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चिन्नास्वामी भगदड़ : जिम्मेदारी की उलझन में आरसीबी, केएससीए, बीसीसीआई या सरकार?

Chinnaswamy stampede: RCB, KSCA, BCCI or the government in a dilemma of responsibility? - Bengaluru News in Hindi

रक्षित अग्रवाल | aggrakshit@gmail.com 4 जून 2025 को बेंगलुरु के एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर जो कुछ हुआ, उसने जश्न के रंग को मातम में बदल दिया। रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (RCB) की पहली आईपीएल जीत के 24 घंटे के भीतर 11 प्रशंसकों की जान चली गई और 47 से अधिक लोग घायल हो गए। इस हादसे ने सिर्फ एक सवाल खड़ा नहीं किया, बल्कि एक पूरी श्रृंखला को जन्म दिया—इस त्रासदी का जिम्मेदार कौन है?
क्या आरसीबी, जो इस विजय उत्सव का प्रमुख आयोजक था, दोषी है? या कर्नाटक राज्य क्रिकेट संघ (KSCA) ने अपनी भूमिका सही से नहीं निभाई? बीसीसीआई, जो क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था है, क्या उसकी निगरानी में चूक हुई? और राज्य सरकार—जो न सिर्फ इस समारोह में मौजूद थी बल्कि इसमें सहयोग भी कर रही थी—क्या वह इससे बच सकती है?
इस लेख में हम हर पक्ष की भूमिका का विश्लेषण करेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर क्यों एक खुशी का मौका 11 परिवारों के लिए स्थायी शोक बन गया।
RCB: जब जश्न जिम्मेदारी से भारी पड़ गया
रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने 18 वर्षों के लंबे इंतज़ार के बाद पहला आईपीएल खिताब जीता। यह जीत सिर्फ एक टीम की नहीं, बल्कि शहर की भावनाओं की जीत थी। लेकिन इस जीत के बाद जो हुआ, उसने आरसीबी की आयोजक भूमिका पर गंभीर सवाल उठा दिए।
प्रचार की जल्दबाज़ी:RCB ने 4 जून को "विजय परेड" और "चिन्नास्वामी में पार्टी" का प्रचार सोशल मीडिया पर जोश और गर्व के साथ किया। लेकिन जब भीड़ का आकलन गलत निकला और प्रशासन ने परेड रद्द करने का फैसला लिया, तब भी RCB का ट्विटर/X अकाउंट शाम 3:14 बजे तक पोस्ट कर रहा था कि "विजय परेड और पार्टी में आएं।"
फ्री पास का वितरण :
आरसीबी ने इस आयोजन के लिए मानार्थ पास देने के लिए लिंक शेयर किए, जिससे और भी ज्यादा भीड़ उमड़ी। जबकि स्टेडियम की क्षमता सीमित थी, सड़कें हजारों लोगों से भर गईं—उनमें से अधिकांश के पास वैध प्रवेश पास भी नहीं थे।
पुलिस चेतावनी की अनदेखी :
डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस अधिकारियों ने RCB और राज्य सरकार को आयोजन स्थगित करने की सलाह दी थी। उन्होंने सुझाव दिया था कि यह कार्यक्रम अगले रविवार को रखा जाए, जब हालात सामान्य हों। लेकिन टीम के आग्रह पर, विशेषकर विदेशी खिलाड़ियों की उपस्थिति को ध्यान में रखते हुए, समारोह तय समय पर ही आयोजित किया गया।

