केवल सूंघकर पहचान लिया। यह प्रदर्शन दर्शकों के लिए कौतूहल और रोमांच का विषय रहा।
सुरक्षा और व्यवस्था रही चाकचौबंदमेले में शांति व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने के लिए पुलिस बल, स्काउट, स्वयंसेवी संस्थाएं और आयोजन समिति के सदस्य मुस्तैद रहे। जगह-जगह सुरक्षाकर्मी तैनात रहे और पूरे कार्यक्रम को व्यवस्थित ढंग से संपन्न कराया गया।
सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत चित्रश्यामपुरा कलां का यह मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक जड़ों और ग्रामीण परंपराओं का जीवंत चित्र भी है। हर आयु वर्ग के लिए इसमें कुछ न कुछ था — आस्था के रंग, खेलों का उत्साह और लोकगीतों की मिठास।
यह आयोजन न केवल श्रद्धा का प्रतीक बना, बल्कि सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक संरक्षण और ग्रामीण सहभागिता की मिसाल भी पेश कर गया।
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