200 सिलेंडर फटे, हाईवे छह घंटे ठप — एनएचएआई, आरटीओ और प्रशासन की लापरवाही पर उठे सवाल
सैयद हबीब, जयपुर।
जयपुर-अजमेर हाईवे पर मंगलवार रात फिर वही मंजर दोहराया गया, जो कुछ महीनों पहले भांकरोटा में देखने को मिला था। दूदू के पास मोखमपुरा क्षेत्र में एलपीजी सिलेंडरों से भरे ट्रक से केमिकल टैंकर की भीषण टक्कर हुई और देखते ही देखते हाईवे आग का मैदान बन गया। करीब दो घंटे तक 200 सिलेंडर एक के बाद एक फटते रहे। धमाकों की गूंज दस किलोमीटर दूर तक सुनाई दी। पांच वाहन जलकर राख हो गए, एक व्यक्ति जिंदा जल गया और जयपुर-अजमेर हाईवे छह घंटे तक ठप पड़ा रहा। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर ऐसे हादसे बार-बार क्यों हो रहे हैं? क्या भांकरोटा जैसी घटनाओं से प्रशासन ने कुछ नहीं सीखा? क्या एनएचएआई और आरटीओ विभाग सिर्फ रिपोर्ट तैयार करने तक सीमित हैं? यह हादसा महज़ एक ट्रक और टैंकर की टक्कर नहीं, बल्कि उस लापरवाह सिस्टम का आईना है जो हर बार लोगों की जान लेकर भी नहीं जागता।
हादसे की जड़ में जो कारण बताया गया, वह और भी चौंकाने वाला है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आरटीओ की गाड़ी देखकर केमिकल टैंकर चालक घबरा गया और जांच से बचने के लिए उसने ढाबे की तरफ गाड़ी मोड़ दी। इसी दौरान सामने खड़े एलपीजी सिलेंडरों से लदे ट्रक से उसकी टक्कर हो गई। टक्कर के बाद टैंकर के केबिन में आग लगी और केमिकल के संपर्क में आते ही धमाकों की लड़ी शुरू हो गई। यह स्पष्ट संकेत है कि हमारी सड़क सुरक्षा व्यवस्था भय और अव्यवस्था पर टिकी हुई है — जहां नियमों के पालन का डर नहीं, बल्कि आरटीओ से बचने का डर ज्यादा है।
अब यह पूछना जरूरी है कि आखिर एलपीजी और केमिकल जैसे ज्वलनशील पदार्थों को ढोने वाले वाहनों के लिए सुरक्षा मानक कहां हैं? नियम साफ कहते हैं कि ऐसे वाहन आबादी से दूर, निर्धारित मार्गों और समय पर चलें। इन्हें रात में ढाबों या जनसंख्या वाले क्षेत्रों के पास खड़ा करने की सख्त मनाही है। इनके चालकों को सेफ्टी ट्रेनिंग और सुरक्षात्मक उपकरण देना अनिवार्य है। मगर दूदू हादसे की तस्वीरें और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान बताते हैं कि इन नियमों का मखौल उड़ाया जा रहा है। सिलेंडर खेतों में जा गिरे, धमाके ढाबे के अंदर तक पहुंचे, और कई लोग बाल-बाल बचे। यह सब प्रशासनिक सुस्ती और एनएचएआई की निगरानी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
एनएचएआई ने हादसे के बाद कहा कि वह इसकी रिपोर्ट तैयार कर रहा है। लेकिन सवाल यह है कि ऐसी रिपोर्टें आखिर कितने हादसे रोक पाईं? भांकरोटा हादसे के बाद भी रिपोर्ट बनी थी, लेकिन क्या उसके बाद कोई ठोस कदम उठाया गया? क्या हाईवे किनारे खतरनाक माल ढोने वाले वाहनों के लिए अलग पार्किंग ज़ोन बनाए गए? क्या रात में मॉनिटरिंग या स्पीड कंट्रोल सिस्टम लगाया गया? क्या ढाबों के पास ऐसे वाहनों को खड़े होने से रोका गया? अगर नहीं, तो यह सिर्फ कागज़ी कार्रवाई रही, जिसका कोई ज़मीनी असर नहीं हुआ।
हादसे के बाद ट्रैफिक को डायवर्ट करना पड़ा। अजमेर से आने वाले वाहनों को किशनगढ़ से रूपनगढ़ होते हुए जयपुर भेजा गया और जयपुर से अजमेर जाने वालों को टोंक रोड की ओर मोड़ दिया गया। हाईवे पूरी तरह बंद रहा, दमकल की 12 गाड़ियां तीन घंटे तक आग बुझाने में लगी रहीं। सवाल यह भी उठता है कि जब यह मार्ग औद्योगिक और परिवहन की दृष्टि से इतना संवेदनशील है, तो यहां कोई आपातकालीन फायर स्टेशन या केमिकल हादसे से निपटने वाली रैपिड रिस्पॉन्स यूनिट क्यों नहीं है? क्या हम हर बार हादसे के बाद ही जागेंगे?
ढाबे भी अब ‘ब्लास्ट जोन’ बन चुके हैं। जहां एक तरफ खुले में स्टोव जलते हैं, वहीं बगल में गैस ट्रक और टैंकर पार्क रहते हैं। दूदू हादसे में एक सिलेंडर उड़कर ढाबे के अंदर तक जा गिरा, जहां लोग बैठे थे। यह किसी बड़ी तबाही का इशारा था। क्या प्रशासन ने कभी इन ढाबों की सेफ्टी ऑडिट कराई? क्या ऐसे ढाबों को चेतावनी दी गई कि वे ज्वलनशील वाहनों को अपने परिसर के पास खड़ा न होने दें? शायद नहीं, क्योंकि अगर ऐसी सख्ती होती तो यह हादसा न होता।
हर बार की तरह इस बार भी बयान आएगा कि “जांच के बाद कार्रवाई होगी।” लेकिन जांच किसकी होगी? उस ड्राइवर की जो डर के कारण गलत मोड़ ले बैठा, या उस सिस्टम की जो उसे सुरक्षित रास्ता और नियमों का पालन करने की सुविधा नहीं देता? यह हादसा सिर्फ एक ड्राइवर की गलती नहीं, बल्कि आरटीओ, एनएचएआई, फायर डिपार्टमेंट और जिला प्रशासन की सामूहिक विफलता का नतीजा है।
जरूरत अब बहानों की नहीं, व्यवस्था सुधार की है। एलपीजी और केमिकल टैंकरों के लिए अलग रूट चार्ट और समय तय होना चाहिए। ढाबों से दूर सुरक्षित पार्किंग जोन बनाए जाने चाहिए। जीपीएस ट्रैकिंग और रीयल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम को लागू करना होगा। हर 50 किलोमीटर पर आपातकालीन फायर रिस्पॉन्स यूनिट की स्थापना की जानी चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं में तुरंत कार्रवाई हो सके।
दूदू का हादसा महज एक ट्रैफिक दुर्घटना नहीं, यह चेतावनी है कि अगर सख्ती नहीं बरती गई तो जयपुर-अजमेर हाईवे आगे भी ऐसे धमाकों की गूंज से कांपता रहेगा। भांकरोटा से दूदू तक कहानी वही है — हादसा, जांच, रिपोर्ट और फिर खामोशी। जब तक जिम्मेदारी तय नहीं होगी और सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू नहीं होंगे, तब तक यह हाईवे सिर्फ यात्रा का नहीं, बल्कि जोखिम का पर्याय बना रहेगा।
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