जयपुर। राजस्थान विश्वविद्यालय (आरयू) के वीसी पद पर जे.पी. सिंघल की नियुक्ति पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि वीसी का पद उच्च स्तर का होता है। ऐसे अपात्र को इस पद पर नियुक्ति कैसे दे दी। अपात्र व्यक्ति को इस पद पर बने रहने का हक नहीं है। यूनिवर्सिटी को ऐसे लोगों की जरूरत है जो इसे आगे बढ़ाएं। न्यायाधीश के.एस. झवेरी व वी.के. माथुर ने यह टिप्पणी रिटायर्ड जस्टिस आई.एस. इसरानी की याचिका पर की। जवाब में यूनिवर्सिटी ने कहा कि कोर्ट समय दे दे तो किसी अन्य आदेश की जरूरत नहीं पड़ेगी और यूनिवर्सिटी खुद ही मामले में निर्णय ले लेगी। मामले में अगली सुनवाई 9 जनवरी को होगी। कोर्ट के सामने आया कि वीसी सिंघल के पास पीएचडी की डिग्री नहीं है लेकिन, फिर भी उनके नाम के आगे डॉक्टर लिखा हुआ है। यह पता चलने पर कोर्ट ने यूनिवर्सिटी से पूछा कि बिना पीएचडी के वीसी के नाम के आगे डॉक्टर क्यों लिखा है। यूनिवर्सिटी ने कहा कि टाइप की गलती के कारण ऐसा हुआ है। कोर्ट ने कहा कि यह टाइपिंग की गलती नहीं है, बल्कि कोर्ट को गुमराह किया जा रहा है। यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार, जेपी सिंघल यूनिवर्सिटी के वीसी पद पर नियुक्ति की योग्यता नहीं रखते। उन्हें न तो प्रोफेसर पद पर दस साल का अनुभव है और न ही वे पीएचडी हैं। वे केवल लेक्चरर रहे हैं और इस कारण वीसी पद के योग्य नहीं हैं। वहीं ह्यूमन सेटलमेंट टेक्नोलॉजी सेंटर का कहना था कि वीसी चयन के लिए बनाई सर्च कमेटी में यूनिवर्सिटी से संबंध रखने वाले प्रोफेसरों को ही रखा था जो गलत है। जबकि यूजीसी के नियमों के तहत कमेटी सदस्यों का संबंध यूनिवर्सिटी से नहीं होना चाहिए। इस बारे में वीसी सिंघल ने कहा कि वकीलों ने कोर्ट से 9 जनवरी तक का समय मांगा है। इस्तीफा नहीं दूंगा। कोर्ट जो निर्देश देगा, वो मानना ही है। मेरा कार्यकाल मार्च में पूरा होगा। [@ Exclusive- राजनीति के सैलाब में बह गई देश के दो कद्दावर परिवारों की दोस्ती]
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