अहमदाबाद। लोकायुक्त के मसले पर गुजरात सरकार की खिसियानी बिल्ली जैसी स्थिति हो गई है। रिटायर्ड जज आरए मेहता ने गुजरात सरकार का लोकायुक्त पदभार लेने का प्रस्ताव नकार दिया है। जस्टिस मेहता ने यह फैसला नियुक्ति पर फैसला लेने में लंबा वक्त लिए जाने के विरोध में लिया है। जस्टिस मेहता ने एक खत के जरिए आरोप लगाया है कि जब मोदी सरकार सहयोग नहीं कर रही है तो किसी भी लोकायु्क्त के लिए काम करना संभव नहीं हो पाएगा। उन्होंने अपनी नियुक्ति के खिलाफ राज्य सरकार की लंबी एवं खर्चीली कानूनी लड़ाई को अपने फैसले की वजहों में से एक बताया। न्यायमूर्ति मेहता ने राज्यपाल कमला बेनीवाल और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में सात कारणों का उल्लेख किया है 'जिनके आधार पर वह खुद को लोकायुक्त पद के लिए तैयार नहीं कर पा रहे हैं।' मेहता ने कहा कि मैं गुजरात के लोकायुक्त के रूप में दी गई अपनी सहमति विनम्रतापूर्वक वापस लेता हूं और पदभार ग्रहण करने से इनकार करता हूं। कृपया मेरा आग्रह स्वीकार कीजिए और मुझे कार्यमुक्त कीजिए। उन्होंने कहा कि मैं स्पष्ट रूप से स्वीकार करता हूं कि मैं संबंधित परिस्थितियों में जन दायित्व नहीं निभा पाउंगा और लोकायुक्त से जुड़ी जन आवश्यकताओं तथा जन आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पाउंगा। मेहता ने कहा कि मैं यह जिम्मेदारी ग्रहण करके कैसे लोकायुक्त बन सकता हूं जब मेरी निष्पक्षता और विश्वसनीयता सरकार तथा सार्वजनिक पदाधिकारियों को स्वीकार्य नहीं है जिनके आचरण की जांच लोकायुक्त को करनी होती है तो किसी सार्वजनिक पदाधिकारी के लिए या उसके खिलाफ जांच परिणाम तथा सिफारिश हमेशा सवालिया निशानों के घेरे में रहेगी। जस्टिस मेहता ने की नियुक्ति का रास्ता सुप्रीम कोर्ट की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद साफ हुआ था। गुजरात सरकार ने उनकी नियुक्ति को चुनौती दी थी। राज्य सरकार पहले गुजरात हाईकोर्ट गई थी, लेकिन कोर्ट ने लोकायुक्त के फैसले को सही बताया। इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया था, लेकिन यहां भी सरकार को मुंह की खानी पडी। राज्य सरकार ने पहले पुनरीक्षण याचिका और फिर उसके बाद संशोधन याचिका दाखिल की थी। लेकिन दोनों ही बार कोर्ट ने फैसले को बरकरार रखा।
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