भीलवाड़ा। प्रदेश की खेल प्रतिभाओं को सुविधाएं एवं प्रोत्साहन देकर आगे बढ़ाने के सरकार की ओर किए जाते हैं, लेकिन स्थित इसके विपरित नजर आ रही है। भीलवाड़ा जिले के आकोला पुरावतों के गांव निवासी दो खिलाड़ी पढ़ाई और खेल छोडक़र ईंट भटटों पर मजदूरी करने को मजबूर हैं। सरकार की ओर से सुविधाएं नहीं मिलने इनका हौंसला टूट चुका है और वे अपना और परिवार का गुजारा चलाने के लिए मजदूरी करने को मजबूर हैं।
जानकारी के मुताबिक आकोला पुरावतों का गांव में रहने वाले चुन्नी लाल कुमावत के तीन पुत्र हैं और वह गांव के ही राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढाई करते थे। सबसे बड़े बेटे रामेश्वरलाल ने वर्ष 2003 में दिल्ली में 24 से 29 दिसंबर तक आयोजित 49वीं राष्ट्रीय स्कूली खेल चैंपियनशिप में हैंडबॉल टीम में हिस्सा लिया था। तब टीम ने कांस्य पदक जीता था। रामेश्वर कुल 5 बार राज्य स्तर पर एवं दस से अधिक बार जिला स्तर पर खेल चुका है। आठवीं के बाद उसने कोदूकोटा के स्कूल में प्रवेश लिया था। कुछ दिन बाद ही पिता की तबीयत खराब हो गई। वे मजदूरी करने लायक नहीं रहे तब सबसे बड़ा होने के चलते परिवार चलाने की जिम्मेदारी रामेश्वर पर आ गई। इसके चलते वह भी ईंट भट्टे पर काम करने लगा। पढ़ाई करते हुए वह खेल अकादमी में जाना चाहता था, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल सकें। लेकिन सरकारी सुविधाएं नहीं मिली।
हैण्डबॉल खिलाडी भाईयों का कहना है कि हम भी सचिन तन्दुलकर के जैसे बनना चाहते थे लेकिन मजबूरी में हमें खेल और पढाई को छोडऩा पड़ा। सरकार अगर खिलाडियों की मदद करें तो देश के ग्रामीण इलाकों में भी काफी प्रतिभा छुपी हुई है। इन भाइयों के हैंडबॉल प्रशिक्षक रहे पीटीआई चंद्रशेखर प्रजापत का कहना है कि इनके अलावा भी गांव में ऐसे कई खिलाड़ी हैं जो सरकार की ओर से अनदेखी के चलते बीच में ही पढ़ाई खेलना छोड़ देते हैं।
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