चंडीगढ़। सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर को लेकर हरियाणा और पंजाब के बीच लंबे समय से चल रहा विवाद एक बार फिर गरमा गया है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों नायब सिंह सैनी और भगवंत मान को एक बार फिर आमने-सामने बैठने को कहा है। यह ज्ञान दिखाने का मौका है, लेकिन इतिहास दावा करता है... यह काम आसान नहीं होगा।
पत्र आया... हल नहीं!
अब सीधे तौर पर केंद्रीय मंत्री सी.आर. पाटिल से संपर्क किया गया है। मुख्यमंत्रियों को एक पत्र मिला है, जिसमें उनसे "बैठने, बात करने और समाधान निकालने" का आग्रह किया गया है। "संभवत: 10 जुलाई को दिल्ली में बैठक होगी। क्या यह सिर्फ एक बार फिर बैठक होगी या कुछ बदलेगा?
SC ने पास किया बैटन, अब केंद्र की दौड़
मई में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था: "अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार सिर्फ दर्शक न बनकर जज बने।" जल शक्ति मंत्री को मध्यस्थ की भूमिका सौंपने के बाद अब कोर्ट के पास उस निर्देश की पूर्ति के लिए यह पत्र है। हालांकि इतिहास गवाह है: पहले की घटनाएं भी बातचीत थीं। तस्वीरें खींची गईं। बयान दिए गए। सब कुछ शांत हो गया, सिवाय एसवाईएल के नाम के।
झगड़े की जड़ आखिर क्या?
एसवाईएल नहर एक वादा है जो कभी पूरा नहीं हुआ। और यह एक ऐसी पीड़ा है जो कभी खत्म नहीं होती। हरियाणा का तर्क है: "हमें हमारा हिस्सा दो!" पंजाब का कहना है: "पानी कहां है, क्यों दो?" इसके अलावा, अभी भी समस्या यह है कि नहर अधूरी है, नष्ट हो गई है।
बात बहाव की नहीं, प्रभाव की है
एसवाईएल की बात करें तो यह सिर्फ उद्योगों की बात नहीं है, यह विधानसभा सीटों, वोट बैंक और राज्य की प्रतिष्ठा की भी बात है। हर चुनाव से पहले यह समस्या जाग उठती है और हर बैठक के बाद फिर से सो जाती है।
फिर एक पत्र - लेकिन क्या असर होगा?"
इस बार दोनों राज्यों में राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं। हरियाणा में नायब सैनी और पंजाब में भगवंत मान - दोनों ही "जनता के मुख्यमंत्री" के नाम से सत्ता में आए। "क्या यह देखना बाकी है। क्या जनता का पानी दोनों को एक ही मेज पर खड़ा होने देगा? या यह पत्र भी अन्य पत्रों की तरह ठंडा पड़ जाएगा?
खेत खाली हैं, पर दर्द लबालब
एसवाईएल नहर को सुखाने वाले फैसले सिर्फ एक नाली से कहीं अधिक हैं। यह देश में सबसे महत्वपूर्ण "जल-राजनीतिक" संघर्षों में से एक का प्रतीक बन गया है। अब यह देखना बाकी है कि 10 जुलाई को दिल्ली में पानी बहेगा या नहीं.. या बातचीत का रुख अलग दिशा में जाएगा।
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