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श्री राधाष्टमी की कथा और व्रत का पुण्यफल

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन श्री राधा जी के श्री चरणों के दर्शन होते हैं। श्रीराधाष्टमी पर व्रत रखने वाले को प्रेम, समृद्धि और सुखी जीवन की प्राप्ति होती है। इस दिन से ही महालक्ष्मी व्रत आरंभ होता है जो 16 दिनों तक रहता है। श्रीराधा अष्टमी के दिन श्रीराधा जी की उपासना करने से घर धन संपदा से सदैव भरा रहता है। इस दिन श्रीराधा जी को 16 श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें और इसे सुहागिनों में बांटें। मध्याह्न के समय श्रद्धापूर्वक श्रीराधा जी की पूजा करनी चाहिए। भोग लगाकर धूप, दीप, पुष्प से श्रीराधा जी की आरती करनी चाहिए।

राधाष्टमी की कथा:-
राधाजी बरसाना के राजा वृषभानु गोप की पुत्री थी। राधाजी की माता का नाम कीर्ति था। पद्मपुराण ग्रंथ के अनुसार जब राजा यज्ञ के लिए भूमि साफ कर रहे थे तब भूमि कन्या के रुप में इन्हें राधाजी मिली थी राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर इसका लालन-पालन किया। इसके साथ ही यह कथा भी मिलती है कि भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में जन्म लेते समय अपने परिवार के अन्य सदस्यों से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा था, तब विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रुप में पृथ्वी पर आई थी। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधाजी, श्रीकृष्ण की सखी थी। लेकिन उनका विवाह रापाण या रायाण नाम के व्यक्ति के साथ सम्पन्न हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि राधाजी अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थी। राधाजी को श्रीकृष्ण की प्रेमिका माना जाता है।

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