जयपुर। यूजीसी ने शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के नाम पर सैकड़ों देशी जर्नल्स को प्रमोशन के पैमाने से बाहर कर दिया है। अब कॉलेज व विश्वविद्यालय शिक्षकों को एकेडमिक परफॉर्मेंस इंडिकेटर (एपीआई) के तहत प्रमोशन के लिए विदेशी जर्नल्स की जरूरत पड़ेगी। देशी जर्नल्स की संख्या बहुत कम होने की वजह से ऐसे हालात बनेंगे। प्रदेश के कॉलेज व विश्वविद्यालयों के 10 हजार शिक्षकोंं पर इसका असर पडऩा तय है। यूजीसी की सूची में 38 हजार 653 जर्नल्स के नाम है। इसमें 90 से 95 प्रतिशत से अधिक विदेशी जर्नल्स है। भारतीय जर्नल्स काफी कम संख्या में शामिल किए गए है। इस सूची में कई विश्वविद्यालयों के जर्नल्स को भी जगह नहीं मिली है। इससे शिक्षकों में नाराजगी भी है। दरअसल देशभर में हजारों जर्नल्स रजिस्टर्ड है। कुछ पेपर निकालते है और कुछ ऑनलाइन है। यूजीसी का मानना था कि हर व्यक्ति दिल्ली में रजिस्ट्रेशन कराकर इस तरह से रिसर्च जर्नल्स चला रहे थे। गुणवत्ता का पैमाना प्रभावित हो रहा था। इस वजह से प्रमोशन के लिए चुनिंदा जर्नल्स की सूची जारी करना का फैसला पहले ही कर लिया था। हालांकि सूची जारी होने में तीन साल का समय लग गया। हायर एजुकेशन में शिक्षकों के प्रमोशन के लिए यूजीसी ने 2010 में एक फार्मूला तैयार किया था। जिसका नाम एकेडमिक परफॉर्मेंस इंडिकेटर (एपीआई) है। इसी के तहत प्रमोशन और एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर पद पर नियुक्ति भी होती है। एपीआई में शिक्षक को रिसर्च जर्नल प्रकाशन पर 25 अंक मिलते हैं। एपीआई में ही पढ़ाने के अंक से लेकर सेमीनार आदि सहित अन्य परफॉर्मेंस के अंक हैं। इन्हीं अंकों को अर्जित करके शिक्षक प्रमोशन या केरियर एडवांसमेंट स्कीम के तहत एसोसिएट प्रोफेसर या प्रोफेसर पद का दावेदार बनता है। ये यूजीसी गजट 2010 के संशोधन का पार्ट है। शिक्षकों को अब इन्हें फॉलो करना है। हालांकि अभी इस पर असमंजस है कि जिन शिक्षकों ने पुराने जर्नल्स में अपने शोध छपाएं हैं, उनको सरकार या विश्वविद्यालय प्रमोशन की दृष्टि से कितनी मान्यता देंगे। ये सरकार और विश्वविद्यालयों पर निर्भर करेगा। उधर, बाहरी विदेशी जर्नल्स हमारी रिसर्च छापने के लिए चार्ज कर सकते हैं। ये चार्ज 50 से 500 डॉलर तक लग सकते हैं। मेडिकल इंजीनियरिंग के सबसे ज्यादा, हिंदी, संस्कृत, पॉलिटिकल साइंस, लॉ, जियोलोजी, ज्योग्राफी के 1 प्रतिशत भी नहीं। इनमें भी अमेरिका के सर्वाधिक है। हिंदी, संस्कृत, पॉलिटिकल साइंस, लॉ, जियोलोजी, ज्योग्राफी के 1 प्रतिशत से भी कम जर्नल्स है।
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