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आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर, लालटेन के सहारे गुजर रही जिंदगी

Far from the glitz of modernity, going through life with the help of lanterns - Kullu News in Hindi

कुल्लू(धर्मचंद यादव)। एक तरफ प्रधानमंत्री देश में बुलेट ट़ेन चलाने का सपना दिखा रहे हैं तो वहीं उसी देश के गांवों की हालत आज भी ऐसी है कि रात को वहां जनजीवन की लालटेन के सहारे जिंदगी गुजर बसर हो रही है। सरकारी सुविधाओं की बात करें तो वह महज औपचारिकताओं तक सीमित है। कुछ ऐसी ही दास्तान है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के दुर्गम इलाके में स्थित तीन गांव शुगाड़, शाक्टी व मरौड़ की। यह तीनों गांव कुल्लू जिला के बंजार उपमंडल के दूरदारज इलाके में स्थित हैं। जो आज भी रात के अंधेरे को दूर करने के लिये लालटेन का सहारा लेने के लिये विवश हैं लेकिन किसी भी सरकार ने इनके जीवन की राह को सुगम बनाने का कोई प्रयास नहीं किया।
यह कहना है कुल्लू जिला के अत्यंत दुर्गम इलाके में स्थित शुगाड़, शाक्टी व मरौड़ के तेजराम व पूर्व पंचायत सदस्य फूला देवी का। उनका कहना है कि बेहतर तो यह होता कि अगर यहां के सांसद सुविधाओं से परिपूर्ण मनाली गांव के बजाय इन गांव को गोद लेते तो संभवतः यहां की तस्वीर बदल जाती। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों लगभग पांच घंटे पैदल चल कर इन गांवों में पहुंच कर लोगों के दर्द को बांटने का प्रयास किया। यहां के वाशिंदे भी 21वीं सदी की सुविधाओं को हासिल करते हुए देश व दुनिया से जुड़ना चाहते हैं लेकिन सुविधायें मुहैया करवाने का प्रयास कोई नहीं कर रहा है। प्रदेश की सत्ता में कितनी सरकारें आई और चली गई लेकिन यहां के लोगों की जिंदगी सुगम बनाने का काम केवल आश्वासनों तक ही सीमित रहा। चुनाव के दिनों में वायदे तो सभी राजनेताओं ने किये लेकिन हकीकत में आज तक कुछ नहीं हुआ। सड़क व बिजली सुविधा से महरूम इन गांव के बच्चों के लिये वर्षों बाद स्कूल भवन बनाया गया है।
हालांकि यहां प्राथमिक स्कूल कई साल पहले खोल दिया गया था लेकिन यह इस प्रदेश का दुर्भाग्य कहें, शाक्टी प्राथमिक पाठशाला वर्षों तक एक गुफा में चलता रहा। अध्यापक भी वहीं रहता था और दिन में बच्चे भी उसी गुफा में पढाई करते थे। आज भी रात को बिजली के अभाव में यहां के नौनिहाल लालटेन की रोशनी में अपनी पढाई करने को मजबूर हैं। यहां के लोगों की माने तो वर्षों से अक्षर ज्ञान लेकर शिक्षित होने का सपना अभी तक सही तरीके से किसी का भी पूरा नहीं हुआ। हालांकि पांचवीं जमात तक तो गांव के कई बच्चे पढाई कर चुके हैं लेकिन आठवीं कक्षा तक इक्का-दुक्का बच्चे ही पहुंच पाए है। तीन गांवों के लिए हालांकि शाक्टी में प्राथमिक पाठशाला तो स्थापित है लेकिन आगे की पढाई करने के लिए यहां के बच्चों को लगभग 8 से 10 किलोमीटर दूर पैदल सफर कर मझाण मिडिल स्कूल में जाना पड़ता है।
अगर इन गांवों के लोग अपने बच्चों को पांचवीं से आगे पढाना चाहें तो उन्हें मझाण में बच्चों को क्वार्टर लेकर ही पढाई करवानी पड़ती है। आठवीं से आगे की पढाई करने का सपना अगर किसी ने पाला तो इन गांवों से लगभग 15 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है और यहां भी बच्चों के लिये कमरा किराये पर लेकर पढना पड़ता है जोकि यहां के लोगों के लिये संभव नहीं है। शुगाड़, शाक्टी व मरौड़ गांवों से आज तक कोई भी व्यक्ति आठवीं से आगे की पढाई कोई नहीं कर पाया। लिहाजा, ऐसे में यहां से सरकारी नौकरी में सिर्फ दो ही व्यक्ति है जिसमें एक आईपीएच विभाग में तेजराम फीटर के पद पर है जबकि दूसरे लगन चंद चपरासी के पद पर है। जबकि अन्य काई भी व्यक्ति किसी तरह की सरकारी सेवाओं में अपनी जगह नहीं बना पाए हैं। क्योंकि शिक्षा की उचित सुविधा न होने के कारण कोई भी उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर पाया है।

[@ ज्वालामुखी का म्यूजिकल फाउंटेन बदहाल]

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Web Title-Far from the glitz of modernity, going through life with the help of lanterns
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