कार्यकारी निदेशक हृदेश शर्मा ने कंपनी विशेष को फायदा पहुंचाने के लिए बदली शर्तें
जयपुर। पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट वसुंधराराजे सरकार के भ्रष्टाचार संबंधी मामलों की जांच नहीं होने को लेकर सरकार के खिलाफ मुद्दा बना रहे हैं। वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दावा कर रहे हैं कि भ्रष्टाचार पर सरकार जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही है। लेकिन, स्वायत्त शासन निदेशालय स्तर पर टेंडरों में पारदर्शिता बरतने के लिए बने RTPP एक्ट का मखौल उड़ाया जा रहा है। कंपनी विशेष को फायदा पहुंचाने के लिए उसी के अनुरूप शर्तों में बदलाव किया जा रहा है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सूत्रों के मुताबिक नगरीय विकास कर (यूडी टैक्स) कलेक्शन के लिए टेंडर की शर्तें राज्य स्तरीय कमेटी द्वारा निर्धारित की गई थीं। करीब एक साल तक चली विचार-विमर्श की मशक्कत के बाद स्वायत्त शासन निदेशक एवं रुडसिको के कार्यकारी निदेशक हृदेश कुमार शर्मा ने कंपनी विशेष के हिसाब से शर्तों में बदलाव कर दिया।
इस संबंध में राज्य सरकार को भेजी गई एक शिकायत में आरोप लगाया गया है कि इस टेंडर में पहले राष्ट्रीय और राज्य स्तर की कई प्रमुख फर्में क्वालीफाई कर रही थीं। लेकिन, हृदेश शर्मा के स्तर पर कंपनी विशेष स्पैरो सॉफ्टटेक के पक्ष में शर्तें बदल दी गई। वह भी तब जबकि इस कंपनी के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में एफआईआर दर्ज हैं। नगर निगम जयपुर की ओर से कंपनी को ब्लैकलिस्ट करने संबंधी नोटिस दिए जा चुके हैं।
रोचक तथ्य यह है कि टेंडर की मूल शर्तें नगरीय विकास एवं आवासन मंत्री शांति धारीवाल द्वारा अनुमोदित की गई थीं। उनमें ज्यादा बदलाव नहीं किए जाने को लेकर राज्य सरकार स्तर से निर्देश भी दिए गए थे। लेकिन, निदेशक स्तर पर इन निर्देशों को नजरअंदाज करके कंपनी विशेष को फायदा पहुंचाने के लिए शर्तों को बदल दिया गया। इससे पहले भी अमरुत-2 योजना के तहत PDMC के टेंडर में भी तकनीकी विश्लेषण कर फर्म विशेष को फायदा पहुंचाने का प्रयास किया गया था। बाद में सरकार को यह टेंडर ही निरस्त करना पड़ा था।
टेंडर की शर्तों में ऐसे हुआ खेलः
सूत्रों के मुताबिक यूडी टैक्स कलेक्शन टेंडर में टर्नओवर के साथ 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले एक शहर के बजाय 2 शहरों में टैक्स कलेक्शन के अनुभव की शर्त डाली गई है। इसके साथ ही 30 से अधिक शहरों में टैक्स कलेक्शन का अनुभव होने की शर्तें जोड़ी गईं। जबकि राज्य स्तरीय समिति से अप्रूव्ड टेंडर की मूल शर्तों में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं था।
इस तरह रुडसिको द्वारा टेंडरों में पारदर्शिता नहीं बरते जाने से राष्ट्रीय स्तर की टाटा औऱ राज्य स्तरीय तकनीकी कंपनियां भी प्रतिस्पर्द्धा से बाहर हो रही हैं। शिकायतकर्ता का कहना है कि निदेशक स्तर पर टेंडर शर्तें कैसे बदली गईं, इसकी गहन जांच की जानी चाहिए। क्योंकि इस तरह की प्रेक्टिस से बार-बार टेंडर रद्द करने पड़ते हैं औऱ काम डिले होता है। सरकार ने भी इस ओर से भी आंखें मूंद ली हैं।
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