अमरीष मनीष शुक्ला, इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित कोटे में विधवा की आयु सीमा
को अन्य श्रेणी से अलग रखने को कहा है। साथ ही बैंकिंग प्रणाली से जुड़े उस
नियम को सही माना है। जो विधवा की आयु सीमा अन्य से भिन्न रखता है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
अपने आदेश को स्पष्ट करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान ने जो मौलिक
अधिकार दिये हैं। उसमें अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है। लेकिन विधवा
एक अलग वर्ग है। इनके लिए अलग आयु सीमा निर्धारण से संविधान का उल्लंघन
नहीं होता।
विधवा को मिलेगा फायदा
दरअसल भारतीय स्टेट बैंक में मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति के लिए इटावा
के प्रदीप कुमार निर्मल ने अपील की थी। जिस पर न्यायमूर्ति अरुण टंडन एवं
न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी की खंडपीठ ने सुनवाई शुरू की। सुनवाई के दौरान
दलील दी गई की बैंक ने उसे 38 वर्ष का होने की वजह से ओवरएज बताकर नौकरी
नहीं दी। जबकि वह मृतक आश्रित कोटे से है। इस पर हाईकोर्ट ने बैंक की मृतक
आश्रित कोटे की उम्र सीमा नियमावली तलब की। जिसमे विधवा को मृतक आश्रित
कोटे में 40 वर्ष व अन्य को 37 वर्ष की आयु तक ही नियुक्ति देने का नियम
रहा। कोर्ट ने इस नियम को वैधानिक मानते हुये कहा कि विधवा को विशेष वर्ग
मानकर लाभ देना सही है और इसमे संविधान का उल्लंघन नहीं होता।
उच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य या सरकार अपने स्वाविवेक से
समाज के विभिन्न वर्गों के लिए अलग-अलग नीति अपना सकते हैं। बैंकिंग
प्रणाली का नियम ठीक है। हाईकोर्ट की स्वीकृत मिलने के बाद अब इसका लाभ
विधवा वर्ग को आसानी से मिल सकेगा। जिसमें उनकी आयु सीमा 40 वर्ष तक हो
सकेगी।
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