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आदि जगतगुरु शंकराचार्य जयंती: सनातन रक्षक, प्रथम गुरु शंकराचार्य

Adi Jagatguru Shankaracharya Jayanti: Sanatan protector, first guru Shankaracharya - Jaipur News in Hindi

गद्गुरू आदि शंकराचार्य जी सनातन रक्षक और प्रथम गुरु के रूप में पूजा जाता है उन्होंने सनातन की पता का फहराने के लिए जो कार्य किए उन्हें कोई भी सनातनी भूला नहीं सकता शास्त्रार्थ और धर्म व्याख्या के जरिए सनातन की पताका फहराने वाले जगद्गुरू आदि शंकराचार्य की जयंती पर हमें धर्म की रक्षा का संकल्प लेना होगा। जगद्गुरू शंकराचार्य का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी को भारत के दक्षिण राज्य केरल के कालड़ी नामक गांव में शिव भक्त ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम शिवगुरु नामपुद्री और माता का नाम विशिष्टा देवी था ये परम शिव भक्त थे। आदि गुरु शंकराचार्य बुद्धिमत्ता की दृष्टि से अत्यंत महान थे, भाषाओं में उनकी प्रतिभा विलक्षण थी। वे एक आध्यात्मिक प्रकाश स्तंभ थे और भारत के गौरव भी थे उन्होंने बहुत ही छोटी उम्र में बुद्धिमानी और ज्ञान का जो परिचय दिया जो अद्भुत था, ये मानव रूप में अविलक्षण प्रतिभा के धनी के साथ एक चमकता सितारा, प्रकाश पुंज के रूप में देखे गए। ये बाल्यावस्था से ही प्रतिभाशाली और विद्वान थे। उनकी योग्यता का कोई सानी नहीं था, इन्होंने केवल दो वर्ष की उम्र में धाराप्रवाह संस्कृत बोल और लिखने की कला का महारथ हासिल किया। चार साल का होते होते वे सभी वेदों का पाठ कर सकते थे।
इतनी छोटी उम्र में भी उन्होंने नेतृत्व करने की क्षमता को बाल्यावस्था में ही शिष्य इकट्ठा कर साबित की, जिनके साथ उन्होंने आध्यात्मिक विज्ञान को फिर से स्थापित करने के लिए देश भर में घूमना शुरू कर दिया था। गुरु शंकराचार्य के माता-पिता को यह आभास हो गया था कि उनका पुत्र कोई साधारण बालक नहीं है, बल्कि वह एक तेजस्वी बालक हैं। हालांकि बचपन में ही उनके पिता का साया उनके ऊपर से उठ गया था।आदि गुरु शंकराचार्य विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। शंकराचार्य जी को 2 वर्ष की आयु में सारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों, रामायण, महाभारत कंठस्थ हो गए थे। उनके इस ज्ञान को देखकर गुरुकुल में उनके गुरुजन हैरान हो गए थे। उन्हें भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है।
उन्होंने महज सात वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण कर लिया था। आदि गुरु शंकराचार्य जी का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत अद्वैत वेदांत है, जो आत्मा और ब्रह्म (सर्वोच्च वास्तविकता) की एकता पर आधारित है। उनका मानना था कि संसार माया है और केवल ब्रह्म ही सत्य है, आदि गुरुशंकराचार्य के प्रमुख सिद्धांत में अद्वैत वेदांत यह मुख्य है जिसमें ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है,और संसार एक भ्रम है इसमें आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं, और अज्ञान के कारण ही जीव ब्रह्म को अलग समझता है, दूसरा माया सिद्धांत शंकराचार्य ने माया को ब्रह्म की शक्ति के रूप में माना, जो संसार को भ्रमित रूप में प्रकट करती है। माया के कारण ही संसार में विभिन्नता और परिवर्तन दिखाई देते हैं, लेकिन वास्तव में ब्रह्म ही सत्य है।
आत्मज्ञान शंकराचार्य ने आत्मा को ब्रह्म के रूप में पहचाना और आत्मज्ञान को मोक्ष का मार्ग बताया।आत्मज्ञान प्राप्त करके, व्यक्ति ब्रह्म के साथ एकाकार हो सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। शंकराचार्य जी के अनुसार संसार मिथ्या है और यह केवल ब्रह्म की अभिव्यक्ति है। उन्होंने कहा कि संसार में सुख और दुःख, जन्म और मृत्यु सब कुछ माया के कारण है। शंकराचार्य ने ब्रह्म को निर्विशेष और निर्गुण बताया और कहा कि ब्रह्म ही सब कुछ है। उन्होंने कहा कि ब्रह्म में कोई भी विशेषता या गुण नहीं है, लेकिन वह सब का आधार है।
आदि गुरु शंकराचार्य भारतीय धर्म, दर्शन और संस्कृति के इतिहास में एक महान संत और विचारक थे। उन्हें “आदि गुरु” यानी “प्रथम गुरु” कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने न केवल अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को व्यापक रूप से प्रचारित किया, बल्कि सनातन धर्म को संगठित और संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई शंकराचार्य के इन सिद्धांतों ने भारतीय दर्शन और धार्मिक चिंतन को भूमिका बताई। शंकराचार्य जी का समय वह था, जब भारत में कई धार्मिक मतभेद, अंधविश्वास, और पाखंड फैल चुके थे। उन्होंने सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों को पुनः जाग्रत किया और वैदिक परंपरा को पुनर्जीवित किया।
शंकराचार्य जी ने हिंदू धर्म को संगठित किया और इसकी रक्षा के लिए चारों दिशाओं में चार पीठ (मठ) की स्थापना की जो उत्तर में ज्योतिर्मठ(बद्रीनाथ), दक्षिण में श्रृंगेरी मठ,पूर्व में पुरी गोवर्धन मठ, पश्चिम में द्वारका मठ। इन मठों के माध्यम से उन्होंने धर्म, ज्ञान और संस्कृति को संरक्षित किया।साथ ही सौंदर्य लहरी, शिवानंद लहरी, और भज गोविंदम्, आज भी भक्ति और ज्ञान का अद्भुत संगम भी लोगों को बताया।जगतगुरु आदि शंकराचार्य अपने समय के महान विचारक समन्वयवादी (Thinker and coordinator) और महानतम विद्वानों में से एक थे।
अद्वैत विचारधारा के प्रवर्तक आदि शंकराचार्य के सिद्धान्त को शांकरा द्वैत भी कहा जाता है। काशी की तंग गलियों से होकर स्नान करने के लिए जाते समय चांडाल से हुए वार्तालाप के बाद स्वामी जी ने कहा था कि जिसे ब्रह्म की सर्वोच्च सत्ता का वास्तविक ज्ञान हो गया है,वही गुरु है, चाहे वह चांडाल हो या ब्राह्मण। ये ज्ञान के द्वार को खोलता है इससे यह स्पष्ट है कि संसार में शिक्षा का सबको अधिकार है और यह जाति के मतभेद को शिक्षा से अलग करता है। यानि संविधान में शिक्षा पर सबका समान अधिकार की बात जगद्गुरु शंकराचार्य के समय से देखी जा सकती हैं।

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Web Title-Adi Jagatguru Shankaracharya Jayanti: Sanatan protector, first guru Shankaracharya
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