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जयपुर। भाजपा ने राजस्थान विधानसभा चुनाव को भी गहलोत बनाम मोदी करके क्या कोई गलती की है? क्या बीजेपी ने इस रणनीति के जरिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कद बढ़ा दिया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि पार्टी ने विश्व के सर्वमान्य नेता को वोटों की खातिर राजस्थान में गहलोत और मध्य प्रदेश में कमलनाथ के बराबर लाकर खड़ा कर दिया है।
पार्टी ने ऐसा निर्णय भी तब लिया है जबकि मोदी जी के चेहरे पर चुनाव लड़ने के परिणाम हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक समेत कई राज्यों में ठीक नहीं रहे हैं। जैसे कि संकेत मिल रहे हैं अगर भाजपा इन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता में नहीं आ पाई तो क्या इससे लोगों में यह संदेश नहीं जाएगा कि देशभर में मोदी का जादू अब कम हो रहा है। इससे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अधिक ऊर्जा मिलेगी।
यही वजह है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही रणनीति को बदला है। वे अपने भाषण में अब किसी भी नेता का नाम नहीं ले रहे हैं बल्कि कांग्रेस पर ही हमला बोल रहे हैं। उम्मीदवारों के बजाय कमल के फूल को ही खिलाने की अपील कर रहे हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि हमेशा चेहरे की बात करने वाली भाजपा राजस्थान में सीएम का चेहरा नहीं बता पा रही है। जबकि कांग्रेस की ओर से अशोक गहलोत और सचिन पायलट चेहरे के तौर पर मौजूद हैं।
यह आम धारणा है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोटर यह जरूर इमेजिन करता है कि आखिर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कौन होगा। जिस पार्टी को वह वोट दे रहा है, उसके पास इन पदों के लिए चेहरा कौन सा है। जाहिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने वाले नहीं हैं।
बहरहाल इन चुनावों में राजस्थानी क्षत्रपों की कोई खास भूमिका नहीं रह गई है। चेहरे के नाम पर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कमल का फूल है। छोटे से छोटा नेता और बड़े से बड़ा लीडर भी किसी अन्य नेता का नाम लेने से डर रहा है। यही वजह है कि सत्ता तक पहुंचने का दावा कर रही भाजपा जमीन पर उतनी प्रभावी नहीं दिखाई दे रही है, जितनी अब तक के चुनावों में रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जलवा भी उतना काम नहीं कर रहा है, जितनी इन नेताओं को उम्मीद थी।
नामांकन के बाद उदयपुर में हुई सभा में मोदी के भाषण में लोगों को कुछ भी नया सुनाई नहीं दिया बल्कि भीड़ भी पुरानी सभाओं से कम दिखाई दी। मोदी की सभा में उदयपुर जिले की आठ विधानसभा, चित्तौड़ जिले की पांच, राजसमंद की चार विधानसभा क्षेत्रों के नेता और भीड़ होने का दावा किया जा रहा था। भाषण में भी अधिकांश पुरानी ही बातें रिपीट की गईं। जिस कन्हैयालाल हत्याकांड को उठाने का प्रयास किया, उसका भी उदयपुर क्षेत्र में कोई असर नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इन जिलों में बीजेपी को नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है। उदयपुर जिले में पिछली बार आठ में छह सीटें बीजेपी के पास था जो इस बार घटकर 3 या 4 ही रह सकता है। यही स्थिति राजसमंद और चित्तौड़गढ़ जिले की है। उदयुपर जिले में जनजाति के लिए आरक्षित सीट खेरवाड़ा, गोगुुंदा, झाड़ोल में आदिवासी पार्टी बीटीपी या बाप बीजेपी को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है। बात अगर डूंगरपुर-बांसवाड़ा-प्रतापगढ़ की करें तो यहां 11 सीटों में से भी बीजेपी को दो या तीन सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है।
जयपुर संभाग जो भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है, में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को किनारे करके टिकट वितरण के कारण यहां भी बीजेपी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। जानकारों का मानना है कि विद्याधर नगर में दीया कुमारी की सीट सेफ मानी जा रही थी। लेकिन, जैसे-जैसेस मतदान का समय नजदीक आ रहा है, दीया कुमारी कमजोर होती जा रही हैं। बाकी सभी सीटों पर बीजेपी फंसी हुई नजर आ रही है। सीकर जिले में ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस को बढ़त का अनुमान लगाया जा रहा है।
अलवर-भरतपुर जिलों में कुछ सीटों पर बीजेपी का दबदबा है, लेकिन बाकी जगह पर राष्ट्रीय लोकदल, बसपा और आजाद समाज पार्टी की वजह से मुकाबला त्रिकोणीय हो चला है। भरतपुर में रालोद के डॉ. सुभाष गर्ग मौजूदा विधायक हैं। यहां भाजपा ने पूर्व विधायक विजय बंसल को अपना उम्मीदवार बनाया है। इसी सीट पर ब्राह्मण वोट अक्सर परिणाम प्रभावित करते हैं। लेकिन, गिरधारी तिवारी के विजय बंसल के पक्ष में बैठने के कारण ब्राह्मण वोट बंटने के आसार हैं। इनमें गर्ग का पलड़ा भारी रह सकता है। धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, अलवर जिलों में कुछ सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस में सीधी टक्कर है। इन जगहों पर भी टक्कर के कारण दोनों ही पार्टियों के प्रत्याशी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है।
मारवाड मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के प्रभाव वाला क्षेत्र है। जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर, पाली, सिरोही आदि जिलों में कांग्रेस अच्छा कर सकती है। बीजेपी के गढ़ अजमेर में भी कांग्रेस इस बार टक्कर दे रही है। उधर, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी जोधपुर संभाग में दोनों ही पार्टियों के वोट काटेगी। बीकानेर में मंत्री बीडी कल्ला एंटी इनकंबेंसी के कारण फंसते हुए दिखाई दे रहे हैं।
चुनाव प्रचार में अब मात्र आठ दिनों का समय बचा है। दोनों ही राजनीतिक दल प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंकने वाले हैं। सभाओं में आने वाली भीड़ क्या वोटों में तब्दील हो पाएगी, इसको लेकर खुद प्रत्याशी और पार्टियों के लोग भी आशंकित हैं।
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