देहरादून। कोरोना से जूझ रही दुनिया में हर कोई अपनी जि़ंदगी की भीख मांग रहा है। ऐसे में भी उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित थाना 'रानीपोखरी' जांबाज पुलिस वाले खुद की गाढ़ी कमाई 'बेजुवान' जानवरों पर लुटाने में जुटे हैं। बिना किसी सरकारी या फिर किसी से मांगी हुई मदद के बलबूते। अपनी जेब से खर्च अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई खर्च करके। ताकि 'महाबंद' के वीराने और सन्नाटे में कहीं कोई जानवर भूखा-प्यासा दम न तोड़ दे।
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रानीपोखरी थाने के इन पुलिसिया जांबाजों को इस एक कदम से तमाम फायदे एक साथ हो रहे हैं। पहला फायदा, उत्तराखंड राज्य पुलिस की सकारात्मक छवि का जनमानस के पटल पर अमिट प्रभाव।
दूसरा फायदा, सड़कों-गलियों, खेत-खलिहानों में घूम रहे बेजुवान भूखे-प्यासे जानवरों को लिए भोजन पानी का एक ही स्थान पर समुचित और सुरक्षित इंतजाम।
तीसरा फायदा, थाना पुलिस के सहयोगात्मक रवैये से कोरोना की कमर तोड़ने में जुटी, बाकी तमाम संस्थाओं को स्वैच्छिक सेवा के लिए प्रोत्साहन।
चौथा व अंतिम फायदा, भूखे-प्यासे जानवरों का खेतों में मौजूद फसल को चरकर नष्ट कर देने से सुरक्षित बचा लेना।
दरअसल यह सब कुछ हो रहा है उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के उप-महानिरीक्षक/ वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अरुण मोहन जोशी की कोरोना से निपटने के लिए बनाई गयी रणनीति के तहत। डीआईजी ने जिले के सभी पुलिसकर्मियों को कोरोना की लड़ाई से कैसे निपटना है? इसके छोटे-से-छोटे टिप्स भी डीआईजी ने मातहतों को दे रखे हैं। इन्हीं में से एक 'टिप्स' का हिस्सा बनी है, जिले के थाना रानीपोखरी की पुलिस। जिसका आईएएनएस यहां जिक्र कर रहा है।
उप-महानिरीक्षक कार्यालय और देहरादून पुलिस प्रवक्ता धर्मेंद्र बिष्ट ने शनिवार रात फोन पर हुई विशेष बातचीत में इस पूरे मामले पर आईएएनएस को विस्तृत रुप में बताया। उनके मुताबिक, "24 मार्च 2020 को जब लॉकडाउन शुरू हुआ तभी से शहर में आवारा जानवरों की समस्या बढ़ गयी थी। वे भोजन-पानी की तलाश में गली-मुहल्लों में मारे-मारे फिरते थे। महाबंद के चलते मगर जानवरों के भोजन पानी का समुचित इंतजाम नहीं हो पा रहा था। इसलिए अक्सर जानवर घरों के बाहर मौजू बगीचों और शहर में व उसके आसपास मौजूद खेतों में खड़ी फसल को नुकसान पहुंचाने लगे थे।"
कुछ दिन पहले 'रानीपोखरी' थानाध्यक्ष राकेश शाह को मातहत पुलिस वालों ने बताया कि तमाम की संख्या में आवारा जानवर उनके थाना-क्षेत्र में भूखे प्यासे भटक रहे हैं। थानाध्यक्ष ने साथी पुलिसकर्मियों के साथ विचार-विमर्श करके जो रास्ता निकाला, आज उस अभूतपूर्व कदम की सराहना उत्तराखंड राज्य और उसकी सीमा से जुड़े यूपी के मुजफ्फनगर, सहारनपुर जिलों तक में हो रही है।
थाना-प्रभारी रानीपोखरी ने साथी पुलिसकर्मियों की मदद से योजना बनाई कि थाने में तैनात सभी स्टाफ अपनी-अपनी जेब से स्वेच्छा से जो बन पड़े वह धन इकट्ठा करें। बाकी जो कम पड़ेगा उस सबका भुगतान खुद थाना प्रभारी राकेश शाह करेंगे। अंतत: तय यह हुआ कि, थाने के सभी कर्मचारी भूखे-प्यासे सड़कों पर मारे-मारे फिर रहे बेजुवान जानवरों के भोजन-पानी के लिए एक बराबर स्वैच्छिक आर्थिक अंशदान करेंगे। साथ ही चारा-पानी से लाने और जानवरों को खिलाने तक का इंतजाम खुद थाना रानीपोखरी के कर्मचारी ही करेंगे।
कहने करने को आर्थिक अंशदान एकत्र करके थाना रानीपोखरी पुलिसकर्मी जानवरों का चारा जैसे भूसा, हरा चारा, कुट्टी, पानी, बड़ी परात (नाद) किसी से भी मंगवा सकते थे। यह विचार मगर पुलिसकर्मियों ने त्याग दिया। क्योंकि संभव था कि, थाने के बाहर जानवरों की देखरेख और उन्हें खिलाने पिलाने के नाम पर बाकी तमाम लोगों की भीड़ इकट्ठी हो सकती थी। जिससे 'लॉकडाउन' की गरिमा को ठेस लगने का अंदेशा था। साथ ही 'सोशल-डिस्टेंसिंग' फार्मूला भी तबाह हो सकता था।
लिहाजा थाने में तैनात सभी पुलिस वालों ने पहले तो चारा-पानी-भूसे का इंतजाम किया। उसके बाद थाने के बाहर ही लाइन लगाकर आवारा और भूखे-प्यासे सड़क पर मारे-मारे फिर रहे जानवरों को एक जगह रोकने के लिए अस्थाई तौर पर रोकने का इंतजाम किया। इसके बाद थाने के सामने भोजन-पानी का बंदोबस्त हुआ देखकर, तमाम भूखे-प्यासे जानवरों की लंबी कतार खुद ही लगनी शुरू हो गयी। इसका सबसे नायाब और अविस्मरणीय दृष्य देखने को मिला शुक्रवार को। जब थाने के बाहर लाइन लगाकर कई गायें अपने बछड़ों के साथ चारे-पानी को ग्रहण करके भूख-प्यास मिटाते देखी गयीं। जबकि हर जानवर को भूसा-चारा-पानी परोसने वाले खुद थाना रानीपोखरी के वे ही कोरोना कर्मवीर जवान थे, जिन्होंने इन बेजुवानों के सुख की खातिर अपनी 'गाढ़ी-कमाई' खुशी-खुशी न्योछावर कर दी। इसलिए नहीं कि, इससे इन पुलिस वालों में से किसी को विभागीय पदोन्नति मिलेगी। वरन इस उम्मीद में कि, बेजुवानों की आत्मा से निकली आवाज ही शायद कोरोना के कहर से जमाने को महफूज करा सके। (आईएएनएस)
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