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खांसी-जुकाम के पीडि़त को बताया एड्स रोगी, 7 साल तक किया इलाज

cough-cold victim told the AIDS patient treated up to 7 years - Udaipur News in Hindi

उदयपुर। सामान्य जुकाम-खांसी से पीडि़त एक व्यक्ति को रिपोर्ट के आधार पर एड्स बता महाराणा भूपाल राजकीय अस्पताल का तत्कालीन सीनियर डॉक्टर 7 वर्ष तक इलाज करता रहा। एड्स नहीं होने की पुष्टि हो जाने के बाद भी डॉक्टर उसे दवाइयां देता रहा। एड्स की अफवाह फैल जाने से पीडि़त का व्यापार चौपट हो गया। कर्जा लेकर महंगी दवाइयां ली। उसके संपर्क में रहने के कारण पत्नी को भी एड्स का उपचार लेना पड़ा। परिजनों, रिश्तेदारों, मित्रों ने दोनों से दूरियां बना ली। जानलेवा बीमारी के भय से वह घुटन की जिंदगी जीता रहा। एड्स नहीं होने के बावजूद लंबे इलाज से तबीयत खराब हो गई। पीडि़त सराड़ा तहसील के बंडोली कस्बा निवासी धनराज पटेल ने ये दर्द जिला उपभोक्ता मंच को सुनाया तो मंच ने अपील खारिज कर दी। राज्य उपभोक्ता आयोग की सर्किट बैंच के पीठासीन अधिकारी विनय कुमार चावला ने 17 जनवरी को अपील स्वीकारते हुए आरोपी डॉ. डी.सी. कुमावत सहित क्लेम खारिज करने को लेकर नेशनल इंश्योरेंस व न्यू इंडिया इंश्योरेंस बीमा कंपनी को संयुक्त रूप से दोषी मान सवा 5 लाख रुपए का जुर्माना भरने के आदेश दिए। आयोग में दर्ज परिवाद के अनुसार धनराज को जुकाम, खांसी और बुखार की शिकायत हुई तो 8 नवंबर 2004 को एमबी अस्पताल के तत्कालीन फिजीशियन डॉ. डी.सी. कुमावत को दिखाया गया। धनराज का आरोप था कि एचआईवी पॉजीटिव होने की आशंका जताते हुए उसे जांच के लिए मधुबन स्थित हिंगड़ डायग्नास्टिक सेंटर भेजा। डॉ. कुमावत ने एडवांस टेस्ट कराए बगैर प्रारंभिक जांच में एचआईवी पॉजीटिव पाए जाने पर धनराज को एड्स का मरीज मान दवाइयां दी। उसके संपर्क में रहने के कारण उसकी पत्नी का भी इलाज शुरू कर दिया। 8 नवंबर 2004 से 20 मार्च 2007 तक धनराज नियमित रूप से एड्स के इलाज के लिए दवाइयां लेता रहा। फिर डॉ. कुमावत ने उसे मुंबई के हिंदूजा अस्पताल में जांच कराने को भेजा तो वहां चौंकाने वाली रिपोर्ट मिली। रिपोर्ट में बताया कि धनराज को कभी एड्स था ही नहीं। जबकि मेडिकल साइंस की रिपोर्ट के अनुसार किसी को एक बार एचआईवी पॉजिटिव मिलने पर कभी नेगेटिव रिपोर्ट नहीं आती। आरोप है कि जब धनराज ने हिंदूजा अस्पताल की रिपोर्ट डॉ. कुमावत को दिखाई तो उन्होंने गलती नहीं मानी और एड्स का इलाज बंद करने के बजाय दवाइयां देना जारी रखा। बाद में मुंबई के डाक्टरों की सलाह पर इलाज बंद किया गया। लैब में एचआईवी जांच के लिए वेस्टर्न ब्लॉट मैथड और सीडी प्लस फोर टेस्ट किए गए। मेडिकल साइंस में एचआईवी टेस्ट की यह प्रारंभिक जांच कहलाती है। किसी रोगी को एड्स होने की पुष्टि केवल इस जांच से नहीं होती है। इसके आगे कई महत्वपूर्ण टेस्ट और होते हैं। इस बारे में एमबी अस्तपाल से तत्कालीन सीनियर फिजीशियन और वर्तमान में सेवानिवृत्त डॉक्टर डी.सी. कुमावत ने कहा है कि उन्होंने मरीज की जो रिपोर्ट थी, उसी के आधार पर उपचार किया था। राज्य उपभोक्ता आयोग के इस फैसले के खिलाफ वे राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में अपील करेंगे।

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