झांसी| बुंदेलखंड बीते तीन वर्षो से
सूखे की मार झेल रहा है, इंसान दाने को और मवेशी चारे को तरस रहे हैं, इस
बार भी लगभग ऐसे ही हालात हैं, मगर उत्तर प्रदेश की सरकार इस इलाके से भूसा
की आस लगाए हुए है, ताकि बाढ़ प्रभावित इलाकों के मवेशियों के लिए भूसा
उपलब्ध कराया जा सके।
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वैसे तो बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के सात और मध्यप्रदेश के छह
जिले आते हैं, कुल मिलाकर 13 जिलों से बुंदेलखंड बनता है। लगभग पूरा
बुंदेलखंड कम वर्षा की मार झेल रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश के दस जिलों में
बाढ़ ने जनजीवन को प्रभावित कर दिया है, इन हालातों में सरकार बुंदेलखंड के
सात जिलों सहित अन्य हिस्सों से भूसे का जुगाड़ कर रही है, ताकि प्रभावित
इलाकों के मवेशियों को भूखा न रहना पड़े।
झांसी के मुख्य पशु
चिकित्साधिकारी डॉ. वाई.एस. तोमर ने आईएएनएस को बताया कि शासन से आए
निर्देशों के आधार पर इस क्षेत्र में उपलब्ध भूसा की जानकारी भेज दी गई है।
फिलहाल भूसा भेजने का अभी कोई निर्देश आया नहीं है। यह भूसा उन इलाकों के
लिए मंगाया जा रहा है, जहां बाढ़ का प्रभाव है।
बुंदेलखंड की
स्थिति पर गौर किया जाए तो एक बात साफ हो जाती है कि कम वर्षा के कारण
यहां फसलों की पैदावार लगातार प्रभावित हो रही है, लोगों के पास काम का
अभाव है, लिहाजा रोजगार की तलाश में पलायन ही एक मात्र रास्ता बचा हुआ है।
दूसरी ओर मवेशियों के लिए चारा-भूसा नसीब होना आसान नहीं है। यही कारण है
कि मवेशी मालिक अपने मवेशियों को सड़कों पर छोड़ देते हैं।
किसान
रामकिशन की मानें तो उन्हें ही नहीं, लगभग हर गांव के किसानों को अपनी फसल
की रखवाली के लिए रात-रात भर जागना होता है, क्योंकि छोड़े गए मवेशी
जिन्हें अन्ना कहा जाता है, वे फसलों को चट कर जाते हैं। जब उनसे बुंदेलखंड
से भूसा मंगाए जाने की बात का जिक्र किया तो उनका कहना था कि जहां के
जानवर को खाने को भूसा नहीं है, वहां से कैसे मिल पाएगा भूसा और अगर ऐसा
हुआ तो इस इलाके में समस्या और बढ़ जाएगी।
सामाजिक कार्यकर्ता और
जल-जन जोड़ो के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह का कहना है, "बुंदेलखंड वैसे ही
अभावग्रस्त इलाका है, यहां इंसान को अनाज व जानवर को चारे के संकट के दौर
से गुजरना पड़ रहा है। अगर इस बार भी अच्छी बारिश नहीं हुई तो हालात और भी
विकट हो जाएंगे, लिहाजा यहां से अनाज व भूसा कहीं नहीं भेजा जाना चाहिए।"
वरिष्ठ
पत्रकार अशोक गुप्ता का मानना है, "सरकारें चाहे उत्तर प्रदेश की हो या
मध्यप्रदेश की, उनकी प्राथमिकता में बुंदेलखंड नहीं है। यही कारण है कि
बुंदेलखंड के लिए साढ़े सात हजार करोड़ रुपये का विशेष पैकेज मिलने के बाद
भी यहां कोई बदलाव नहीं आया। पूरी राशि खर्च हो चुकी है, मगर आम आदमी के
खाते में कुछ नहीं आया है, न तो उसका जीवन बदला है और न ही उसे कोई सुविधा
हासिल हुई है। विकास के नाम पर कुछ वेयर हाउस, मंडी जरूर बन गई हैं, मगर जब
पैदावार ही नहीं होगी, तो इन वेयर हाउस व मंडी की क्या उपयोगिता रहेगी,
इसे समझा जा सकता है।"
कहते हैं न, जिस दुर्बल की ओर किसी का ध्यान
नहीं होता, मगर वक्त पड़ने पर उसकी तरफ भी ताकने लगते हैं। इन दिनों यही
हाल बुंदेलखंड का है, जो हर वक्त अपना सूखा, भूख को मिटाने के लिए दूसरों
से मदद की आस लगाए बैठा रहता है। आज उससे भी दूसरे क्षेत्र के मवेशियों की
खातिर भूसा मंगाया जा रहा है।
आईएएनएस
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