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जयपुर। ‘विभाजन‘ मानव जाति के इतिहास में लोगों का सबसे बड़ा विस्थापन था, हालांकि यह समाज में अभी भी अकथित है। यह मात्र राजनीति से सम्बंधित नहीं है, बल्कि एक सच्चाई है। इसके घाव अभी तक नहीं भरे हैं, हमें इसके बारे में बात करने की जरूरत है और यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसा दुबारा ना हो।
अगली पीढ़ी को अतीत की कहानियों को जानने की आवश्यकता है और उन्हें अपने आगे की पीढ़ियों तक भी इन्हें पहुंचाना होगा। यह कहना था गायिका व संगीतकार सोनम कालरा का।
वे शुक्रवार को जवाहर कला केंद्र (जेकेके) में ‘मीट द आर्टिस्ट‘ सैशन में बोल रही थीं। सैशन में स्वाति वशिष्ठ ने उनके साथ चर्चा की।
कालरा ने आगे कहा कि ‘जब मैंने इस शो की संकल्पना की थी तब मुझे पता था कि इसकी प्रस्तुति मात्र संगीत के माध्यम से नहीं हो पायेगी। अन्य उन लोगों की आवाजों को भी सुनना था, जिन्हें याद किया जाना था‘। भारत एवं पाकिस्तान के मध्य की सीमाओं में शांति और लोगों को एक साथ आनेे की उम्मीद के साथ इस सैशन का समापन हुआ।
‘सूफी-बॉलीवुड‘ पर अपने विचार साझा करते हुए सुश्री कालरा ने कहा कि इन दिनों ‘सूफी‘ शब्द का प्रयोग काफी अधिक किया जा रहा है। बाॅलीवुड संगीत सूफी म्यूजिक को और अधिक चमकाने एवं संवारने का प्रयास करता है जो कि पहले से ही सुंदर है।
भारत में पारम्परिक एवं लोक संगीत की समृद्ध विविधता है, जिसे यदि लोगों ने सुना हो तो यह इसके किसी भी बॉलीवुड संस्करण की तुलना में हृदय को अधिक स्पर्ष करता है। यह कहा जाता है कि ‘सूफी‘ संगीत का बाॅलीवुड संस्करण सुनने वाले यदि आधे लोग भी वास्तविक ‘सूफी‘ संगीत सुनने का निर्णय लेते हैं तो हम इसे सही अर्थों में बदलाव की प्रक्रिया की तरह देखते हैं।
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