RCB की भूमिका केवल आयोजक की नहीं, बल्कि एक लापरवाह प्लानर की भी बनती है जिसने भारी भीड़ को आमंत्रित किया लेकिन पर्याप्त सुरक्षा प्रबंध नहीं किए।
KSCA : सुविधा दी, पर ज़िम्मेदारी से भागा?
कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन (KSCA), जो चिन्नास्वामी स्टेडियम का प्रबंधन करता है और BCCI से संबद्ध है, इस आयोजन का सह-आयोजक था।
तैयारी का अभाव :
KSCA के पूर्व अध्यक्ष संजय देसाई ने एक टेलीविजन इंटरव्यू में कहा, "किसी भी बड़े आयोजन के लिए कम से कम आठ से दस दिन की तैयारी की जरूरत होती है।" इसके बावजूद सिर्फ एक दिन के भीतर आयोजन की अनुमति दी गई और स्टेडियम को समारोह स्थल में बदल दिया गया।
लॉजिस्टिक्स की विफलता :
स्टेडियम के आसपास भीड़ नियंत्रण, बैरिकेडिंग, एंट्री-एग्जिट मैनेजमेंट जैसे बुनियादी उपाय भी नदारद थे। इतने बड़े आयोजन के लिए KSCA की संरचनात्मक तैयारी लगभग शून्य थी।
KSCA की लापरवाही और तैयारियों की कमी ने इस आयोजन को एक नियंत्रित समारोह के बजाय एक बेकाबू भीड़ में तब्दील कर दिया।
राज्य सरकार : समर्थन में थी या मौन भागीदार?
कर्नाटक के गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह समारोह RCB और KSCA की पहल थी। उन्होंने दावा किया कि सरकार ने आयोजन में सक्रिय भूमिका नहीं निभाई।
परंतु उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार समारोह में मौजूद थे, और बाद में मीडिया से कहा, "यह सिर्फ 10 मिनट का कार्यक्रम था।" उनके इस बयान से जिम्मेदारी कम नहीं होती—बल्कि यह दर्शाता है कि सरकार इस आयोजन से भलीभांति परिचित थी और उसने इसे रोकने की कोई ठोस कोशिश नहीं की।
पुलिस चेतावनी की अनदेखी :
राज्य सरकार को पुलिस अधिकारियों की सिफारिशों का पालन करना चाहिए था। अगर सरकार चाहती, तो इस आयोजन को अनुमति न देती या उसे नियंत्रित करती। लेकिन राजनीतिक हितों और टीम की लोकप्रियता ने शायद उन्हें ऐसा करने से रोका।
राज्य सरकार की भूमिका निष्क्रिय सहमति की रही। वह अगर चाहती, तो समारोह को स्थगित कर सकती थी। लेकिन उसने आयोजन को रोकने के बजाय उसमें राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराई।
BCCI : तकनीकी रूप से बाहर, नैतिक रूप से जवाबदेह?
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने खुद को इस घटना से अलग कर लिया। आईपीएल चेयरमैन अरुण धूमल ने कहा कि प्रतियोगिता "मंगलवार रात को समाप्त हो गई", इसलिए BCCI की कोई भूमिका नहीं थी।
परंतु BCCI के अंतर्गत आने वाली फ्रेंचाइज़ी RCB और संबद्ध इकाई KSCA दोनों ने इस समारोह का आयोजन किया। ऐसे में BCCI की यह दलील कि उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती, आंशिक रूप से कमजोर लगती है।
निगरानी की विफलता :
एक खेल संस्था के रूप में, BCCI को ऐसे आयोजनों के लिए सुरक्षा दिशानिर्देश और गवर्नेंस गाइडलाइंस तय करनी चाहिए थी, खासकर जब वे क्रिकेट के नाम पर हो रहे हों।

BCCI की सीधी भूमिका नहीं थी, लेकिन उसने अपने अधीनस्थ संगठनों की गतिविधियों की सुनिश्चित निगरानी नहीं की, जो कि उसकी एक नैतिक जिम्मेदारी बनती थी।
जनता के सवाल, जिनका जवाब अब भी बाकी है :
क्या एक क्रिकेट जीत इतनी ज़रूरी थी कि उसके लिए जान जोखिम में डाली जाए?
अगर पुलिस ने चेतावनी दी थी, तो आयोजक और सरकार ने उसे क्यों नजरअंदाज किया?
क्या भविष्य में कोई भी खेल आयोजन ऐसे ही बिना पर्याप्त योजना के किया जा सकेगा?
आगे की राह: क्या इस त्रासदी से सबक लिया जाएगा?
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में अभी भी खेल आयोजनों की सुरक्षा और भीड़ नियंत्रण को गंभीरता से नहीं लिया जाता। जब तक कोई व्यापक जवाबदेही तय नहीं होती और आयोजन के लिए एक राष्ट्रीय प्रोटोकॉल नहीं बनता, तब तक ऐसी घटनाएं दोहराई जा सकती हैं।
संवेदनाएं और उम्मीदें
इस लेख के माध्यम से हम उन 11 परिवारों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने अपने प्रियजनों को सिर्फ इसलिए खो दिया क्योंकि जश्न की योजना लापरवाही से बनी थी।
अब वक्त है कि खेल को केवल उत्साह और जश्न के प्रतीक के रूप में नहीं, बल्कि सुरक्षा, जिम्मेदारी और विवेक के साथ जोड़कर देखा जाए।

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