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जानिए महाराणा सांगा के बारे में, जिनकी 541 वीं जयंती मनाई गई

Know about Maharana Sanga, whose 541st birth anniversary was celebrated - Udaipur News in Hindi

उदयपुर। मेवाड़ में शुक्रवार को मेवाड़ के शासक रहे महाराणा संग्राम सिंह(राणा सांगा) की 541 वीं जयंती मनाई गई। इस अवसर पर राणा सांगा के जन्म से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों पर दीप प्रज्वलित किए गए तथा पूजा—अर्चना की गई। इधर, महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन उदयपुर ने सिटी पैलेस संग्रहालय में राणा सांगा की जयंती मनाई गई। ऐसे थे राणा सांगा मेवाड़ के 50 वें एकलिंग दीवान महाराणा संग्राम सिंह—प्रथम मध्यकालीन भारत के प्रमुख शासक थे। जिन्हें इतिहास में राणा सांगा के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म वैशाख कृष्ण की नवमी विक्रम सम्वत 1539 (ई.स. 1482) को हुआ था। उनके पिता महाराणा रायमल और माता का नाम रतन कंवर था। महाराणा रायमल के पश्चात् संग्राम सिंह मेवाड़ के महाराणा बने।
महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा बताते हैं कि कुँवर संग्राम सिंह ने झगड़े में एक आँख महाराणा बनने से पूर्व ही खो दी थी। महाराणा संग्राम सिंह बचपन से ही वीर एवं बुद्धिमान थे। 1520 ई. में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर को युद्ध में हरा अहमदनगर पर कब्जा कर लिया था। मेवाड़ और मालवा के बीच हुए विवाद के कारण महाराणा ने 1515 ई. में मालवा के सुल्तान से रणथंभौर छीन लिया। 1519 ई. में महाराणा ने गागरोन के पास सुल्तान महमूद को हराया और उसे कैद कर लिया। राणा सांगा ने महमूद को आधा राज्य उसे वापस देकर आजाद कर दिया। महमूद ने 1521 में गागरोन लेने की कोशिश की, लेकिन उसे खाली हाथ ही लौटना पड़ा।
महाराणा ने अपने पराक्रम से मेवाड़ राज्य का विस्तार किया। 1517 ई. में मेवाड़ और दिल्ली की सीमा मिलने लगी, जिससे संघर्ष उत्पन्न हुआ। उस समय इब्राहिम लोधी नया सुल्तान बना था। इब्राहिम लोधी के न मानने पर 1517 ई. में महाराणा ने खातोली के युद्ध में इब्राहिम लोदी को शिकस्त दी। 1527 ई. में महाराणा ने बयाना की लड़ाई में बहादुरी का परिचय देते हुए बाबर के झंडे़, रन कंकण(संगीत वाद्ययंत्र जैसे वंकिया(एक लम्बा पीतल का वाद्ययंत्र), ड्रम, झांझ, ढपली, छोटे ढोल आदि) तथा बाबर के लाल कमान तम्बू पर कब्जा कर लिया। बाबर के कई सैनिक मारे गए और कई लड़ाई छोड़कर भाग गए और कुछ को कैद किया गया। महाराणा ने अपने विवेक एवं शौर्य से कई युद्धों में विजयी श्री प्राप्त की।
1527 ई. में पानीपत में बाबर से पुनः युद्ध आरम्भ हुआ। युद्ध लड़ाई के दौरान एक बाण महाराणा के सिर में लगा और वह बेहोश हो गए। राजपूत महाराणा को बेहोशी की दशा में ले गए और उनका उपचार किया गया। कुछ आराम के बाद महाराणा ने फिर से युद्ध की तैयारी का आदेश दिया। किन्तु 1528 ई. विक्रम संवत् 1584 में कालपी नामक स्थान पर उनका स्वर्गवास हो गया।
महाराणा संग्राम सिंह जी आर्थिक स्थिरता का पता उनके शासकाल के दौरान दिए गए भूमि अनुदान से लगाया जा सकता है। कई शिलालेखों एवं ताम्रपत्रों से उनकी उदारता एवं दानशिलता का वर्णन मिलता है। उनके समय में जारी संग्रामशाही सिक्का बहुत लोकप्रिय रहा। अब तक 6 प्रकार के सिक्के उनके पाए जाते है, जिन पर उनके नाम आदि उकेरे हुए हैं।

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Web Title-Know about Maharana Sanga, whose 541st birth anniversary was celebrated
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