हरिद्वार। शांतिकुंज के मुख्य सभागार में आज दो दिवसीय राष्ट्रीय शिक्षक गरिमा शिविर का उद्घाटन हुआ। इस अवसर पर शांतिकुंज महिला मंडल प्रमुख शैफाली पंड्या ने कहा कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए साधना अनिवार्य है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चाहे विद्यार्थी का अध्ययन हो या खिलाड़ी का खेल, अभ्यास और साधना ही उन्हें सफलता तक पहुँचाती है।
पंड्या ने कहा कि व्यक्तित्व का समग्र विकास भी साधना से ही संभव है।
इस शिविर में उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, बिहार और दक्षिण भारतीय राज्यों से बड़ी संख्या में शिक्षक-शिक्षिकाएं और भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के सक्रिय कार्यकर्ता सम्मिलित हुए। यह शिविर शिक्षकों को भारतीय संस्कृति और नैतिक मूल्यों से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण मंच है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
गायत्री विद्यापीठ व्यवस्था मंडल की प्रमुख पंड्या ने शिक्षकों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जैसे बीज को विकसित होने के लिए उपजाऊ व संस्कारित भूमि की आवश्यकता होती है, वैसे ही बच्चों को ऐसा वातावरण और संस्कार मिलने चाहिए जहाँ उनकी प्रतिभा का समुचित विकास हो सके। उन्होंने शिक्षकों से आग्रह किया कि वे विद्यार्थियों को केवल पाठ्यक्रम की शिक्षा न दें, बल्कि उनके जीवन में आदर्शों, आत्मविश्वास, सेवा, सच्चाई व आत्मविकास के मूल्यों का भी सिंचन करें।
शैफाली पंड्या ने आगामी वर्ष में परम वंदनीया माताजी की जन्मशताब्दी वर्ष की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि उनके संगठनात्मक व सांस्कृतिक योगदानों को जन-जन तक पहुँचाना हम सभी का नैतिक कर्तव्य है।
शिविर के पहले दिन विभिन्न सत्रों में भारतीय संस्कृति, नैतिक शिक्षा, मूल्यनिष्ठ जीवनशैली और आधुनिक शैक्षिक चुनौतियों पर गहन चर्चा हुई।
इस अवसर पर केपी दुबे ने "समस्त विश्व को भारत का अजस्र अनुदान" विषय पर विशेष जानकारी दी। शिविर के अन्य वक्ताओं में नमोनारायण पाण्डेय, सुधीर श्रीपाद, गोपाल शर्मा और कमल नारायण भी शामिल थे, जिन्होंने अपने विचार साझा किए।
शिविर का समापन वंदनीया माताजी के आदर्शों को नमन करते हुए हुआ। सभी शिक्षकों ने आगामी जन्मशताब्दी वर्ष की तैयारियों में सक्रिय योगदान और भागीदारी करने का संकल्प भी लिया। यह शिविर शिक्षकों को प्रेरित करने और उन्हें भारतीय मूल्यों के साथ सशक्त बनाने में सहायक होगा।
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