• Aapki Saheli
  • Astro Sathi
  • Business Khaskhabar
  • ifairer
  • iautoindia
1 of 1

पहलगाम में गोलियाँ: धर्म पर नहीं, मानवता पर चली थीं

Bullets fired in Pahalgam: They were fired on humanity, not on religion - Hisar News in Hindi

श्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुआ आतंकी हमला सिर्फ एक गोलीबारी नहीं थी। यह एक ऐसा खौफनाक संदेश था जिसमें गोलियों ने धर्म की पहचान पूछकर चलना शुरू किया। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो आतंकियों ने पहले पर्यटकों से उनका धर्म पूछा, फिर उन्हें जबरन कलमा पढ़ने के लिए कहा, और इंकार करने पर गोली मार दी। यह न केवल एक घृणित धार्मिक कट्टरता का प्रदर्शन था, बल्कि एक सुनियोजित राजनीतिक षड्यंत्र भी था, जिसका उद्देश्य कश्मीर में पुनः स्थापित होती शांति और विश्वास को तार-तार करना था। जब किसी को गोली मारने से पहले उसका धर्म पूछा जाता है, तो यह न केवल उस व्यक्ति की जान का अपमान है, बल्कि उस पूरे समाज का अपमान है जो 'सर्व धर्म समभाव' की बात करता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आतंकियों ने पहले 'हिंदू' पहचान की पुष्टि की, फिर 'गोली' को धर्म की रेखा पर खड़ा कर दिया। इससे बड़ा पाखंड क्या होगा कि किसी भी धर्म की आड़ में आतंक फैलाया जाए, जबकि हर धर्म की जड़ में 'मानवता' बसती है। इस हमले ने यह साबित कर दिया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन आतंकवादी अक्सर धर्म को ढाल बनाकर उसे इस्तेमाल करते हैं। जबरन किसी से कलमा पढ़वाना और न मानने पर जान ले लेना, यह इस्लाम के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है।
पैग़ंबर मोहम्मद ने तो मक्का में भी अपने दुश्मनों को माफ किया था यहाँ तो बेगुनाह पर्यटकों पर गोली चलाई गई। यह हमला न केवल मानवता पर था, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी हमला था। पहलगाम, जो 'मिनी स्विटजरलैंड' के नाम से जाना जाता है, वहाँ इस तरह की घटना का होना वैश्विक स्तर पर कश्मीर को फिर एक बार 'संवेदनशील और अस्थिर' क्षेत्र के रूप में प्रस्तुत करता है। पिछले कुछ वर्षों में कश्मीर में पर्यटन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी लोगों ने धीरे-धीरे डर के माहौल से बाहर निकलना शुरू किया था। लेकिन यह हमला उस विश्वास को तोड़ने की कोशिश है। पर्यटकों की वापसी का मतलब था स्थानीय लोगों की आजीविका का पुनर्जन्म।
कश्मीरी दुकानदार, टैक्सी चालक, होटल कर्मचारी सभी इस बढ़ते पर्यटन पर निर्भर थे। लेकिन अब, एक बार फिर सैकड़ों पर्यटक कश्मीर छोड़ने लगे हैं। कई बुकिंग्स रद्द हो रही हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा। 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF), जो कि लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा संगठन माना जाता है, ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है।
सूत्रों का कहना है कि यह हमला पाकिस्तान से संचालित हो सकता है। यदि यह सच है, तो यह स्पष्ट संकेत है कि यह केवल एक धार्मिक हिंसा नहीं थी, बल्कि भारत की आंतरिक शांति को अस्थिर करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश भी थी। यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब भारत चुनावों की तैयारी में जुटा है। क्या यह हमला लोकतंत्र में भय और अविश्वास फैलाने की रणनीति नहीं हो सकती? क्या यह आतंकी ताकतों का एक संकेत नहीं है कि वे अब भी धार्मिक भावनाओं को भड़काकर भारत को अस्थिर कर सकते हैं? इस हमले में मारे गए पर्यटक की पत्नी के बयान ने पूरे देश को हिला दिया“मैंने उसे मरते देखा, लेकिन कुछ नहीं कर सकी।” यह वाक्य किसी भी भाषण या नारे से कहीं ज्यादा असरदार है।
