अमरीष मनीष शुक्ला, इलाहाबाद । उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आचार संहिता के फेर में फंसते प्रत्याशियों की खबर आपने खूब पढी होंगी। लेकिन आज हम आपके लिये एक ऐसी खबर लाये हैं। जिसे आज से पहले शायद ही आपने पढी य सुनी हो। आयोग के नियम के चलते एक घोषित प्रत्याशी को निर्दल हो गया और निर्दल हो चुके प्रत्याशी को नियम ने राजनैतिक दल का चिन्ह देकर प्रत्याशी बना दिया । मामला इलाहाबाद के प्रतापपुर विधानसभा सीट का है। यह सीट भाजपा- अपना दल गठबंधन के तहत अपना दल को मिली है। यहां से पूर्व में अपना दल ने करन सिंह को टिकट दिया था। बाद में करन का टिकट काटकर बृजेश पाण्डेय को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया । लेकिन जब चुनाव चिन्ह आवंटित हुआ तो करन को अपना दल का सिंबल कप प्लेट मिला। जबकि घोषित प्रत्याशी बृजेश को आयोग ने निर्दलीय घोषित कर चुनाव चिन्ह बैट दे दिया । अब समस्या यह है कि कार्यकर्ता करे तो क्या करे। एक ओर बृजेश पाण्डेय खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं तो दूसरी ओर करन गुट में जश्न का माहौल है ।
कैसे हुआ यह खेल
दरअसल अपना दल ने करन सिंह को प्रतापपुर सीट से प्रत्याशी घोषित किया । लेकिन बाद में टिकट काट कर बृजेश पाण्डेय को टिकट दे दिया । अनुप्रिया पटेल के पति के नजदीकी करन सिंह ने उपर से मिले आदेश को देखते हुये अपना नामांकन कर दिया। आखिरी दिन बृजेश पाण्डेय ने आधिकारिक तौर पर भाजपा-अद गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर नामंकन किया । लेकिन जब चुनाव चिन्ह आवंटित होने को हुआ तो आयोग के रिटर्निग अफसर भी अचरज में फंस गये । क्योंकि एक दल के दो प्रत्याशी एक ही चिन्ह पाने के लिए अड़े हुये थे।[# अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
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