Editors Comments:- RAJ RERA का यह आदेश रियल एस्टेट उद्योग में पारदर्शिता और ग्राहकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण उदाहरण है। इस फैसले से उन बिल्डरों को चेतावनी मिलेगी, जो प्रोजेक्ट्स को समय पर पूरा करने में असफल रहते हैं।
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- गिरिराज अग्रवाल -
जयपुर। राजस्थान रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (RAJ-RERA) ने रियल एस्टेट के इम्पीरियल होम्स प्रोजेक्ट को पूरा करने में देरी पर कठोर निर्णय लेते हुए बिल्डर RSR एलीट डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को आदेश दिया है कि वह शिकायतकर्ता परमजीत कौर बिंद्रा और अन्य को जमा की गई राशि के साथ 11.10% वार्षिक ब्याज का भी भुगतान 45 दिनों के भीतर करे।
प्रकरण के तथ्यों के मुताबिक शिकायतकर्ता ने 13 जून 2018 को अवध होम्स प्रोजेक्ट में फ्लैट संख्या 316 (3rd फ्लोर, 2 BHK) बुक किया था। कुल 19 लाख रुपए की लागत वाले फ्लैट के लिए उन्होंने 4,80,000 रुपए जमा किए, जिसमें 22,800 रुपए पंजीकरण शुल्क शामिल है। बिल्डर ने 15 नवंबर 2021 तक फ्लैट का कब्जा देने का वादा किया था।
लेकिन, बाद में बिल्डर ने प्रोजेक्ट का नाम अवध होम्स से बदलकर इम्पीरियल होम्स कर दिया था। अब यह प्रोजेक्ट लैप्स्ड श्रेणी में है। क्योंकि इसका निर्माण कार्य केवल 30% ही पूरा हुआ है।
शिकायतकर्ता ने प्रोजेक्ट की देरी और बिल्डर की लापरवाही के कारण फ्लैट बुकिंग रद्द करने और जमा राशि के साथ ब्याज भी दिलवाए जाने की मांग की थी।
हालांकि सुनवाई के दौरान बिल्डर ने फोर्स मेज्योर (प्राकृतिक आपदा, COVID-19, सरकारी नीतियों आदि का हवाला देते हुए परियोजना में देरी होने का कारण बताया। लेकिन, रेरा अथॉरिटी ने बिल्डर की इन दलीलों को नामंजूर कर दिया।
दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद रेरा अथॉरिटी के सदस्य सुधीर कुमार शर्मा ने स्पष्ट किया कि फोर्स मेजर्स के तहत बताए गए कारण परियोजना में देरी को न्यायोचित नहीं ठहराते। रेरा रिकॉर्ड के अनुसार, प्रोजेक्ट की स्थिति "लैप्स्ड" है, और वार्षिक प्रगति रिपोर्ट (APRs) भी समय पर प्रस्तुत नहीं की गई। इसलिए बिल्डर को 11.10% वार्षिक ब्याज दर के साथ जमा राशि लौटाने का निर्देश दिया जाता है।
रेरा सदस्य सुधीर कुमार शर्मा ने कहा कि प्रोजेक्ट में देरी और बिल्डर की लापरवाही के कारण शिकायतकर्ता को मानसिक और आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा है। इसलिए इस आदेश के तहत, बिल्डर को 45 दिनों में शिकायतकर्ता को पूरी रकम लौटानी होगी। … मूल फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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