एक महिला की चीख, एक बच्चे का रोना, एक पर्यटक का डर—ये किसी चुनावी भाषण या न्यूज़ चैनल की बहस से नहीं मिटते। यह हमला न केवल गोली से मारे गए व्यक्ति का अंत था, बल्कि एक पूरे परिवार की स्थिरता का अंत था। यह उस महिला की नींद का अंत था, जो अब शायद जिंदगीभर अपने पति की लाश की छवि नहीं भूल पाएगी। और यह उस भरोसे का अंत था, जो उसने भारत की सुरक्षा पर किया था। सरकार की ओर से इस हमले की निंदा की गई और सुरक्षा बलों को सतर्क किया गया। परंतु सवाल यह उठता है कि क्या निंदा पर्याप्त है? क्या हम उस स्तर पर इंटेलिजेंस नेटवर्क खड़ा कर पाए हैं कि ऐसे हमलों को रोका जा सके?
कश्मीर में बार-बार ‘अस्थिरता के बाद स्थिरता और फिर आतंक’ का यह चक्र कब टूटेगा? यह ध्यान देने योग्य है कि कश्मीरी समाज के कई मुसलमानों ने इस घटना की खुलकर निंदा की। कुछ स्थानीय व्यापारियों ने पर्यटकों को सुरक्षित बाहर निकलने में मदद की। इससे स्पष्ट होता है कि आतंकवाद को समर्थन स्थानीय नहीं, बाहरी है। कट्टरता कश्मीर की मिट्टी से नहीं, बाहर से आयात होती है। हम सबको सोचना होगा कि ऐसे मामलों में केवल गुस्सा जाहिर करना काफी नहीं है। हमें नीतियों में बदलाव चाहिए।
कश्मीर में स्थायी शांति तभी संभव है जब: धार्मिक शिक्षा में सहिष्णुता को प्राथमिकता दी जाए। स्थानीय युवाओं को रोजगार और भविष्य का भरोसा मिले। कट्टरता के प्रचार पर तकनीकी सेंसरशिप लगे। आतंकी नेटवर्क को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग किया जाए। इस लेख के माध्यम से मैं एक सवाल छोड़ना चाहती हूँ क्या हम इतने असहाय हो गए हैं कि किसी का धर्म पूछकर उसे मारने वालों को केवल 'आतंकी' कहकर छोड़ दें? यह समय है जब हमें मिलकर कहना होगा कि जो धर्म के नाम पर जान ले, वह किसी धर्म का अनुयायी हो ही नहीं सकता। यह हमला केवल एक पर्यटक की हत्या नहीं है, यह हमारी आत्मा पर हमला है। हमें इस चुप्पी को तोड़ना होगा।
हमें न केवल आतंकी संगठन TRF से सवाल करना चाहिए, बल्कि उन शक्तियों से भी जो इन्हें पनाह देती हैं, और उन राजनीतिक दलों से भी जो इस दुख का इस्तेमाल अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए करते हैं। पहलगाम की घाटियों में बहती नदियों का पानी अब पहले जैसा नहीं रहा—वहाँ अब एक सवाल तैरता है: “कब तक धर्म की पहचान मौत का पैमाना बनी रहेगी?”

ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

यह भी पढ़े

Web Title-Bullets fired in Pahalgam: They were fired on humanity, not on religion
खास खबर Hindi News के अपडेट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक और ट्विटर पर फॉलो करे!
(News in Hindi खास खबर पर)
Tags: pahalgam terrorist attack, horrifying message, religious identity, eyewitnesses, tourists, shot on refusa, political conspiracy, destroying peace, destroying trust, kashmir, hindi news, news in hindi, breaking news in hindi, real time news, hisar news, hisar news in hindi, real time hisar city news, real time news, hisar news khas khabar, hisar news in hindi
Khaskhabar.com Facebook Page:
स्थानीय ख़बरें

हरियाणा से

प्रमुख खबरे

आपका राज्य

Traffic

जीवन मंत्र

Daily Horoscope

वेबसाइट पर प्रकाशित सामग्री एवं सभी तरह के विवादों का न्याय क्षेत्र जयपुर ही रहेगा।
Copyright © 2025 Khaskhabar.com Group, All Rights Reserved