झांसी। बुंदलखंड में गर्मी बढ़ने के साथ जल संकट धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करता जा रहा है। यहां जल संरचनाओं की कमी नहीं है, मगर उनका रखरखाव न होने से जल की उपलब्धता एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। एक अध्ययन से सामने आया है कि झांसी जिले में 1500 जल संरचनाएं है, इनमें से कई अधिकांश की स्थिति अच्छी नहीं है और यही कारण है कि जल संकट गहराया हुआ है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
जल संसाधन समूह-2030 (डब्ल्यूआरजी-2030) के तहत परमार्थ समाज सेवा संस्थान द्वारा मार्च-अप्रैल के बीच झांसी जिलों के गांव-गांव में जाकर जल संरचनाओं के साथ जल की उपलब्धता का अध्ययन कराया गया। इस अध्ययन में झांसी जिले के 721 गांव में दस्तक दी गई, जिसमें 688 गांव में तालाब, चेकडेम, कच्चे अवरोध बांध, झरना, झील व नदियां पाईं गईं।
इस अध्ययन रिपोर्ट को बुधवार को जारी करते हुए परमार्थ समाज सेवा संस्थान के सचिव संजय सिंह ने बताया कि जिले में उपलब्ध जल संरचनाओं में 241 चंदेल बुंदेला राजाओं के काल के तालाब, 670 नवीन तालाब, 401 चेकडेम, 187 कच्चे अवरोध बांध का पता चला है। इन तालाबों में से 94 तालाब अतिक्रमण की चपेट में हैं, 173 तालाब ऐसे हैं जिनमें छोटे-मोटे सुधार की आवश्यकता है, 606 में ज्यादा सुधार की आवश्यकता है।
संवाददाताओं के सवालों का जवाब देते हुए सिंह ने बताया कि बुन्देलखंड में कई शासकों ने अलग-अलग समय में शासन किया। उस समय में भी इस इलाके की जमीन पथरीली थी और जमीन के नीचे ग्रेनाइट मौजूद था, इसके बावजूद यहां की आबादी खुशहाल जीवन जीती थी क्योंकि चदेंला और बुन्देला राजाओं ने बड़े-बड़े तालाबों का निर्माण एवं पुनरुद्घार क्रमश: 10वीं से 16 वीं शताब्दी में कराया था, जिनका उपयोग मुख्य रूप से यहां की आबादी तथा पशु के लिए पेयजल के रूप में किया जाता था, जबकि सिंचाई के अन्य दूसरे स्रोत थे। चन्देल राज में निर्मित तालाबों का रखरखाव बुन्देला शासकों द्वारा 16वीं शताब्दी तक किया गया था।
अध्ययन से सामने आया है कि बारिश का कम होना और जंगलों की कटान बुन्देलखंड को सूखे की तरफ धकेलती चली गई। यदि वर्तमान में इस संकट से निजात पाना है और आने वाली पीढ़ी को शुद्घ हवा, पानी उपलब्ध कराना है तो एकमात्र उपाय है कि पारम्परिक जल स्रोतों का पुनरुद्घार किया जाए।
--आईएएनएस
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