चेन्नई। सार्क देशों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन साल पुराने वादे को पूरा
करने के लिए इसरो ने जीएसएलवी रॉकेट जीसैट-9 सैटेलाइट का प्रक्षेपण किया
है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने शुक्रवार शाम को श्रीहरिकोटा के सतीश
धवन अंतरिक्ष केंद्र से लांच किया। इस सैटेलाइट यानी उपग्रह के प्रक्षेपण
से दक्षिण एशियाई देशों के बीच संपर्क को बढावा मिलेगा। साथ ही दक्षिण
एशिया क्षेत्र में चीन के प्रभाव को कम किया जा सकेगा।
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इस भूस्थिर संचार उपग्रह का निर्माण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)
ने किया है। इसका प्रक्षेपण यहां से किया जाएगा। जीसैट-9 को भारत की ओर से
उसके दक्षिण एशियाई पडोसी देशों के लिए उपहार माना जा रहा है। आठ सार्क देशों में से सात भारत, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान,
बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं। पाकिस्तान ने यह
कहते हुए इससे बाहर रहने का फैसला किया कि उसका अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम
है।
इस उपग्रह की लागत करीब 450 करोड रूपये है और इसका उद्देश्य दक्षिण
एशिया क्षेत्र के देशों को संचार और आपदा सहयोग मुहैया कराना है। इसरो ने बताया
कि जीसैट-9 मिशन के ऑपरेशन का 28 घंटे का काउंटडाउन बृहस्पतिवार दोपहर
12.57 बजे शुरू हुआ। इसका मिशन लाइफटाइम 12 साल का है।
रॉकेट लॉन्च को लेकर 28 घंटे की उल्टी गिनती गुरुवार दोपहर 12.57 बजे ही शुरू हुई थी। करीब 49 मीटर लंबा और 450 टन वजनी जीएसएलवी तीन चरणों वाला रॉकेट है। इसमें पहला चरण ठोस ईंधन, दूसरा चरण तरल ईंधन और तीसरा क्रायोजेनिक इंजन है। संचार उपग्रह जीएसएटी-9 को इसरो ने पौने तीन साल की मेहनत के बाद तैयार किया है।
इसरो ने कहा कि जीसैट-9 को दक्षिण एशियाई देशों के कवरेज क्षेत्र के साथ कू-बैंड में विभिन्न संचार अनुप्रयोगों को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया है। जीसैट-9 मानक प्रथम-2के बस के तहत बनाया गया है। उपग्रह की मुख्य संरचना घनाकार है, जो एक केंद्रीय सिलेंडर के चारों तरफ निर्मित है। इसकी मिशन अवधि 12 साल से ज्यादा है। इसरो ने कहा कि हमने इलेक्ट्रिक पॉवर की वजह से पारंपरिक ऑनबोर्ड ईंधन की मात्रा कम नहीं की है। हमने इसमें इलेक्ट्रिक पॉवर की सुविधा जोड़ी है, ताकि भविष्य के उपग्रहों में इसके इस्तेमाल की जांच कर सकें।
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