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रोजर मूर: दर्जी के बेटे जो बने जेम्स बॉन्ड, हमेशा माना 'भारत दिल पर करता है राज'

Roger Moore: The tailor son who became James Bond, always believed India rules my heart - Hollywood News in Hindi

नई दिल्ली । रोजर मूर, जो दुनिया को वे जेम्स बॉन्ड के सूट में नजर आए, लेकिन असलियत में वे अब भी दर्जी के बेटे थे, जो तकदीर से टक्सीडो (सूट) पहन बैठे। 14 अक्टूबर 1927 को लंदन में जॉर्ज अल्फ्रेड मूर और कलकत्ता में जन्मीं लिलियन के घर हुआ। पिता टेलर और फिर पुलिसकर्मी बने। घर में अनुशासन था, तो संघर्ष भी कम नहीं। मां-पिता की इस इकलौती संतान ने बाद में आर्ट स्कूल में दाखिला लेकर चित्रकारी शुरू की, पर एक दिन प्रोफेसर ने कहा—“तुम्हें पेंट नहीं, कैमरा संभालना चाहिए।” यही संवाद उनकी जिंदगी में नया मोड़ ले आया। घर में अनुशासन था, लेकिन सपनों के लिए जगह नहीं। फिल्मों में शुरुआत आसान नहीं थी। कभी टूथपेस्ट मॉडल, कभी टीवी में बैकग्राउंड चेहरे, कभी विज्ञापनों में मुस्कुराता शख्स—रोजर मूर को कोई गंभीरता से नहीं लेता था। लोग कहते थे, “चेहरे पर मत चलो, करियर दिमाग से बनता है।” मगर वे शांत थे। इंतजार करते रहे। आखिरकार 1973 में 'लिव एंड लेट डाई' ने किस्मत के दरवाजे पर दस्तक दी। इस नए जेम्स बॉन्ड के लिए सब कुछ आसान नहीं था। वे सीन कॉनरी के बाद आए थे, और तुलना कोई रोक नहीं सकता था।
वहीं रोजर मूर ने जेम्स बॉन्ड को नया रूप दिया—गुस्से की जगह व्यंग्य, क्रोध की जगह आंखों की धूर्त मुस्कान। उनकी “माइ नेम इज बॉन्ड… जेम्स बॉन्ड” लाइन तलवार की तरह नहीं, रेशमी रूमाल की तरह लहराती थी। वे सिर्फ बॉन्ड नहीं बने—वे सबसे उम्रदराज बॉन्ड भी बने। आशंकाओं और संभावनाओं के बीच सवाल भी पूछे गए। किसी ने पूछा 45 की उम्र में पहली बार बॉन्ड और 58 की उम्र में आखिरी बार? जब इस उम्र पर सवाल हुआ, तो हंसकर बोले—“अगर बॉन्ड बुलेट्स (गोलियों) से बच सकता है तो उम्र क्या चीज है।”
मूर का भारत से भी खास संबंध रहा। एक तो मां वाला और दूसरा फिल्मों वाला! 1983 में ऑक्टोपसी की शूटिंग के लिए वो भारत आए थे। इस पूरे किस्से का जिक्र उन्होंने अपनी जीवनी माई वर्ड इज माई बॉन्ड में किया है। ये अंश बताते हैं कि उनके लिए भारत क्या अहमियत रखता था।
किस्सा कुछ यूं है कि शूटिंग के दौरान वो भारत आए—उदयपुर, झीलें, महल, भीड़ और गर्मी… सबको पूरे दिल से अपनाया। एक शूट के दौरान एक भारतीय स्टंट कलाकार नाव से गिरते-गिरते बची। जानते हैं क्यों, क्योंकि मूर ने अपनी परवाह किए बिना उसे ऊपर खींच लिया। यूनिट के लोग दंग रह गए। वे मुस्कुराए और बोले—“ अ बॉन्ड मस्ट सेव लाइव्स इवन विद्आउट कैमरास" (कैमरे के सामने ही नहीं इतर भी बॉन्ड जिंदगी बचाता है) साथ ही भारत को उन्होंने अपने शब्दों में अव्यवस्था की कविता कहा। लिखा “इंडिया इज केऑस एंड चार्म, टुगैदर।”
उदयपुर की गलियों में वे बिना किसी सुरक्षा घेरे के घूमे, बच्चों के साथ फोटो ली, चाय पी, और हर जगह यही कहा—“यू डोंट विजिट इंडिया...इंडिया विजिट्स यू फॉरएवर।” अपनी आत्मकथा “माई वर्ड इज माई बॉन्ड” में लिखते हैं—“मैं हीरो नहीं था, बस एक सज्जन आदमी था जिसे कभी-कभी बंदूक थमाई जाती थी।”
23 मई 2017 को मूर का निधन हो गया। उन्होंने गोलियां नहीं चलाईं, बस मुस्कान से जीतते रहे। वे सिर्फ 007 नहीं थे; वे वो बॉन्ड थे जो उम्रदराज होकर भी दिलों में जवान रहे और आज भी हैं।
--आईएएनएस

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Web Title-Roger Moore: The tailor son who became James Bond, always believed India rules my heart
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