झांसी। जिला अस्पताल में भर्ती मरीजों को प्रतिदिन दिए जाने वाले भोजन में हो रहे घालमेल से अब पर्दा उठने लगा है सीएमएस की थोड़ी सी शक्ति से उजागर हो गया है कि किस तरह मरीजों के हक के खाने पर ठेकेदार डाका डाल रहे है, जहां एक दिन में 50 किलो आटे की खपत दिखाई जा रही थी वहीं अब यह घटकर 14 किलो पर आ गई है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
प्राप्त जानकारी के अनुसार जिला अस्पताल में भर्ती मरीजों को प्रतिदिन दिए जाने वाले खाने की खाद्य सामग्री को ठेकेदारों के अधीन काम करने वाला रसोईया प्रतिदिन बनने वाले भोजन से अधिक मात्रा में दर्शाता था यानि कि खाना केवल कुछ मरीजों को ही दिया जाता था परन्तु संख्या अधिक दर्शाकर खाद्य सामग्री में गोलमाल किया जा रहा था। जब इस मामले में ज्यादा खीचतान होने लगी तो सीएमएस डा. बी.के. गुप्ता ने ठेकेदार को पत्र लिख दिया तो 50 किलों प्रतिदिन दर्शाये गए आटे की संख्या घटकर 14 किलो पर आ गई। परन्तु यह खेल लगभग 10 वर्षो से निरंतर जारी है।
अब से 10 वर्ष पूर्व यह डायट का टेन्डर निकाला गया जो कि खाना और दूध का होता है। यह दोनों टेन्डर ऑफ लाइन हुए थे क्योकि पहले ऑफ लाइन प्रक्रिया से ही टेन्डर हुआ करते थे। मेसर्स मनोज अग्रवाल दूध और विनीत वर्मा डाइट का ठेका लेने में सफल रहे।
यहां पूर्व में तैनात रहे चर्चित बड़े बाबू इनकी मदद करते रहे और लगभग 10 वर्षो से दोनो फर्मे ठेका हथियाने में कामयाब रही कमीशनखोरी और बन्दरबांट के चलते वार्डो में भर्ती मरीजों कभी कभार ही मीनू के हिसाब से खाना मिला हो वरना खाद्य सामग्री के बिलों की पड़ताल की जाए तो वर्ष 2017 में मरीजों को दिए जाने वाले खाने का एक माह का बिल ही 1 लाख 28 हजार 800 रू. दर्शाया गया है। जिसमें 3 हजार 222 लीटर दूध मरीजों को पिलाया गया है साल भर की बात करें तो इसका खर्च 10 लाख 74 हजार रू. का दूध मरीज पी गए।इसी तरह मरीजों को दिए जाने वाले भोजन की खाद्य सामग्री में भी बड़ा गोलमाल है 50 किलो आटा प्रतिदिन साथ ही दाल व हरी सब्जी राजमा आदि की मात्रा बढ़कर है। जब सीएम डा. बी.के गुप्ता को लगातार शिकायतें मिलीं तो उन्होने ठेकेदार और रसोईया राकेश रायकवार को चेतावनी पत्र जारी किया तो सच्चाई की परतें खुलने लगी। 19 जनवरी को आटे की संख्या घटकर 14 किलो हो गई मरीज वही रहे पर खाद्य सामग्री घट गई।
पुराने बिल पहुंचे लेखाधिकारी के पास
वर्ष 2017 के खाद्य सामग्री के वह बिल जो गोलमाल करके तैयार किये गये थे उन्हे पास करने से लिपिक ने बनाकर दिया और पड़ताल के लिए लेखाधिकारी के पास भेज दिया, अब देखना यह है कि लेखाधिकारी पूरी पार्दशिता के साथ इनका परीक्षण करती है या नही।
सांठगांठ कर 10 वर्षो से हथियाते रहे टेन्डर
सूत्रों की बातों पर विश्वास करें तो दोनो फर्म पूर्व में चर्चित बड़े बाबू से सांठगाठ कर लेती थी और टेन्डर हथियाने में कामयाब रही थी। क्योंकि सब कुछ सैटिंग गैटिंग से हो जाता था यही कारण रहा कि अब तक इन दोनों फर्मो का जिला अस्पताल में दबदवा है।
ऑनलाइन प्रक्रिया क्या इनके मंसूबों पर पडेगी भारी ?
देखना यह है कि इस बार 22 जनवरी को यानि सोमवार को टेन्डर डाले जाएगे। और 23 जनवरी को यह खोले जाने है तो क्या ऑनलाइन में अब सैटिंग होगी । यदि दोनो ही फर्म टेन्डर पाने में किसी तरह कामयाब हो जाती है तो फिर मरीजों के भोजन से खिलवाड होना तय है और जनता की गाडी कमाई का बन्दरबाट होगा।
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