नई दिल्ली। तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के वकील कपिल सिब्बल ने एनडीए सरकार को घेरने की कोशिश की है। सिब्बल का आरोप है कि तीन तलाक की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाकर केंद्र 2001 में तत्कालीन एनडीए सरकार के रुख से पलट रहा है। सिब्बल का कहना है कि तीन तलाक जैसे पर्सनल लॉ से जुड़ी प्रथा को गलत या सही करार नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह आस्था का विषय है और यह मामला संवैधानिक नैतिकता के दायरे में नहीं आता। जबकि अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि बोर्ड दावा करता है कि तीन तलाक पर्सनल लॉ का हिस्सा है, इसलिए इसमें लिंग के आधार पर न्याय, समानता और महिला की गरिमा का ध्यान रखना ही होगा, जैसा कि संविधान में भी तय है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी के सेक्शन 125 के तहत ‘इदत्त’ की समयावधि के बाद भी हर्जाना पाने की हकदार है, अगर उसकी दोबारा शादी नहीं हुई और अपना खर्च उठाने में अक्षम हो। इसके बाद, संसद ने मुस्लिम विमिन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डिवॉर्स) एक्ट 1986 लाकर सुप्रीम कोर्ट के 1985 के फैसले को निष्क्रिय कर दिया। इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। 2001 में कोर्ट में इस मामले में सुनवाई के दौरान तत्कालीन एनडीए सरकार ने सॉलिसिटर जनरल के जरिए अपनी राय दाखिल की।
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